Thursday 13 October 2022

व्याह का गीत

मैंने का सुख जाना राजा तोरे संग व्याही

काऊ शहर में में होती राजा, 

गेंहूंआ की रोटी खाती- 2 

मेरे करम लिखी है बेझ्रर,ताऊ की सूखी पाती ।


मैंने का सुख जाना राजा तेरे संग व्याही। ।।

काऊ शहर में होती राजा,

ठण्डा पानी पीती - 2

मेरे करम लिखी हैं कुइयां ताऊ को खारो पानी।।


मैंने का सुख जाना राजा तोरे संग व्याही। ।

काऊ शहर में होती राजा अच्छे पलंगा सोती- 2 

मेरे करम लिखी है खटिया ताऊ की टूटी पाटी - 2

मैंने का सुख जाना राजा तोरे संग व्याही - 2


शब्द              अर्थ

काऊ             कोई

गेहुंआ             गेहूँ

बेझर              बाजरा 

सूखी पाती      सूखी रोटी

कुइयां             कुआँ

पलंगा             पलंग

खटिया           बान से बिना पलंग 

करम              भाग्य

अर्पणा पाण्डे . 0 


व्याह का गीत

सैंय्या मिले लरकइयI 

मैं का करूँ - 2

बारह बरस की मैं व्याह को आई - 2

अरे ं सैंय्या उडावें कनकइयाँ 

मैं का करूँ, मैं का करूँ 

अरे पन्द्रह बरस की मैं गौने को आई - 2

अरे सैंय्या छुडाबे मोसे बइयाँ

मैं का करूँ,मैं का करूँ

सोलह बरस की मेरी बारी उमरिया - 2

अरे सैंय्या पुकारें मैय्या - मैय्या

मैं का करूँ - मैं का करूँ 

सैंय्या मिले ल र कइ या ँ 

मैं का  करूँ- मैं का करूँ। ।

शब्द                अर्थ

सैंय्या                पति

लरकइयाँ           लड़कपन ,बचपना

कन कइ या        पतंग

उमरिया              उम्र

बारी                   छोटी


अर्पणा पाण्डे ... .

लोकगीत ( हास्य )

दइया घर में हुई गो बांट वांवरों पर के सोये गयो रे,

 जेठ को मिल गई अटा - अटारी देवर को कमरा रे 

दइया फूट गई तकदीर वांबरे को छपरा मिल गयों रे। 


जेठ को ं मिल गई गइया - भैसिया, देवर को बैला रे I

दइया फूट गई तकदीर वॉवरे को पड़वा मिल गयो रे   ।।


जेठ को मिल गयो बाप , देवर को मइया रे।

दइया फूट गई तकदीर वांवरे को बहना मिल गई रे। 


जेठ को रह गयो अटा - अटारी, देवर को कमरा रे

दइया फूट गई तकदीर बावरे को छपरा जल गयो रे ।

जेठ को मर गयो बाप  ,देवर की मैय्या मर गई रे ।

दइया फूट गई तकदीर, बावरे की बहना भाग गई रे ।।

दइया फूट गई तकदीर वांवरों पर के सोये गयो रे . . .

.शब्द                 अर्थ

दइया                  आश्चर्य?जनकशब्द

हुईगौ                   हो गया

वांवरों                  अपना पति 

जेठ                     पति का बड़ा भाई

देवर                    पति का छोटा भाई

अटा- अटारी             घर की छत


अर्पणा पाण्डे

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Wednesday 12 October 2022

लोक गीत ( हास्य)


हाय दैय्या औरैय्या के पुल पर

कैसी गुजरी, औरैय के  पुल पर

आठ चना की नौ मटरा की

सोलह फुलकिया  खाये गये , तऊ भूखे चले गए ।

आठ कुआँ को नौ तालन को,

सोलह समुद्र सोख गये तऊ,प्यासे चले गये   ।

आठ रे लड़का नौ रे बिटियां 

सोलह नाती छोड. गये तऊ, निरवंशी चले गये।

आठ कुँवारी नौ रे व्याही, 

सोलह महरियाँ छोड़ गये तऊ, मन मारे चले गये।

हाय दैय्या औरैय्या के पुल पर

कैसी गुजारी औरैय्या के पुल पर।।


अर्पणा पांडे . . .

..

 

Tuesday 27 September 2022

सोहर, जच्चा - बच्चा

 हर्षित होवें ललनवा 

पलनवा मैं लाल झूले झुलना

झुलनवा में लाल झूले झुलना

ज़ननी झुलावें झुलनका ।।

संग सरकी सब हिलमिल गावें 

लाल खिलावें और लोरियां  सुनावें 

हर्षित होवे ललनवा, पलनवा में लाल झूले .. .


संग सरवी सब दूध पिलावें 

संग सखी सब हिलमिल नाचें

ललन खिलावें और नैन मटकावें, 

तिरछी करें नजरिया। 

 पलनवा में लाल झूलें झुलना

शब्द               अर्थ

ललनवा           बच्चा

पलनवा          झूला

झुलावें              धक्का देना

नैन मटकावें        आंखे घुमाना

लोरियां             कविता


0 अर्पणा पाण्डेय

Tuesday 20 September 2022

सोहर,जच्चा - बच्चा गीत I .


