Wednesday 19 November 2014

बच्चों की असीमित क्षमताओं को पहचाने और उन्हें संवारें।                                                                      बच्चों में असीम क्षमता है उस क्षमता को सर्व-प्रथम माँ-पिता को पहचानना बहुत जरूरी है.फिर  उसे संवारने की आवस्यकता होती है क्योंकि आजकल दुनिया में गरीबी ,नाइंसाफी ,और हिंसा इस कदर हांबी है कि बच्चों को सम्भालना   और उससे बचाना हर माँ-बाप के लिए दुस्कर होता जा रहा है ,अतः इसकी कामयाबी के लिए माँ-बाप को अपने बच्चे पर पूरा ध्यान देना आवस्यक है उसकी रूचि किस काम में ज्यादा है यह जानने के लिए उसे उसके टीचर से भी कंसर्ट करना चाहिए और जहां कमी हो उसे तुरंत दूर करने का प्रयास करना चाहिए ,शहरों में तो अभिभावक सजग होते है अभी ग्रामीण क्षेत्रों में सजगता की कमी है 
बच्चे देश के भावी कर्णधार हैं ,बच्चों का वर्तमान के साथ -साथ उसका भावी जीवन भी बहुत महत्व रखता है। उसे अपने को हर स्थित में मजबूत रखना है सुदृढ़ रखना है ऐसी स्थिति में माँ बाप को काफी सजग रहना   होगा। हमारे देश में जो उंच-नीच की खाई है वो काफी गहरी है गरीब माँ-बाप चाह  कर भी अपने होशियार बालकों को अच्छे स्कुल में नहीं पढ़ा सकते ,यदि अपनी भूख  को मार कर किसी तरह बच्चे को अच्छे स्कुल के टेस्ट में पास होने पर एडमिशन दिला  भी दिया तो प्रिन्सपल का पहला शब्द ये होता है की आप उसका होमवर्क देख सकेंगे या उसके लिए कोई ट्यूशन की आव्सय्कता पड़ी तो उसका खर्च वहन  कर सकेंगे ,ऐसा हर स्कुल में नहीं होगा ,लेकिन इन समस्याओं से 25 वर्ष पहले मै रूबरू हुई हूँ ,इसलिए मेरे व मेरे बेटे के जेहन में ये बाते कहीं न कहीं कभी न कभी चोट देकर आहत तो करती ही हैं। अच्छा इसके बाद आता है ,स्कूल जाया कैसे जाये फीस और ड्रेस के खर्चे में तो कटौती की नहीं जा सकती  यही खर्चा, पैदल या सवारी वाले सरकारी वाहनो से जाकर कम पैसे में काम चल सकता है उसके लिए घर के सभी सदस्यों को समय से पहले तैयार होना रहता है जब इन हालातों में बच्चा स्कुल में पढ़ता है तो कहीं न कहीं उसके मन में हींन भवना बैठने लगती है ऐसे समय में क्या किया जाए क्या उस स्कुल में बच्चों को पढ़ाया न जाये ? ये समस्या हर मध्यम परिवार के लोगों  की है जिनके बच्चे एक अच्छे नामी -गिरामी स्कूल में पढ़ना चाहते हैं लेकिन मन मार कर किसी साधरण स्कूल में दाखिला ले लेते है वे बच्चे ऊँची शिक्षा नहीं पाते ऐसा नहीं है किन्तु उनके मन में मलाल रह जाता है की मै वहां नही पढ़ पाया तो ऐसी हीन - भवनाओं को बच्चे के मन में नहीं आने देना चाहिए वैसे अब बच्चों के अंदर भी बड़ा बदलाव आया है आज इंटर नेट के जरिये वे सहजरूप से बढ़ा से बड़ा ज्ञान अर्जित करले रहें है ,अभी हांल ही में हमारे u.p के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी ने गरीबों के बच्चों को लैप -टॉप बांटकर उन्हें उनके हौसलों की उडान भरने की कोशिश की है 
बच्चों के लिए परिवार में एक व्यवहारिक सच होना चाहिए संवेदनशीलता होनी चाहिए और उन्हें कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता हंसी- ख़ुशी से निकाल देने की होनी चाहिए ये सब गुण आप में होंगे तो बच्चा भी उसी का अनुकरण करेगा बच्चे सहजता से इसे अपने में आत्मसात कर ही लेंगे ,और उन्हें अपने परिवार के लिए एक जिम्मेदार सदस्य होने का अहसास होगा। 
 यह बात तो आज सही है की अभिभावक आज के समय में बच्चों को उतना समय नहीं दे पाते है और बच्चों से अपेक्षाएं बहुत रखने लगे है ऐसे में बच्चे टेलीविजन  व इंटरनेट का सहारा लेते है भौतिकता की चकाचौंध में बच्चों की रुचियाँ भी बदल रहीं है तो हमारा आप का कर्तव्य है की प्यार से बच्चों को हमझायें कि क्या   उचित है क्या नहीं फिर आप उनसे अच्छे बनने की अपेक्षा करें ,
आज हमारे प्रधान मंत्री जी भी अच्छे हुनर को आगे बढ़ाने के विभिन्न प्रयास कर रहे है वे कहते है की बचपन से ही बच्चे की जिस काम को करने की रूचि हो उसके लिए उसे वैसे  ही स्कूल में दाखिला मिले जिससे वह उस कार्य में मन लगाकर काम करेगा।और अपने किये गए काम में सफलता अर्जित करेगा। तो आज हर माता पिता को अपने बच्चे के हुनर को पहचानने और उसे उसको पंख देने की आवश्य्कता है उसकी क्षमताओं को पहचाने और ऊँची उड़ान भरने के काबिल बनाएं।                                                                                  
अर्पणा पाण्डेय। 
09455225325