 साहूकारों के लल्ला हुआ,हुआ मन रजना

ननद - भभज दोनों बैठी,और कर रही दिल की बात

हुआ मन रजना  ।

ननद _   भाभी जो  त्यारे होहिये हुरेलवा, हम लियें गले का हार - और गल तिलरी 

भाभी _   ननद जो मेरे हुहियें हुरेलवा, हम दीहें गले का हार और गलतिलरी 

             भोर भयो,पीरी फाटी । लाल ने लिये अवतार ,हुआ मन रजना

             रोये सुनाये हुआ मन रजना ।

भाभी -    सखी धीरे बजाओं बधाईयाँ, ननदी सुन न ले ।

              हुआ मन रजना। 

            सुनते कहते ही आये गह ननदी,

            भाभी बदन बदी सो देओ, हुआ मन रजना

            भाभी सुनते ही करवट ले गई, हम से करो ना बकवास 

            हुआ मन रजना।

न नदी - गोदी हुरेलवा लै लियो, और गई ससुरे की गैल,

           हुआ मन रजना। 

भाभी ÷ अटरिया चढ. गई और संइया से लगी बतलान,

            ननद हुरेलवा ले गई हुआ मन रजना। 

            हलकी गढ़ायो लायो तिलरी। 

            और हल्का गले का हार, 

            हुआ मन रजना।

            लौटो लौटो ननद मेरी लौटो

            लौटो लौटो बहन मेरी लौटो, 

            जो बदन बदी सो लेओ,हुआ मन रजना। 


शब्द -                    अर्थ

हुरेलवा -               बच्चा

गल तिलरी -           गले का गहना

पीरी फाटी -           दर्द उठना

मन रजना -            खुश होना


0अर्पणा पाण्डे

Monday 19 September 2022

सरिया, सोहर

 जेठानी आई s s दिन- चार, 

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।

सास को भेजो नउआ ,

ननद को बरिया ।

जेठानी को तुम लेन जाओ ,

जेठानी मेरी गोतिनिया। 


सास को भेजो,इक्का

ननद को बग्धी, 

जेठानी को रथ  ढरकाओ

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।


सास को उतारो  अंगनवा,

ननद को उतारो वरोठवा,

जेठानी को अपने कमरा ।

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।


सास ने खर्चों रुपय्या, 

ननद ने अठन्नी ।

जेठानी ने खर्ची छ्दाम  ,

हमारो मन फट गयो रे ।

सास को भेजो संजा, 

ननद को सवेरे  ।

जेठानी को भेज देओ दोपहरिया

जेठानी के पैर जल जाये,

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।।

शब्द     _ अर्थ

गीतिनिया - अपने गोत्र की

नहुआ     -  नाऊ

बरिया     -  पत्तल उठाने वाला

ढर काओ  - धक्का देना या हांकना 

बरोठवा    - बरामदा ,कमरे के बाहर का हिस्सा

छदाम      - सबसे छोटा सिक्का

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0 अर्पणा पाण्डे

Friday 16 September 2022

छटी पसनी में गाय़े जाने वाले गीत ( सोहर )

 सोंठ के लडुआ चरपरे हैं

बहुत सो इनमें घी परों है। 

सासू आवे चरूआ,चढ़ावे ं,

वेऊ मांगें लडुआ . . .

सोंठ के लडुआ़ चर परें हैं।

आधो फोड़ कलाई मेरी दुःख़े, 

सजों दियो नहीं जाये। 

गरी के गोला नौ पड़े हैं

बहुत सो इनमें घी पड़ो है।

सोंठ के लडुआ़ चरपरे हैं।

शब्द  _            अर्थ

सोंठ_              सूखी अदरख

चरुआ -            रीति - रिवाज 

सजो_               पूरा

चरपरेे  _            तीखे,चटपटे


0 अर्पणा पाण्डेय

बच्चे के जन्म के समय गाया जाने वाला गीत

 कहो घना ,गोविंद के भये लाल.

हंसतें खेलत घर आये ,काहे घना अनमनी?मेरे लाल

लाज संकुचि की हैं बात, मर्द आगे का कहें मेरे लाल। 

गोविंद _ हम तुम अन्तर नाहीं हम तुम अंतर एक 

कपट जिया नाहीं,कहो दिल खोल के मेरे लाल।

बहू _ बाँहों कूल्हों मेरो कसके,  करियाहयाँ मेरे सालें 

उठी है पंजरवा की पीर,सुबर दाई चाहिये मेरे लाल।

गोविंद _ दाई को नाम ना जाने ,गांव ना जाने ,कहाँ दाई रहे बसें मेरे लाल ।

बहू _ पूछ ले ओ माई बहनिया ,सगी पितरानिया, शहर के लोग,कुआँ पनिहारिनिया मेरे लाल

दाई _ को मेरो टाटा खोलो ,कुकुर मेरो भूके,पहरूआ मेरे जाग उठे मेरे लाल

गोविंद _ माई की,पीर ना जानी,बहन परदेश ,हम घर अलख बहुरिया,रुदन भले भये मेरे लाल। 

दाई_ माह पूस के हैं जाडे, दाई ने चले मेरे लाल।

गोविन्द _ हम तुम्हें शाला दें हैं, दुशाला देंहें,रथ ढरकहिये ,चलो उ लावनी।

जब दाई बाद में आई शगुन भले भये,जब दाई द्वारे पे आई शगुन भये। सखियन घर भरों मेरे लाल जब दाई अंगना में आई बोली,लाओ न् बेला भर तेल मलो तेरो पेट पिढ़री सुतत आई पीर ,सो लालन उर धरे मेरे लाल। वहू ÷ जब दाई घर से निकरी दाई को नाद सो हैं पेट,लाला लैके सोये रही मेरे लाल।मेरो सिर दुःखत् है मेरे लाल। 

गोविन्द _ द्वारे से आये गोविन्द लला दाई से कौन लडे. मेरे लाल। शाल उढाये ,दुशाला उ ढाये, रथ ढ्ररकाये मेरे लाल।

कहो घना गोविन्द के भये लाल, हंसतै खेलत घर आये मेरे लाल। 

शब्द _    अर्थ                    शब्द _    अर्थ 

घना _      पत्नी                  उलायती _ जल्दी

अनमनी  _    वे मन से         पिढ़री _     बच्चा

करियाहयाँ  _  कमर            सुतत_       खिसकना

सालें   _        दर्द                उर _         धरती

पंजरवा  _      पंजों का दर्द     नाद _      मोटा

पितरनियां  _  जेठानी             दुशाला _   कंबल

पहरूआ   _      पहरेदार

ढ़रकहिये   _     धक्का देना

० अर्पणा पाण्डेय

Saturday 3 September 2022

उत्तर भारत के लोकगीत और लोक कथाएं

 लोकगीत एवं लोक कथाएं हमारी संस्कृति  को परिलक्षित करती हैं लोकगीत और लोककथा को संरक्षित रखना एक दुष्कर कार्य होता जा रहा है । लोग ग्रामीण अंचलों से शहरी अंचलों में आकर इतने मग्न हो रहे हैं कि कहीं ना कहीं वे लोकगीत एवं लोककथा को कहने सुनने में शर्म और संकोच महसूस करते हुए नजर आते हैं  कहीं उन्हें हम कम पढ़ा लिखा मान लेते हैं और वह हीन भावना के शिकार होने लगते हैं जबकि सत्य है की असली भारतीय संस्कृति गांव में ही बसती है यह संस्कृति क्रमशः निरंतर एक से दूसरे को युगों युगों से आदान प्रदान की जाती रही है आज बच्चों के जन्मदिन पर जच्चा बच्चा गीत, सोहर ,सरिया लुप्त होते दिख रहे हैं l शहरी निवासी होते ही लोग केक काटने का चलन चलाने में गर्व महसूस कर रहे हैं हमारे यहां जैसे जन्मदिन पर दीपक को प्रज्वलित किया जाता है वही आज  केक काटते समय दीपक को बुझाया जाता है। मुंडन ,छठी ,अन्नप्राशन  ,विवाह जैसे कार्यों में बिना गाए कोई कार्य नहीं किया जाता था l आज उसकी जगह  माइक और सीडी मैं ने ले ली है। इसी प्रकार लोक कथाएं भी लुप्त होती जा रहे हैं हर  त्यौहार पर पहले घर की बुजुर्ग महिला उस त्योहार से संबंधित कथा सुनाती थी और सभी लोग उसको ध्यान से सुनते थे फिर कहते थे भगवान जैसा उसके साथ हुआ वैसा ही मेरे साथ भी हो मैं आपकी पूजा विधिवत करूंगी मुझे उस का योगफल दीजिए मैंने भी अपनी मां कुसुम चतुर्वेदी से हर पावन पर्व पर कथा सुनी और हर शुभ अवसर पर  उनके गाए हुए गीतों को गुनगुनाती  आई ,मैं उनके सुनाए हुए गीतों को और उनकी सुनाए हुई कहानियों को इस किताब रूप में संपन्न कर रही हूं आप सभी लोग इसे पढ़ें और गुनगुनाए परिवार के साथ बैठकर इन कथाओं का आनंद लें इसी आशा के साथ मैं इस पुस्तक को आप सभी तक पहुंचाना  चाहती हूं l हमारी धरोहर संरक्षित रहे उसका प्रचार प्रसार हो यही मेरी कामना है इस कंप्यूटर युग में आज भी पुस्तकों में लिखी कहानियां बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती रहती हैं । 


Tuesday 30 August 2022

महालक्ष्मी व्रत कथा. .

 एक समय महाराज युद्धिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण जी से बोले कि हे प्रभु कोई ऐसा व्रत बता इये जिससे मैं अपऩे छूट हुये राज्य को वापस पा सकूं पुत्र आयु और समस्त ऐश्वर्य को देने वाला हो. उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि सतयुग में जब दैत्य़ लोग देवताओं को सताने लगे थे तब देवराज झ्ट्र ने नारद जी से यही युक्ति पूछी थी तब नारद जी ने एक कथा सुनाई थी वह इस प्रकार हैं।

नारद जी बोले प्राचीन काल में एक़ सुन्दर नगर था वहाँधर्म अधर्म कर्म और मोक्ष की उत्पत्ति होती थी उस नगर के राजा का नाम मंगल था राजा के एक भाग्य हीन सनी भी जिसका नाम चिल्ल देवी था दूसरी काफी समझ दार कीर्ति प्रदायनी  यशस्वी पत्नी थी उसका नाम चोल देवी था।एक दिन राजा अपनी पटरानी के

साथ अटारी पर बैठे थे वहां से उन्होंने एक सुन्दर बगीचा देखा और रानी से बोले कि मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा ही बगीचा बन वाऊँगा चोल देवी के हाँ कहने पर राजा ने उस स्थान पर एक सुन्दर बगीचा बनवा दिया जिसमें नाना प्रकार के फल फूल लगवाये पक्षियों का सुन्दरकलरव गाना होता जो कि राजा रानी को बहुत प्रिय लगता भाग्यवश एक दिन उस बाग में एक वाराह ने घुसकर फल फूल के वृक्ष सब तहस. नहस कर डाले और वहाँ के रक्षकों को घायल कर दिया ।राजा को बड़ा क्रोध आया और सिपाहियों से कह दिया कि इसे तुरन्त मार डालो और जिसके सामने से यह जिन्दा निकल गया उसे मैं शत्रु की भाँति काट डॉलूंगा।

वह वाराह राजा के ऐसे कठोर वचन सुनकर उनके सामने से ही निकल गया अब राजा लज्जित हुये और तुरन्त घोड़े पर चढकर उसका पीछा करने लगे पकड़ ये आने पर राजा ने उसे मार डाला। तब वही वाराह गन्धर्व स्वरूप कामदेव के समान वेष को धारण कर राजा से बोला कि हे राजन तुम्हारा कल्याण हो तुमने मेरी मुक्ति कर दी मैं इस प्रक़ार की योनि में कैसे आया ये मैं आपको बताता हूँ _ 

एक बार सभी देवताओं के मध्य में भगवान ब्रम्ह कमल के आसन में बैठे हुये थे मैं ष ड़ज ,निषाद गांधार,मध्यम,देवत, पंचम आदि सप्त स्वरों से गीत गा रहा था अचानक गाते-गाते बीच में मैं वेसुरा गाने लगा। इस नीच कर्म से क्रुद्ध होकर ब्रम्हा जी ने मुझे यानि में चित्र रथ गन्धर्व को श्राप दे दिया कि तुम प्रथ्वी पर जाकर सुअर हो जाओं और तुम्हारी मुक्ति तभी होगी जब अनेक राज्यों पर विजया करने वाला राजा मंगल तुम्हे मारेगा सो रहे राजन आज मैं मुक्त हो गया हूँ अतः हे राजन देवताओं को दुर्लभ मेरा आप एक वरदान ग्रहण करें तुम महालक्ष्मी का वृत करोयह पूजन वृत भाद्र पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और सोलह दिन अष्टमी तक किया जाता है। प्रथम अष्टमी के दिन स्थान को साफ करके महालक्ष्मी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया जाता है। विधिवत पूजन सामाग्री तैय्यार करें और व्रत रक्ख़ें इससे आप सार्वभौम राजा होंगे।अब आप अपने राज्य को जाइये ऐसा कहकर वह गंधर्व अन्तर धान हो गया तभी राजा ने एक ब्रम्हचारी को देखा तो राजा बोला कि हे विप्र आप कौन हैं तब राजा ने उससे कहा हे राजन