Thursday 6 November 2014

कार्तिक-पूर्णिमा पर तुलसीबंदन-- तुलसा महारानी नमो-नमो हरि की पटरानी नमो-नमो -- कहाँ बिराजें तुलसा , कहाँ बिराजें रामा ,और कहाँ बिराजें रे मोरे सालीग्रामा माटी बिराजे तुलसा ,मंदिर बिराजे रामा ,और सिहंघासन बिराजे मोरे सालीग्रामा क्या ओढ़े तुलसा , क्या ओढ़े रामा, और क्या ओढ़े रे मोरे,सालीग्रामा साल ओढ़े तुलसा , दुशाला ओढ़े रामा ,काली-कमली (कम्बल )के उढ़ैय्या मोरे सालीग्रामा... तुलसा महारानी नमो-नमो हरि की पटरानी नमो-नमो। क्या खाएं तुलसा ,क्या खाएं रामा ,क्या खाएं रे मोरे सालीग्रामा ,लाडू खाएं तुलसा ,पेड़ा खाएं रामा ,दूध के पिलैया मोरे सलीग्रामा। तुलसा महारानी नमो-नमो ....... (अर्पणा) bachpan se apni maa ke sath har saal kartik maah me tulsi ki puja kar gati aa rahi hun ,is bar akele hi...aap logon ke sath gati hun.

Monday 3 November 2014

बच्चों की असीमित क्षमताओं को पहचाने और उन्हें संवारें।                                                                      बच्चों में असीम क्षमता है उस क्षमता को सर्व-प्रथम माँ-पिता को पहचानना बहुत जरूरी है.फिर  उसे संवारने की आवस्यकता होती है क्योंकि आजकल दुनिया में गरीबी ,नाइंसाफी ,और हिंसा इस कदर हांबी है कि बच्चों को सम्भालना   और उससे बचाना हर माँ-बाप के लिए दुस्कर होता जा रहा है ,अतः इसकी कामयाबी के लिए माँ-बाप को अपने बच्चे पर पूरा ध्यान देना आवस्यक है उसकी रूचि किस काम में ज्यादा है यह जानने के लिए उसे उसके टीचर से भी कंसर्ट करना चाहिए और जहां कमी हो उसे तुरंत दूर करने का प्रयास करना चाहिए ,शहरों में तो अभिभावक सजग होते है अभी ग्रामीण क्षेत्रों में सजगता की कमी है आगे। .......                                                           

Wednesday 17 September 2014

गाय की रक्षा में --- राजा दिलीप ने गाय की खातिर अपना सर्वस्व भेंट चढ़ाया था। गोरक्षा सीट गुरु-गोविन्द सिंह ने सुत  की बलि चढ़ाई थी.,  सिक्खों के इतिहास को देखो मन की तज कुटलाई रे ,महाराज रंजीत सिंह ने गोबध दिया हटाया था। ब्रिटिश राज्य में काशी भीतर एक हरिश्चंद्र उपजाया था। सबसे पहले गो-गुण पुस्तक  उसने ही बनवाई थी। नागपुर के चीफ-कमिश्नर ने देखो क्या बतलाया था ? गो-हित भूमि- दान जो देवे,उस पर कर ना लगवाई रे। गवरमिंट पंजाब ने गो-हिट सर्कुलर छपवाया था -आम-तौर पर बूचड़ खाने दीजो सब उठवाई रे। वाइसराय जब बम्बई आये आज्ञा ये फ़रमाई रे -भारत-माता समझो  गो को ,लेक्चर में दर्शाया  था ,---आगे

Tuesday 16 September 2014

जान  हिंदी है ! तो हिंदुस्तान मेरा अंग है                                                                                                           गर्भ से ही हिन्द बच्चों के ये रहती संग है ,                                                                                                       देश-भाषा ही के बल पर आज ये मजबूत है ,                                                                                                   धन-व बल जातीयता में सब तरह भरपूर है ,                                                                                                 कौन है जो देश भाषा का नहीं रखता गुमान।                                                                                                  रूस ,अमरीका व यूरोप चीन है या जापान।                                                                                                     देश-भाषा ही के बल पर आज वे मशहूर हुए।                                                                                                 धन व बल जातीयता में सब तरह भरपूर हैं।                                                                                                   राह सीधी  छोड़ कर उलटे जो हम चलने लगे।                                                                                                हो गया उल्टा बिधाता काम सब उलटे हुए।                                                                                                     हम- सबको काँटों सी चुभे हिंदी गरीब   क्यों न हो हों फिर जमाने में सबों से बद नसीब                                                                          