मैं आपके देश का ही हूँ मेरे लिये कोई काम हो तो बताइये तब राजा बोला हे बटोही,आज से तुम्हारा नूतन जन्म हुआ तुम शीघ्र ही मेरे लिये कोई जलाशय स े शीतल जल लेकर आओ वह बटोही राजा को आश्वस्त करके बोला ठीक है आप यहाँ विश्राम कीजिये मैं जल लाता हूं। उसने थोड़ी ही दूर जाकर देखा किकुछ स्त्रियां जलाशय के किनारे पूजा कर रहीं हैं।तो वह उनके करीब पहुंचा और पूछा कि यह आप किसकी पूजा कर रहीं हैं और इससे क्या लाभ होगा उस ब्रम्हचारी के वचन सुनकर नारी समूह से एक नारी ने, बहे डी कोमल वाणी में कहा यह महालक्ष्मी का पूजन हो रहा हैभाद्र पक्ष की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है प्रातः काल निप्रत्त होकर सोलह बार हाथपैर धोकर सोलह धाग़ों का सूत लेकर उसमें सोलह गांठ बनाते हैं उसकी प्रत्येक गांठ की पूजा की जाती है। स्त्रियां अपने बायें हाथ में पहन ले और पुरुष अपने दाय़ें हाथ में तत्पश्चात सोलह साबुत चावल लेकरमहालक्ष्मी जी का आवाहन हाथी की प्रतिमा के साथ करें ,महालक्ष्मी समगच्छ् . सोलह सोलह दूब से महालक्ष्मी को स्नान करावे सोलह बार सिंदूर चढावे ,आज हर चढ़ाई वस्तु की मात्रा सोलह ही रक्ख़ें इस तरह सोलह दिन करकेअष्टमी को ही उद्यापन करें इसमें सब श्रंगार का सामान रक्ख़ें और ब्राम्हण या ब्राम्हनी को दान दें सोलह दीपक जलाकर कहानी सुनों तत्पश्चात प्रसाद वांट कर स्वंय खाओं इस व्र त को तुम करों और राजा से भी करवाओ यह वृत मनवांछित फल देने वाला होता है। किन्तु श्रृद्धा पूर्वक ही करें ऐसा सुनकर वह बटुक कमल के पत्ते का दोना बनाकर राजा के पास जल लेकर गया और राजा को सारी बात बताई तब राजा अपने साथ उस बटुक को भी अपने राज्य ले आये सभी नगर वासी हर्षित होकर राजा की जय जयकार करने लगे ढ़ोल नगाड़े बजने लगे स्त्रियां बच्चे पुरुष सब खुशी से नाचने लगीं किन्तु चिल्ल देवी के मन में राजा के हाथ में बंधा कलावा देखकर शंका हो गई कि राजा जरूर कही दूसरी स्त्री के पास गया होगा जिसने यह धागा बांधा है। और मौका पाकर उसने राजा के हाथ से वह धागा निकालकर फेंक दिया उधर दैवयोग से चोल देवी ने उस पूजित धागा देखा और उठा लिया और उस ब्रम्हचारी से उस धागे का महत्व समझ कर अगले वर्ष भाद्र पक्ष की अष्टमी को महालक्ष्मी की पूजा की तभी राजा ने उस धागे के बारे में पता किया तो पता चला कि वह धागा चोल देवीके पास है और वह पूजा कर रही है तभी राजा चोल देवी के पास गये,इधर चिल्ल देवी क्रोध में बैठी थी कि तभी महालक्ष्मी जी उसके पास कुछ मांगने गईं तो वह क्रोध में बोली जाओ यहां से तब महालक्ष्मी जी चोल देवी के पास गई तो देखा कि वह मण्डप सजाये बैठी है साथ में राजा भी हैं और वह बटुक भी वह तीनों महालक्ष्मी का आवाहन ही कर रहे थे महालक्ष्मी समगच्छ कि महालक्ष्मी जी वृद्धा के रूप में आईं और कु द्द खाने के लिये मांगा चोल देवी ने उन्हें नहला धुलाकर साफ वस्त्र पहनये और पूजन किया सब चढ़ा हुआ सामान दिया भोग लगाया लक्ष्मी जी तो इतने में बहुत खुश हो गईं और अपने असली रूप में हाथी पर बैठकर दर्शन दिये राजा-रनी  और वह ब्राम्हण बहुत खुश हुए लक्ष्मी जी ने कहा अब आप वर मांग लें. तब राजा रानी ने कहा आप यह वर दे कि संसार में सभी प्राणी इस पूजन को करे और कृतार्थ हों लक्ष्मी जी ने तथास्तु बत्रा और अंतर्ध्यान हो गई इधर चिल्ल दे वी पश्चाताप करने अंगिराकृषि के आश्रम में रहने लगी उन्होंने उसे ज्ञान दृष्टि दी तब राजा उसे भी अपने महल ले आये, और दोनों रानियां प्रेम से रहने लगी ं। वह बटुक राजा मंगल का महामन्त्री बना यह मंगल पुर आज भी महाराष्ट्र के कोल्हापुर गांव में है। जहाँ महालक्ष्मी जी का भव्य मंदिर बना हुआ है। राजा सभी सुखों को भोगकर श्रवज नामक नक्षत्र हुआ।

मंत्र,

महालक्ष्मी  नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्य सुरेश्वारि 

हरि प्रिय नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे। ।

आ मोती दामोती सोलह पाठ नगर में राजा

रानी कहें कहानी _ 

तुमसे खाती तुमसे पीती सोलह दूब के पोड़ा

सोलह चावल, सोलह दियाला, .सोलह वाती 

सोलह सूत की एक कहानी महालक्ष्मी रानी

 



Tuesday 19 July 2022

दत्तात्रेय जयंती

 ऋषि अत्रीय के आश्रम में एक बार ब्रह्मा विष्णु और महेश भगवान विष्णु के रूप में आए उस समय उनकी पत्नी अनुसूया घर में अकेली थी वह बड़े  पतिव्रता नारी थी इन तीनों भगवान ने उसके पति व्रत के परीक्षा लेने के कारण भेष बनाकर साधु के भेष में आए और बोले मां भिक्षम देही जब अनुसूया उन्हें भिक्षा देने के लिए आए तो वे तीनों बोले नहीं मैं ऐसे दीक्षा नहीं लूंगा तुम वस्त्र हीन होकर हम लोगों को दीक्षा दो तब अनुसूया ने ने उन्हें बड़े ही आदर पूर्वक आसन देकर बैठाला और कमंडल से जल लेकर उन तीनों साधु के भेष में भगवान पर अभिमंत्रित करके डाल दिया थोड़ी ही देर में वे तीनों साधु बालक के रूप में हो गए तीन-तीन माह के पुत्र बनाकर उन्हें  भरपेट दूध पिलाया और खिलाया । उधर लक्ष्मी जी सरस्वती और ब्रह्मा पत्नी जब अपने पति को खोजते खोजते अनुसूया के पास आए तो वे अपने पति को  बालक रूप में पहचान गई और अनुसूया से विनती करने लगे कि मेरे पति को पूर्व रूप में ही करके मुझे वापस कर दें मैं उनकी गलती के लिए क्षमा मांगती हूं तब अनुसूया ने कमंडल से जल  छोड़ा और उन तीनों को श्री ब्रह्मा विष्णु महेश उसी रूप में वापस कर दिया  , तभी से इन तीनों एका कार रूप ब्रह्मा विष्णु महेश ने अनुसूया के पति व्रत रूप से प्रसन्न होकर दत्तात्रेय रूप में दर्शन दिए और कृतार्थ हुए .