bhart varsh hmara hai

हमें अपना देश भारत ,प्राणो से भी प्यारा है। हम हैं भारत के भारत-वर्ष हमारा है।                                            बिताया खेल ऋषियों ने लड़कपन गोद  में जिसके।पुराना जगमगाता  भारत हमें प्राणों से भी प्यारा है।              सुघड़ रन बाँकुरे ,कवि-लेखकों की खानि है जिसमे। अखिल अनमोल रत्नो का वो सुख-सागर हमारा है।           हम है कुर्बान उसके जंगलों और टीलो पर। ये जीवन  हम कर दें निछावर ,मनमोहनी झीलों पर।             जमीं गद्दा हमारा है मुलायम बिंध्य तकिया है। हिमालय है सिपाही तो सिंध भी सेवक हमारा है।                 दुखी है उसके दुःख में तो ,सुखी है उसके सुख मे भी , हम है संतान उसकी तो वह रक्षक पिता  हमारा है.           न छोडूंगी ना छोड़ूगा फटे  इस तेरे दामन को , कहूँगी मरते दम  तक कि ये भारत-वर्ष हमारा है   ०        अर्पणा पाण्डेय। 9455225325                             

Saturday 6 September 2014

 बच्चों में ज्ञानेन्द्रिय विकास हेतु नृत्य,संगीत ,और नाट्य-कला का ज्ञान होना बहुत जरूरी ==                           बच्चे निरंतर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं. किसी भी वस्तु को  देखकर छूकर और कानो से सुनकर अपनी प्रतिक्रिया देते रहते हैं कभी-कभी सूंघकर और चखकर भी वे सवाल-जबाब करते हैं एकांत में वे कभी सोचते-विचारते  भी नजर आ जाते हैं ऐसे में उन्हें देखना भी अति आवस्यक हो जाता है ,  वे विचार करते हैं और दूसरों तक अपनी बात पहुँचाना भी सीखते हैं और अपने भावों पर नियंत्रण करना भी सीख जाते हैं जब बच्चा बोल नहीं पाता  है तब जब  उससे बात करते हैं तो वह आँ ,ऊं व अपने चेहरे के भावों को प्रकट करता है जैसे वह आपकी हर बात का जबाब देता हो ,हाथ-पैर चलाकर हंस कर। रो कर खूब बातें करता है जिन्हे  सबसे निकटम व्यक्ति  माँ सब समझ लेती है। निःसंदेह नारी में यह क्षमता तो प्रकृति-प्रदत्त है वह बालमन चिंतन भावना संवेदना और आकांक्षा की सबसे बड़ी अध्ह्येता है। इन्ही क्रियाशील ज्ञानेन्द्रिय के विकास के लिए माता-पिता को सदैव तत्पर रहना चाहिए।                                                                                                                                                     बच्चे अपनी शारीरिक गतिविधियों से यानि नृत्य और अभिनय द्वारा ,अपनी आवाज के माघ्यम से संगीत का ज्ञान प्राप्त करके अपनी ज्ञानेन्द्रिय का विकास आसानी से कर सकते हैं बस उन्हें थोड़ी सहायता और नियमित अभ्यास की आव्सय्कता होती है। यही कार्य  आदत बन जाने पर आसान हो जायेगा और उन्हें इस क्रिया में आनंद आएगा इस प्रकार उनके शारीरिक और मानसिक कार्य में बृद्धि होगी।  जब बच्चे ३,४ वर्ष के हो तो उन्हें स्वाद,गंध और स्पर्श के माध्यम से वस्तुएं पहचानने को दे ,जैसे पुराने कपड़ों के छोटे-छोटे थैले सील ले अब किसी में प्याज,किसी में आलू,सुखी धनिया ,मसले ,रबर,चाक ,व अन्य पदार्थ डालकर बच्चों की आँखों में पट्टियां बांध दे फिर उन्हें गंध पहचाने को कहे आप देखेंगे की बच्चे कितनी रूचि से खेल-खेल में सूंघने की क्रिया का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।  इसी प्रकार चखकर पहचानो उन्हें मीठा,खट्टा,  कड़ुआ ,फीका आदि सामान दे उनकी आँखों में पट्टी बांधकर चखाएं फिर पूछे कि स्वाद कैसा है। बालक से यह भी पूछे की कि उसने कैसे पहचाना ? इस तरह स्वाद की विशेसता बताकर उन्हें प्रोत्साहित करें।  इसी प्रकार किसी वास्तु को श्पर्श द्वारा यानि वास्तु को छूकर उसे पहचानने के लिए प्रोत्साहित करें ,इसके लिए कुछ कुदरती बस्तुये जैसे बीज,कंकड़,बालू मिटटी,कपड़ा , शीप , मोती आदि अन्य पदार्थ हो सकते है इन वस्तुओं को एक थैले में डालकर बच्चो का हाथ उसमे डलवाकर ,बिना देखे पूछे की वह कौन सी वस्तु है ,व वह कैसा है खुरदरा है या चिकना हैं। सख्त है या मुलायम है ? भरी है कि हल्का है ? थोड़े  बड़े बच्चों से आप पूछ सकते है कि वह कैसा व किस काम आता है ? इस प्रकार सही जानकारी देकर आप उनका ज्ञानेन्द्रिय विकास सहजता से कर सकते हैं। अब बच्चों से गतिमय कार्य कराएं जैसे कोई कविता सुना कर हाथों और भावों से गति करेंएवं बच्चों को आपस में हाथ पकड़कर घूमने को कहें,शब्दों के हिसाब से वे एक्शन करें,खेल को मनोरंजक बनाने के लिए कोई ब्ब्जाने वाली चीज लेकर गाने व कविता  के साथ बजाकर उन्हें खिलाये। इसी प्रकार नाटक या अभिनय द्वारा ,बच्चो को रेलगाड़ी के आकर बनवाकर छुक -छुक की आवाज निकालकर घुमायें. इस तरह उनमे स्वयं ही अनुभव ,कल्पना और अभ्व्यक्ति का सामंजस्य स्थापित होगा। ताल,गति और ध्वनि के माध्यम से नृत्य,गीत और नाट्य तीनो कलाओं का ज्ञान होगा नाटकीय खेलो में छोटे बच्चों को गुड़िया गुड्डे की शादी ,घर बनाना ,डाक्टर-मरीज का खेल ,कुर्सी दौड ,इन  खेलों से बच्चो का मनोरंजन भी होगा। और साथ ही शारीरिक विकास के साथ ज्ञानेन्द्रिय विकास मजबूत होगा।   (अर्पणा पाण्डेय )                          