अर्पणा पांडे

बट सावित्री व्रत कथा

 जेष्ठ माह की अमावस्या को यह व्रत रखा जाता है स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है बरगद के फल के समान मीठे पुए बनाए जाते हैं और इस मौसम का प्रिय फल आम या खरबूजा चढ़ाया जाता है लाल चने भिगोकर पूजा में रखे जाते हैं उन से 12 बार बरगद के चक्कर लगाए जाते हैं । और कच्चे सूत से जनेऊ बनाकर उसे हल्दी से रंग कर दो माला बनाई जाती हैं l एक बरगद के वृक्ष पर चढ़ाते हैं ,और दूसरा स्वयं पहनते हैं .कम से कम 12 दिन अवश्य पहनना चाहिए इस प्रकार सुहागन महिलाएं या तो परिवार के साथ व अपने सहेलियों में समूह बनाकर सोलह सिंगार करके निर्जल व्रत रहकर पूजा करने जाती हैं l बरगद के वृक्ष पर जल चढ़ाकर  हल्दी आटे से  घोल बनाकर वृक्ष पर लगाते हैं l फूल चढ़ाते हैं फल चढ़ाते हैं और काले चने चढ़ाकर 12 12 चने और बरगद की कलंगी को 12 टुकड़ों में तोड़कर एक साथ पानी से  लिया जाता है l तत्पश्चात  महिलाएं एक दूसरे को जनेऊ की माला पहनाते हैं और कहानियां कहती हैं। इसमें सत्यवान और सावित्री की कहानी को आधार में रखा गया है....

 कहानी इस प्रकार है सावित्री नाम के स्त्री थी । वह बड़ी ही पतिव्रता थी पति की बहुत सेवा करती थी पति का नाम सत्यवान था,  जैसा नाम था वैसा ही वह सत्य बोलने वाला था एक दिन उसका पति लकड़ी काट रहा था तभी वह वृक्ष के नीचे गिर पड़ा अर्थात उसके प्राण निकल गए सावित्री उसके साथ हीं थी वह अपने पति को अपने गोद में लिए हुए विलाप कर रही थी जब यमदूत सत्यवान के प्राणों को उसके शरीर से खींच कर ले जाने लगे तो सावित्री ने यमदूत से बड़ी विनती करी कि मेरे पति को जिंदा कर दो । परंतु उन दोनों ने कहा नहीं इसकी इतनी ही जिंदगी थी अब यह मृत्युलोक को जाएगा किंतु सावित्री नहीं मानी और यमदूत के पीछे पीछे चलने लगी और प्रार्थना करने लगी......

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे  दे दो

मैं पति की पुजारिन हूं पति प्राण मुझे दे दो 

सिंदूर भरा जिसके कहलाती सदा  सधवा

सिंदूर बिना नारी कहलाती सदा विधवा 

सिंदूर सुहागन के पहचान मुझे दे दो 

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे दे दो। 

ऐसा कहते कहते हैं वह उन दोनों के साथ  साथ बदहवास सी चलती जा रही थी । तभी एक यमदूत को उस पर दया आ गई उसने कहा अच्छा तुम कोई वर मांग लो तब सावित्री ने सदा सुहागन रहने का वर मांगा ! यमदूत ने तथास्तु  कह दिया वे सावित्री के इस बात को  समझ नहीं पाय और जाने लगे लेकिन सावित्री को पीछे आते देख उन लोगों ने फिर उसे टोका तब सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति को ले जाएंगे तो मैं सुहागन कैसे  कहलाती  इसतरह सावित्री के हट को और उसके होशियारी को देखकर यमराज को भी झुकना पड़ा,  और सत्यवान के प्राण वापस कर दिए तभी से सत्यवान और सावित्री की कथा कहीं जाने लगी वट वृक्ष के नीचे यह कहानी इसीलिए कहीं जाती है क्योंकि इस वृक्ष के नीचे ही यह सब हुआ था  तभी से वट वृक्ष की पूजा लोग करते चले आ रहे हैं । 

अर्पणा पांडे

Tuesday 12 July 2022

महालक्ष्मी की कथा

 एक ब्राह्मण औरत के 7 लड़के थे ,और उसकी देवरानी के एक लड़का। देवरानी गरीब  लेकिन महालक्ष्मी का व्रत पूजा  बहुत करती थी महालक्ष्मी की पूजा पूरे 16 दिन भादो की अष्टमी से शुरू होकर कुंवार की अष्टमी तक की जाती है इसमें 16दूर्वा  16 चावल 16 सूत का धागा उसमें 16 गांठ लगाकर देवी का पूजन किया जाता है । महालक्ष्मी हाथी पर सवार हैं ऐसे मूर्ति प्रतिमा बनाकर स्थापित की जाती है तत्पश्चात 16 दीपक जलाए जाते हैं मीठे पुए 16 16 चढ़ाए जाते हैं पेड़े का भी भोग लगाया जा सकता है अंत में कथा कहकर प्रसाद स्वयं लेकर घर परिवार पास पड़ोस सब को भी बांटा जाता है । जेठानी के तो 7 लड़के से वह थोड़ी-थोड़ी मिट्टी भी लाएंगे तो उनका हाथी 1 दिन में तैयार हो जाएगा किंतु देवरानी यह सोचकर हैरान परेशान थी कि उसका एक ही बेटा है वह कैसे मिट्टी लाएगा तो वह कुछ दिन पहले से ही कहने लगी बेटा थोड़ी थोड़ी मिट्टी ले आओ तो मैं हाथी बना लूं लेकिन बेटा कह देता की तुम चिंता ना करो मैं जिस दिन तुम्हारी पूजा होगी उस दिन हाथी भी ले आऊंगा ऐसा कह कर वह बात को टाल देता मां दिन पर दिन परेशान ही रहती और अपनी जेठानी के घर देखती कि उनके लड़के थोड़ी-थोड़ी मिट्टी ला रहे हैं 16 दिन बीत जाने पर जेठानी के बच्चों ने मिट्टी को गीला कर के मुलायम कर  लिया और हाथी तैयार कर दिया उस पर लक्ष्मी जी की मूर्ति भी स्थापित कर दी तत्पश्चात प्रसाद बनाया और पूजा करने बैठ गई इधर देवरानी हैरान-परेशान से इधर उधर देख रही थी दुखी मन से उसने मंडप सजाया और महालक्ष्मी को याद किया महालक्ष्मी का मंत्र जपने लगी।

 महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी 

हरि प्रिय नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे 

इस तरह उसने बराबर जाप करना जारी रखा उसकी सच्ची भक्ति से मां लक्ष्मी जी प्रसन्न हुई और उसके पुत्र का मार्गदर्शन किया उसे वह महावत के पास ले गई  लड़का सुबह से ही चिंतित था कि मेरी मां भूखी प्यासी होगी उसे मैं रोज आसरा देता रहा कि साक्षात हाथी लाऊंगा अब उसने महावत को राजी कर लिया  महावत ने खुशी खुशी हाथी को सजाकर कपड़े पहनाकर कंठी माला मस्तक पर तिलक सजाकर उसकेसाथ भेज दिया जब लड़का मां के सामने पहुंचा तो मां बहुत आश्चर्य से देखती रह गई और जल्दी से उसने द्वार पर ही हाथी की पूजा अर्चना की महावत ने अपनी कन्या को भी लक्ष्मी के रूप में सजा कर भेजा था ब्राह्मणी ने खूब धूमधाम से लक्ष्मी जी की पूजा की 16 दीपक जलाए इस तरह घर जगमगाने लगा जेठानी का अहंकार टूटा के उसके तो 7लड़के हैं  इधर देवरानी के घर हाथी और उस पर बैठी लक्ष्मी विराजमान तो दूर दर से लोग  आने लगे  और बेटे को भी आशीर्वाद दिया और कहानी  इस प्रकार कहीं ,

आ मोती दामोती 16  पाठ नगर में राजा

 रानी कहे कहानी तुमसे खाते तुमसे पीती 16 दुब के पोड़ा 16 चावल 16 सू त की एक कहानी महालक्ष्मी रानी ।

इस तरह जेठानी देखती रह गई देवरानी के घर साक्षात लक्ष्मी जी और हाथी देखकर उसका अहंकार चूर चूर हो गया सच्ची निष्ठा और भक्ति से देवरानी को साक्षात लक्ष्मी जी के दर्शन हुए बोलो महालक्ष्मी रानी की जय अर्पणा पांडे

Saturday 18 June 2022

सोमवती अमावस्या की कथा

 एक  ब्राह्मणी  की एक पुत्री थी और एक बहु दोनों पूजा व्रत हमेशा करते थे पूजा के बाद पंडित जी आशीर्वाद देते बेटी को कहते सुखी रहो और बहू से  कहते पुत्रवती हो घर वर समृद्धि सब बड़े । एक दिन ब्राह्मणी ने पंडित जी से पूछा कि आप बेटी को घर बर का आशीर्वाद क्यों नहीं देते? तब पंडित जी ने बताया कि जब यह पुत्री तुम्हारे पेट में थी तो तुमने सोमवती अमावस्या के दिन अपने पेट में तेल लगा लिया था और हल्दी का प्रयोग किया था इससे इसका विवाह का योग नहीं बन रहा है यदि विवाह हो गया तो इसे सुख नहीं मिलेगा ब्राह्मणी बहुत दुखी हुई और बोली महाराज इसका कोई उपाय तो होगा वह बताइए वरना बेटी  कुमारी कैसे और कब तक रखेंगे जब पंडित जी ने सोमवती अमावस का व्रत करने को कहा जो अमावस सोमवार को पड़े वह सोमवती अमावस्या कहलाती है इस दिन हल्दी और तेल को छूना मना है और पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है जिसे तुम और यह कन्या करें और हमेशा करती रहे उसकी पूजन विधि इस प्रकार है सोमवती अमावस्या के दिन सर्वप्रथम घर की साफ सफाई करें । स्वयं स्नान करें साबुन का हल्दी का और तेल का प्रयोग ना करें पूजन सामग्री में अपन बनाकर रख लें शुद्ध घी का दीपक जलाएं एक कलश शुद्ध जल लेकर पीपल के वृक्ष की फेरी लगाने के लिए चना ले ले चना अगर ना हो तो रेवड़ी किशमिश पेड़ा और इलायची दाना भी ले सकते हैं अपनी सामर्थ्य अनुसार गिनती में 108 या 51 रखें अब पुराने पीपल के वृक्ष पर सर्वप्रथम जलाभिषेक करें दीपक जला ले और अपन लगाएं तथा पीपल के चक्कर लगाएं और चक्कर लगाते समय चना या जो भी सामग्री हो से चढ़ाते जावे तत्पश्चात स्मरण करें आरती करें और चढ़ी हुई वस्तु को खा लें किसी कन्या को दान में दें प्रसाद रूप में उसे बांट दें स्वयं ना लें फिर घर में जो भी पदार्थ बनाएं उसमें हल्दी व तेल का प्रयोग ना करें उपवास भी ना रखें बस बाहर का खाना ना खाने इस तरह धीरे-धीरे बेटी पर लगा सोमवती अमावस क दोष कम होता जाएगा और घर   बर की समृद्धि उसे भी प्राप्त होगी ब्रह्मदेव के श्राप से उसे मुक्ति मिलेगी।


गणेश जी की कथा

 गणेश भगवान एक दिन बालक का रूप रखें इधर उधर घूम रहे थे मिट्टी की एक कटोरी हाथ में लिए उसमें जरा सा  दूध था और 4 दाने चावल अबकिसी को भी देखते तो  कहने लगते मेरे लिए खीर बना दो लोग बाग देखते और हंस देते और आगे बढ़ जाते इतने से दूध में खीर कैसे बनेगी लगभग सभी ने मना कर दिया 4 दाने चावल और जरा सा दूध कोई भी गणेश जी के लिए खीर बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ तभी एक बूढ़ी औरत आई और बालक को उदास देख कर बोली अरे बेटा क्यों तुम उदास हो बालक ने अपने मन की बात उस बूढ़ी औरत को  बताइ तब  बुढ़िया ने कहा अरे लाओ बेटा मैं तुम्हारे लिए खीर बनाती हूं और उसने कुछ लकड़ियों को एकत्र किया  और  आग जलाई छोटी सी बटोही में चार दाने  चावल के भी उस में डाल दिया लेकिन अचानक से उसने देखा कि वह बटोही तो दूध और चावल से लबालब भर गई है अब उसने दूसरे बर्तन में पलट लिया फिर भी बटोही खाली नहीं हुई इस तरह खीर बनती चली जा रही थी यह सब गणेश जी की कृपा थी और वे परीक्षा ले रहे थे कि मेरा काम कौन करेगा इस तरह वह बूढ़ी औरत गणेश जी की इस परीक्षा में सफल हुई थी उसने गांव भर को दावत में खीर खिलाई इस तरह गणेश जी को उस बूढ़ी औरत ने प्रसन्न कर लिया  था। अब रोज गणेश जी का भोग लगाने लगे और पूरे गांव में उसकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी इस तरह गांव में खुशहाली खुशहाली रहने लगे बोलो गणेश भगवान की जय