Wednesday 6 August 2014

Aparna Pandey aparnapandey1961@gmail.com

बच्चों को अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाएं 
अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां
की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी
सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे
पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की
महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी
होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे
बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति
विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।
सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना
चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने
दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी
मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का
असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान
न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा
पर श्रद्धा हो और गर्व मह सूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का
ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी
शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की
चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें
स्वयं की प्रशंसा न करें ,न ही किसी का अहित  करें। पाइथागोरस की उक्ति
है कि "जानवर जितना ना बोलने सेपरेशान रहता है इंसान उतना ही बोलने की
बजह से परेशान रहता है "
दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण
करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार
करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने
वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और
तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति
ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान
करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही
खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी
आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह
हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे
अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन
का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या
है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है।
बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये
गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए।
विवाह के बाद पीटीआई-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करे ,बात-चीत में तू और
मै की जगह" हम "की भावना रखे अक्सर घरों में तुम्हारे बाप या मेरे बाप की
या बात करके झगड़ा होता है.रूखे व कड़े शब्दों में कभी बात न करे। घर को
ससफ सुथरा रखे बच्चो की परवरिश अच्छे ढंग से करे आपस में मिलजुल कर रहना
भी भारत की संस्कृति का मान बढ़ाता है।
भारत अपनी धार्मिक ,शैक्षणिक ,आध्यात्मिक एवं कलात्मक धरोहरों के लिए भी
प्रसिद्द है देश-विदेश के लोग यहाँ की संस्कृति से मुग्ध होकर खिचें चले
आते हैं। भारत पुरे विश्व को एक परिवार की तरह देखता है।" बसुधैव
कुटुंबकम "और " सर्वे-भवन्तु सुखिनः ,सर्वे-सन्तु निरामया "यहाँ का
मूलमंत्र है। सुख और शांति की प्राप्ति हमारी संस्कृति के द्वारा ही संभव
है हमारी  तमाम धरोहरें कई विदेशी आक्रमणों के वावजूद भी आज सुरक्षित हैं
आज दूरदर्शन पर दिखये जाने वाले भड़काऊ दृश्य अवश्य हमारी संस्कृति पर
हमला कर रही है उसे रोकना चाहिए। कभी दूरदर्शन पर रामानंद सागर का सीरियल
रामायण व महाभारत के लिए सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। उसे जितनी
प्रसिद्धि मिली शायद ही कभी किसी सीरियल को मिली होगी ,इधर दो फिल्मे भी
बहुत हिट हुई एक" मुन्ना भाई लगे रहो " जिसमे संजय दत्त ने गांधी जी के
आचरण को उतार  कर सत्य और अहिंसा के रस्ते पर चल कर लोगो का मन जीता
जिसका असर सड़कों तक पर दिखाई दिया। दूसरी "चक दे इण्डिया "जिसमे सभी
अलग-अलग स्टेट से आई क्षात्राओं ने अपना परिचय नाम के साथ इंडिया कहकर
दिया तो एक मिशाल बन के सामने आया, यही हमारी भारतीय संस्कृति है जिसे
सुरक्षित रखना हमारा धर्म है इसे हम बच्चो को सिखा कर आगे बढ़ाये यही
हमारी भरतीय संस्कृति है।
अर्पणा पाण्डेय। फोन --09455225325