अर्पणा पांडे

Thursday 9 June 2022

भगवान विष्णु की कथा

 एक पंडित पंडिताइन थे पंडित जी बहुत सीधे थे पूजा बड़े मगन हो कर करते थे उन्हें जो भी मिल जाता उसी से वह गुजारा करते थे उनकी एक कन्या थी वह बड़ी हो रही थी इससे पंडिताइन को बहुत चिंता थी वह रोज पंडित जी से झगड़ा करती कुछ करो इस कन्या का विवाह कैसे होगा गुस्से में पंडित जी 1 दिन घर से निकल गए रास्ते में उन्हें विष्णु भगवान भेस बदल कर मिले बोले पंडित जी क्या बात है आज आप इतना परेशान क्यों हो सब पंडित जी ने सारी बात बताई कि पंडिताइन मुझसे रोज झगड़ते हैं की बेटी के लिए वर ढूंढो अब मैं क्या करूं तब विष्णु भगवान बोले यह आसरा लेते जाओ रोज कहना बृहस्पति को केला के पेड़ के नीचे शुक्रवार को संतोषी माता के पास शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे रविवार को सूरज के सामने सोमवार को भोले बाबा के पास और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बुद्ध को रिद्धि सिद्धि के पास इस तरह यह 7 दिन के नाम से पूजन करिए तो आपका काम हो जाएगा पंडित जी घर आए तो पंडिताइन ने पूछा क्या लाए हो तब पंडित जी ने बताया कि यह आसरा लाया हूं और पंडित जी ने पुनः सातों दिनों की कहानी सुनाई तो पंडिताइन चिल्लाई इससे क्या होगा तब बेटी बोलीलाओ पिताजी मैं करूंगी और उसने पिता जी से कहा आप कहो मैं भी कहूंगी  पंडित जी ने कहा हॉट बात टूटेंगे मतलब दरिद्रता जाएगी कोठी कुत्रा भरेंगे  मतलब संपन्नता आएगी 7 दिन को आश्रो बृहस्पति को केला के पेड़ के नीचे शुक्रवार को  संतोषी माता के मंदिर में सनी को पीपल के नीचे इतवार को सूरज के सामने सोमवार को भोले बाबा के पास मंगल को हनुमान मंदिर में बुध को रिद्धि सिद्धि के पास पूजा करने से बेटी का विवाह अच्छे घर में हो जाएगा। देखी है उसी दिन से पूजा करना शुरू कर दिया थोड़े दिनों में ही उससे अच्छा घर अलवर मिल गया यह सब देख कर उसकी मां भी विष्णु जी की पूजा करने लगी साथ में हर दिन की पूजा करती धीरे-धीरे उसके घर में सब कुछ अच्छा होने लगा।

कार्तिक पूर्णिमा की कथा

 एक लड़की तुलसी की पूजा रोज किया करते थे। यह सब वह अपने सहेली को करते हुए देख आई थी अभी से उसके मन में तुलसा के पूजा वह कार्तिक स्नान की धुन लग गई थी जबकि उसकी मां बिल्कुल नहीं करती थी और अपनी पुत्री को दिनभर चिल्लाती की पढ़ती नहीं है ना कोई काम करती है बस यह निर्जीव से पत्तों की पूजा किया करती है इस बात से लड़की को गुस्सा नहीं आता था वह कार्तिक मास में प्रातः काल जब तक आकाश में तारे रहते तब तक स्नान कर लेती थी और तुलसा जी पर जल चढ़ाते विधिवत पूजा करते रोज एक दीपक जलाते उसके पश्चात थी वह पानी पीती और भोजन करती थी इस तरह वह इतनी बड़ी हो गई कि वह भी  विवाह के योग्य हो गई  उसके माता पिता उसके लिए बर ढूंढ रहे थे और गुस्से में उसके लिए एक गरीब घर का लड़का देखकर उसका विवाह उससे कर दिया और बेटी से कहा अब करो जाकर तुलसी की पूजा और अपना भाग्य बनाओ हम भी देखते हैं दहेज के नाम पर उसके साथ तुलसी के पौधे जो सूख गए थे वह भी उन्होंने बेटी की विदा में दे दिए लड़की कुछ नहीं बोली प्रसन्न चित्र अपने पति के साथ घर पर आ गई सर्वप्रथम उसने घर की सफाई की आंगन के बीचो बीच तुलसी के पौधे को रोप दिया आसपास सूखे तुलसी के पौधों को भी लगा दिया दिन प्रतिदिन वह उनकी सेवा करती रही धीरे धीरे तुलसी हरियाने लगी चमत्कार की बात कि वह सूखे हुए पौधे भी हरे भरे होने लगे यह सब देख कर उसकी सास बहुत खुश होती और बहू के साथ काम भी करवा लेती कार्तिक मास आने पर सास बहू मिलकर पूजा करती प्रातः काल गंगा स्नान जाते और वापस आकर अपने तुलसी की पूजा करते हैं इस तरह परिवार में तीनो लोग खुश रहते तब धीरे-धीरे उनके घर में संपत्ति भी आने लगी। उधर मां के घर में दरिद्रता का वास होने लगा मां-बाप दोनों बीमार भी रहने लगे 1 दिन परेशान होकर वह बेटी के घर आए और वहां का हाल देखा तो स्वयं लज्जित हुए बोलेबेटा सच में तुमने अपने भाग्य से भगवान की पूजा से अपने घर को स्वर्ग बना दिया है उधर तुम्हारे आ जाने के बाद विपत्ति ही विपत्ति आ रही हैं तब बेटी ने समझाया मां तुलसा देवी की पूजा आप लोग अवश्य किया करिए तुलसा देवी विष्णु भगवान की प्रिया है और उनकी प्रिया जहां रहेंगी वहां संपन्नता ही होगी । इस तरह कार्तिक मास में सभी को यह कथा कह कर पूजा करनी चाहिए।