Aparna Pandey aparnapandey1961@gmail.com

2:54 PM (21 hours ago)
to ajay
अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां
की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी
सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे
पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की
महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी
होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे
बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति
विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।
सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना
चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने
दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी
मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का
असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान
न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा
पर श्रद्धा हो और गर्व मह सूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का
ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी
शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की
चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें
स्वयं की प्रशंसा न करें ,न ही किसी का अहित  करें। पाइथागोरस की उक्ति
है कि "जानवर जितना ना बोलने सेपरेशान रहता है इंसान उतना ही बोलने की
बजह से परेशान रहता है "
दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण
करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार
करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने
वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और
तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति
ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान
करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही
खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी
आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह
हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे
अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन
का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या
है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है।
बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये
गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए।
विवाह के बाद पीटीआई-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करे ,बात-चीत में तू और
मै की जगह" हम "की भावना रखे अक्सर घरों में तुम्हारे बाप या मेरे बाप की
या बात करके झगड़ा होता है.रूखे व कड़े शब्दों में कभी बात न करे। घर को
ससफ सुथरा रखे बच्चो की परवरिश अच्छे ढंग से करे आपस में मिलजुल कर रहना
भी भारत की संस्कृति का मान बढ़ाता है।
भारत अपनी धार्मिक ,शैक्षणिक ,आध्यात्मिक एवं कलात्मक धरोहरों के लिए भी
प्रसिद्द है देश-विदेश के लोग यहाँ की संस्कृति से मुग्ध होकर खिचें चले
आते हैं। भारत पुरे विश्व को एक परिवार की तरह देखता है।" बसुधैव
कुटुंबकम "और " सर्वे-भवन्तु सुखिनः ,सर्वे-सन्तु निरामया "यहाँ का
मूलमंत्र है। सुख और शांति की प्राप्ति हमारी संस्कृति के द्वारा ही संभव
है हमारी  तमाम धरोहरें कई विदेशी आक्रमणों के वावजूद भी आज सुरक्षित हैं
आज दूरदर्शन पर दिखये जाने वाले भड़काऊ दृश्य अवश्य हमारी संस्कृति पर
हमला कर रही है उसे रोकना चाहिए। कभी दूरदर्शन पर रामानंद सागर का सीरियल
रामायण व महाभारत के लिए सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। उसे जितनी
प्रसिद्धि मिली शायद ही कभी किसी सीरियल को मिली होगी ,इधर दो फिल्मे भी
बहुत हिट हुई एक" मुन्ना भाई लगे रहो " जिसमे संजय दत्त ने गांधी जी के
आचरण को उतार  कर सत्य और अहिंसा के रस्ते पर चल कर लोगो का मन जीता
जिसका असर सड़कों तक पर दिखाई दिया। दूसरी "चक दे इण्डिया "जिसमे सभी
अलग-अलग स्टेट से आई क्षात्राओं ने अपना परिचय नाम के साथ इंडिया कहकर
दिया तो एक मिशाल बन के सामने आया, यही हमारी भारतीय संस्कृति है जिसे
सुरक्षित रखना हमारा धर्म है इसे हम बच्चो को सिखा कर आगे बढ़ाये यही
हमारी भरतीय संस्कृति है।
अर्पणा पाण्डेय। फोन --09455225325

                     जरा बतादो भारत वासी  ?  समय निकलता जाता है।                                                                                      जहाँ तुम्हारा, जन्म हुआ उस मिटटी से क्या तुम्हारा नाता है ?                                                                        क्या तू यह नहीं जानता कि पहले-पहल तू  किस पर सोया था?                                                                        धरती पर आते ही तू कँह -कँह कर रोया  था ,                                                                                                  और जैसे-जैसे तू बढ़ता जाता वैसे तू भूला जाता है।                                                                                        समय निकलता जाता है                                                                                                                                                                        अर्पणा पाण्डेय                                                                                                                                                                                                                                                                            न जाने इस हिन्द- देश की क्या दुर्गति होने वाली है।                                                                                       गेहूं सड़ते जाते ,किसान मरते जाते ,                                                                                                              भ्रस्टाचारी  बढ़ती जाती , जनसंख्या भी बढ़ती जाती                                                                                      वाहन है बढ़ते जाते , सड़के छोटी होती जाती                                                                                                  पेड़ काट कर बना लिए घर बची अब सूखी  डाली है।                                                                                        फिर भी हम सब कहते जाते  भारत की शान निराली है।                                                                                                                        अर्पणा पाण्डेय 
पक्षी गणों का झुण्ड गगन में कैसा है आता जाता 
वह सवतंत्रता सुख क्या ? जाने जो ,
पक्षी है दुर्भागा ।
एक पंक्ति में सभी चले हैं 
सबका सुखद एक ही रंग 
देखो आगे जो जाता है 
सब जाते हैं उसके  संग ।
मीठे-मधुर सुरों में मिलकर
 कैसा  गाना गाते हैं.? 
पर वे गाना गा- गाकर 
पिंजड़े में कैदी पक्षी के -
 मन को तो , तरसाते हैं । 
उस पक्षी का जीवन क्या है 
जो पराधीन से है  बंधा हुआ 
फिर भी देखो बच्चों उसको 
चकित हो गया सुनकर उनके मीठे-मीठे स्वर ।
भौचक्का सा लगा घूमने,
 उस पिंजड़े के ही भीतर 
बहुत तड़पता है ,फड़फड़ाता है 
फिर भी उनके सुर में सुर मिलाता है ।
भूल गया वह सारे सुख-दुःख 
अब पिंजड़े का   ही आदी  है 
उसके लिए इसी पिंजड़े में,
 स्वर्ग -नरक  दुःख- शादी है ॥

अर्पणा पाण्डेय 
०९८२३५४९११४

Saturday 2 August 2014

दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है। बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए। 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 

Thursday 31 July 2014

 बच्चों को ,अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाएं।                                                                                            अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।   
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।                                          सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा पर श्रद्धा हो और गर्व महसूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें ..................arpana
मित्रों , २ जुलाई को पथरी का ऑपरेशन करा के अब स्वस्थ हो गई हूँ ,पुनः f. b पर सक्रीय !                               खुली किताब -----      जिंदगी और किताब का गहरा रिस्ता है इसीलिए कभी-कभी ये जुमला भी कहा जाता है कि फलां कि जिंदगी एक खुली किताब है ,लोगों से सुनकर और किताबों से पढ़कर जिंदगी की समझ और बढ़ती है। जिंदगी संवरती है ,तभी तो शायर कहता है --"दर्द चेहरे पर पढ़ रहा हूँ मै  ,एक कहानी फिर गढ़ रहा हूँ मै  "                                                                                                                                                              निर्धन कवि के पास क्या ?  कुछ पीड़ा कुछ प्रीत और कुछ अनदेखे स्वप्न हैं दर्द भरे कुछ गीत                           जब तक दर्द आंसू नहीं बनता तब तक कविता नहीं बनती ,   अर्पणा पाण्डेय 

Tuesday 10 June 2014


प्रेम बहुत कुछ सिखाता है ,इससे बढ़कर कोई पाठशाला नहीं ये तो एक ऐसा दीपक है जो मन के एक कोने में अगर सजाकर रख लिया जाये तो समय की आँधियों और तुफानो से बचा जा सकता है।
 प्रेम बिना जिंदगी कुछ भी नहीं
 एक राख  का ढेर सी हो जाती है जिंदगी 
जिसमें  बस चिंगारियां ही होती है ,
वो ज्वाला नहीं जिससे रौशनी और तपिश हो .

Sunday 25 May 2014

बच्चों की छुट्टियाँ और हमारा कर्तव्य। (बच्चे और हस्त-कलाएं )