Tuesday 7 June 2022

कार्तिक पूर्णिमा की कहानी

 एक देवरानी जेठानी थे ,जिसमें देवरानी बहुत गरीब थे और जेठान अमीर थे देवरानी गरीब होने के कारण अपनी जेठानी के घर का सारा काम करने जाती थी बदले में उसे कुछ पैसे मिलते थे जिससे वह घर का खर्च चलाती थी पूजा पाठ में देवरानी का मन ज्यादा लगता था वह कार्तिक का महीना आते ही प्रातः काल उठते अपने घर का सारा काम करके नहा धोकर तुलसी  की पूजा करने के बाद अपनी जेठानी के घर काम करने जाती थी सुबह शाम पूजा करने के साथ ही एक दीपक तुलसी पर भी रखती थी यदि किसी दिन छूट जाता तो वह दूसरे दिन एक दीपक  और रखती इस तरह पूरा कार्तिक का महीना भर पूजा पाठ करके प्रसन्न रहती एकादशी वाले दिन श्री कृष्ण भगवान के साथ तुलसा का विवाह धूमधाम से करती तुलसा जी पर जल चढ़ाकर  सोलह सिंगार से उनकी पूजा करना उसका हमेशा का कार्य था तत्पश्चात 8 दिन के बाद पूर्णिमा वाले दिन  तेल के दीपक जलाकर पूजा करती भोग लगाते और  विदा करती थी इस काम में देर हो जाने के कारण जेठानी से उसे डांट  मिलती देवरानी बेचारी क्या करती चुपचाप सुनती अपने इष्ट देव में मगन रहती इस तपस्या से श्री कृष्ण भगवान बहुत खुश हुए और बालक के रूप में देव रानी के घर आए और बोले माता कुछ खाने को दे दो वह सोच में पड़ गई मैंने तो कुछ सामान ना होने से यह बालू के लड्डू बनाए हैं और वही चढ़ाए हैं किंतु संकोच करते हुए उस बालक को वही लड्डू प्यार से खिला दिए शाम का वक्त हो गया था अब बालक को नींद भी आ गई अचानक रात में  बालक ने कहा की माता जी अब मुझे  सोच के लिए जाना है वह बोली बेटा यहां आंगन पड़ा है चाहे जहां कर लो मैं साफ कर दूंगी उस बालक ने उस घर में सोच भी कर ली फिर बोला मुझे साफ करना है तब देवरानी बोली मेरे पल्लू से साफ कर लो  सुबह जब वह उठी तो देखा वह बालक वहां नहीं है और घर में सोना ही सोना भरा है उठाते रखते उसे देर हो गई इतने में जेठानी दौड़ी दौड़ी आई और देवरानी को डांट लगाई बोली आज तुम क्यों नहीं आई तब रानी ने अपने पूरी कहानी बताइजेठानी को बड़ा आश्चर्य हुआ अगले वर्ष जेठानी ने भी वही काम किया उसके पास पैसा होते हुए भी उसने बालू के ही लड्डू बनाए और पूरी नकल देवरानी की तरह की बालक के भेष में श्री कृष्ण भगवान आए और कहा माता मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दो तो जेठानी ने बालू के लड्डू ही दे दिए भगवान मन ही मन मुस्काए फिर बोले मुझे सोना है जेठानी बोली सो जाओ फिर रात में बालक रूप कृष्ण भगवान बोले मुझे सोच जाना है जेठानी ने कहा पूरा घर पड़ा है कहीं भी कर लो और मेरे पल्लू से  साफ कर लो कृष्णा जी मुस्कुराए और यह सब करके अंतर्धान हो गए सुबह होते ही बदबू की वजह से उससे रहा नहीं जा रहा था तब उसने देवरानी को फिर डाटा कि तुमने मुझे क्या बताया देवरानी बोली मैंने कुछ नहीं किया मेरे पास तो कुछ था नहीं इसलिए मैंने बालू के लड्डू बनाए थे और खिलाए थे आपके पास तो बहुत पैसा था आप मेवा के लड्डू खिलाते तो शायद  वे खुश होते और मैं तो बहुत पहले से कार्तिक पूर्णिमा की पूजा करती आ रही हूं आपने इस वर्ष  शुरू किया है मन साफ रखिए श्रद्धा रखिए सबुरी रखती तभी ईश्वर प्रसन्न होंगे l

अर्पणा पांडे

Monday 6 June 2022

हल छठ की कथा

 एक जंगल में गाय और बछड़ा पानी पीने के लिए तालाब की खोज कर रहे थे तभी उसे वृक्षों के बीच में एक तालाब नजर आया ,गाय और बछड़ा अपने प्यास बुझाने के लिए वहां पर पहुंचे दूसरी तरफ एक शेर भी पानी पी रहा था. गाय और बछड़े की लार से मिला हुआ पानी जब शेर ने  पिया  तो तुरंत वह बछड़े को खाने के लिए दौड़ा उसने सोचा जब इसकी लार इतनी मीठी है तो इसका कलेजा कितना मीठा होगा ? गाय ने तुरंत बछड़े को अपने सीने से चिपका लिया और शेर से वह बोली अभी मेरे और बच्चे घर पर हैं वे भूखे भी हैं मैं उन्हें दूध पिला कर आती हूं ,तब मुझे खा लेना शेर   हंसा और बोला ऐसे कोई स्वयं आता है ? गाय ने बचन दिया और शेर से कहा अच्छा पास में ही मेरा घर है तुम भी चलो जब मेरे बच्चों का पेट भर जाएगा तब तुम मुझे खा लेना शेर उसकी बात को मान गया और गाय के पीछे पीछे उसके घर के पास तक गया गाय ने अपने सोते हुए बच्चों को उठाया और प्यार से उन्हें दूध पिलाया और बच्चों से कहा आज दूध तुम लोग जी भर कर पी लो क्योंकि आज मैं शेर के पास मरने के लिए जा रही हूं. तभी एक छोटा बछड़ा दौड़ता - दौड़ता शेर के पास गया और हंस कर बोला शेर मामा शेर मामा आपके मैं पैर छूता हूं पीछे से सभी बच्चे बोलने लगे मामा प्रणाम, मामा प्रणाम तब शेर को भी दया आ गई और बोला अरे भांजे अब मैं तुम्हारी मां को कैसे खा सकता हूं वह तो मेरी बहन हुई यह सुनकर सभी लोग खुश हुए यह दिन भादो की छठ का दिन था ,तभी से माताएं अपने पुत्रों की मंगल कामना के लिए यह व्रत रखती है गाय और बछड़े की विशेष पूजा करते हैं शेर ने भी बच्चों को माफ किया तो शेर की भी पूजा की जाती है  l 

अर्पणा पांडे