बच्चों के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलु है ,उनका रचनात्मक विकास। रचनात्मक विकास यानि बच्चे अपने नन्हे-नन्हे हाथों से नई -नई वस्तुएं बनायें। इस रचनात्मक खेल को खेलते समय बच्चे अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अपने परिवेश की खोज करते हैं अपने आस-पास बिखरी चीजों को देखते हैं छूते हैं और महसूस करते है। फिर समझते हैं। वे अपने अनुभव द्वारा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए जब भी हम बच्चों के लिए कला-या हस्तकला की बात करते हैं तो इसका मतलब स्वयं बच्चो के हाथों द्वारा कुछ करने या वस्तुएं बनाने से होता है।
यह आवस्यक नहीं है की हम बच्चो को महंगे से महंगा सामान ही लाकर दें बल्कि घर पर कई ऐसी बेकार की वस्तुएं पड़ी रहती हैं ,जिनका उपयोग करके बच्चो की रचनात्मक प्रवृत्ति को जगाया जा सकता है। हम उनकी हस्त कुशलता से उनकी क्षमताओं को विकसित करके अपने तथा बच्चों के खाली  समय को काफी हद तक उपयोगी बना सकते हैं।  इस कार्य में घर में पड़ी अनावस्यक समझ कर फेंकी गई चीजे बहुत काम  है,  जैसे --दफ्ती के पुराने डिब्बे ,अलग-अलग आकर के कार्ड -पोस्टकार्ड ,पुरानी कापी - किताबों की जिल्द ,तथा पुरानी चूड़ियाँ इत्यादि, सहायक सामग्री  - के रूप में लेइ  या गोंद ,कैची ,रंग पेन्सिल ,सुई-धागा ,तथा कपड़ों की छोटी-छोटी कतरने पर्याप्त होंगी। सबसे पहले तो बच्चो को इन्हे व्यवस्थित ढंग से रखने को कहें। इसी तरह काम हो जाने के बाद भी बचे हुए सामान को यथास्थान रखवाकर सफाई की ओर भी ध्यान दिलवाएं यदि बच्चे एक से अधिक हो तो सबको एक ही काम न देकर अलग-अलग तरह का काम दें। इससे उनके क्रिया-कलापों का निर्देशन करना सरल हो जाता है। हाँ, जब  बच्चे कार्य करने लगे तब उन्हें नक़ल करने  के लिए कोई अन्य नमूना  न दे ,इससे बच्चो के रचनात्मक विकास में  अवरोध उत्पन्न हो सकता है । इससे वह कुछ अलग करने के  लिए अपनी ज्ञानेन्द्रियों तथा मस्तिष्क पर जोर डालकर कुछ सोचेगा ,उस समय आप उसकी रचना देखें और उसको विकसित करने में सहयोग करें।                        
छोटे बच्चो को कागज -पेन्सिल देकर भिन्न-भिन्न तरह के रेखचित्रों को खीचने के लिए प्रेरित करें। आप कुछ रेखाएं खींचकर उसको चित्र बनाने के लिए कहें ,फिर आप देखेंगे कि बच्चा किस तरह अपनी स्मरण शक्ति पर जोर लगाकर क्या सोचता है। और क्या बनाता है यह क्रिया स्लेट और चॉक ,विशेस कर रंगीन चाक द्वारा भी की जा सकती है भृमण के दौरान रेतीले स्थानो पर बच्चों के हाथ में एक डंडी पकड़ाकर उसकी रचनात्मक क्रियाओं को विकसित किया जा सकता है पुराने कार्डों से पंखा बनाना ,कागज से नाव फूल ,लिफाफा बनाना ,वॉल हैंगिंग जैसी अनेक हस्त-कलाएं है जिन्हे बच्चे बहुत ही मन लगाकर करेंगे। रंगीन कागज से घर, पेड़, फूल, पत्ते ,सूरज आदि की कटिंग करके  दफ्ती पर चिपकाकर  सीनरी बनाई जा सकती है बच्चे उनसे क्या-क्या बनाते है ये उनकी रचनात्मक सोच पर छोड़ दें ऐसा करते वक्त आपका बराबर उनके पास बैठना भी  आवस्यक नहीं है। बस आप बीच-बीच में देखती जाएँ।
बच्चो में कलात्मक अभिरुचि के विकास में एक क्रिया और  महत्वपूर्ण हो सकती है
बच्चों को कागज के कुछ टुकड़े करने को कहें और उन टुकड़ों को एक जगह एकत्रित कराएं फिर आप एक कार्डसीट  पर पेन्सिल से किसी पशु-पक्षी या फूल का चित्र बना दे अब बच्चे से कहे कि उन टुकड़ों को लेइ या गोंद  लगाकर चित्र भरें पूरी जगह भर जाने के बाद मुख्य स्थान जैसे आँख ,कान ,सींग,में अलग रंग के टुकड़े  चिपकने को कहें। इससे आप स्वयं देखेंगी कि बच्चे कितनी तल्लीनता के साथ इस कार्य को कर रहे हैं।
यह क्रिया बच्चों में आगे चल कर "कोलाज़"  कला के प्रति अच्छी अभिरुचि जाग्रत करने में सहायक होगी।
इसी तरह लकड़ी के बुरादे,नारियल के खोल और जटाओं से बच्चो को कुछ बनाने के लिए कहें ,नारियल के खोल के आधे भाग को चेहरे का रूप बनाने को कहें और उस पर पुराने कार्ड से टोपी का आकार  बनवाएं और पहनाएं वे अपनी सोच व कल्पना शक्ति से टोपी  पर रंग बिरंगी आकृतियां भी बना सकते हैं बस आप दिशा निर्देश देती जाएँ। नारियल की जटाओं ब्रश से झाड़कर इस मानवाकृति के बालों के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। पुरानी ऊन ,सुतली  तथा धागे के सहारे खूबसूरत गुड़िया भी बनाई जा सकती है। रंगीन कागज की कुछ पत्तियां काटकर बच्चे को दे दें,फिर उन्हें चटाई की तरह बुनना सिखाएं । इस तरह अनेकों क्रियाएँ आप अपनी कल्पना शक्ति के माध्यम से विकसित कर सकती हैं।
आप देखेंगी कि खेल-खेल में किये गए इन कामों से बच्चों का मनोरंजन भी होगा और रचनात्मक विकास भी ,बच्चों के इन कामो को सराहें और देखे कि उन्होंने क्या सीखा। बच्चों के साथ बच्चा बनकर आपको अपना बचपन लौटता नजर आएगा और इस तनाव भरे जीवन में कुछ देर ही सही ,सुखद अहसासों की अनुभूति  होगी।
           
                          अर्पणा पाण्डेय
                          फोन ० ९४५५२२५३२५

 

Saturday 3 May 2014


 दीवारें ----------
हर एक घर मे दीवारें हैं
और उन दीवारों मे बन्द दरवाजे हैँ

सूरज अन्दर धुसने को बेताब है
सुबह वह मुस्काती - लालिमा लिये
यहाँ-वहां चारों ओर देखता है
बंद दरबाजों को देख क्रोध मे जलता है तपता है
और  फिर -
शाम को  निराश होकर ठंडा पड़  जाता है

अर्पणा पाण्डेय ---

Tuesday 22 April 2014

bhashavad


                                           समीक्षा
भाषावाद : एक निर्रथक अवधारणा

भाषावाद न तो कोई एक सम्पूर्ण विचार है ,और ना ही कोई स्वस्थ सामाजिक अवधारणा ,चूँकि वादो का नजदीकी रिश्ता विवादों से भी मन जाता है। अतः दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं की भाषावाद की वकालत करने वाले व्यक्तियों या समूहों की रूचि एक निरर्थक विवाद करने में ज्यादा दिखाई देती है ना की भाषा के प्रचार-प्रसार में ,महाराष्ट्र -कर्णाटक का सीमा विवाद अभी भी सुलझ नहीं पाया है इसके पीछे मुख्य कारन भाषा संबन्धी विवाद ही है। महाराष्ट्र के साथ-साथ देश के कई अन्य भागों में भी अक्सर भाषाई विवाद अपना सिर उठाने लगता है ।
भाषा के ऊपर ऐसे ही विवादों की चर्चा करने के लिए फरवरी, 2011 महाराष्ट्र के सीमांत नगर उदगीर के शिवाजी महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नै दिल्ली के सहयोग से एक संगोष्टी का आयोजन किया गया था। इस संगोष्टी में महाराष्ट्र ,कर्णाटक और मध्यप्रदेश के सीमा वर्ती क्षेत्रों के विभिन्न विश्व विद्यालयों से जुड़े हिंदी प्रध्यापकों और शोधार्थियों के साथ-साथ कुछ हिंदी लें ख्कों को भी भाषावाद के विभिन्न पक्षों पर अपने प्रपत्र पढ़ने और चर्चा करने हेतु आमंत्रित किया गया था।
संगोष्ठी के तीन वर्ष वाद इसके संयोजन डाक्टर विश्वनाथ किसन भालेराव के संपादन में उक्त अवसर पर पढ़े गए चुनिंदा आलेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक में कुल 43 आलेख हैं। विशेष बात ये है की दो-तीन आलेखों को छोड़कर सभी गैर हिंदी भाषी लेखकों द्वारा लिखे गए है जो की उनके भाषा एवं भाषा विवाद सम्बन्धी निजी अनुभवों पर आधारित हैं।
पुस्तक का पहला आलेख "भाषावाद और हिंदी " शीर्षक से श्री कौशल पाण्डेय जी का है ,जिन्हे हिंदी भाषी और मराठी भाषी दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से कार्य करने का अनुभव रहा है। इस आलेख द्वारा हिंदी को एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में व्याख्यापित किये जाने का प्रयास किया गया है। यह आलेख संगोष्ठी में दिए गए बीज भाषा का संक्षिप्त एवं सम्पादित रूप है। संपादक डाक्टर विश्वनाथ भालेराव ने अपनी भूमिका में भाषा विवाद की मूल अव् धारणा की तलाश कवि धूमिल की इन काव्य पंक्तियों में की है।
                       चंद -चालक लोगो ने ,
                      जिनकी नरभक्षी जीभ ने
                      पसीने का स्वाद चख लिया है
                      बहस के लिए भूख की जगह
                       भाषा को रख दिया है।
                       उन्हें मालूम है कि भूख  से भागा हुआ
                       आदमी भाषा की ओर जायेगा  ।

इस पुस्तक के सभी आलेख भाषावाद का खण्डन करते हुए इस बात को रेखांकित करते है कि हिन्दी के माध्यम से ही देश की अखंडता और एकता को बनाये रखा जा सकता है।  अधिकांश आलेखों की भाषा पर मराठी का स्थानीय भाषाई प्रभाव साफ-साफ देखा जा सकता है ,जिसे दिखना भी चाहिए ,क्योकि भाषा को अगर स्थानीय दबाबों और प्रभावों से अगर मुक्त कर दिया तो वह क्रतिम भाषा लगने लगती है। शुद्ध और परिष्कृत हिंदी की अपेक्षा रखने वाले हिंदी पाठको को हो सकता है यह पुस्तक आकर्षित न करे पर भाषा को बहता नीर मानने  वाले तथा भाषा वाद की क्रतिम समस्याओं से असहमत और उससे निजात चाहने  वाले हिंदी प्रेमियों और शोधार्थियों को यह पुस्तक अवश्य रचकर लगेगी।

० पुस्तक --भाषावाद  (आलेख )
० सम्पादन --डा ० विस्वनाथ किसान भालेराव
० प्रकाशक --शैलजा प्रकाशन , कानपुर
० मूल्य -----375 रुपये।

Thursday 17 April 2014

कहावत 

आसमान 
एक थाल मोतियों से भरा ,सबके ऊपर ओंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे ,मोती उससे एक न गिरे।।
                                      (अमीर खुसरो ) 
भौं
श्याम बहन की है एक नारी
माथे  ऊपर लागे प्यारी,
जो मानुष इस अर्थ को खोले ,
कुत्ते की वह बोली बोले


Thursday 10 April 2014



 अब हो रहा सवेरा ------------
 जगने  लगी है जनता ,अब हो रहा सवेरा
जिसमे पड़े -पड़े हम,सुख -स्वप्न देखते थे.
वह मोह रात  बीती अब हो रहा सवेरा।
भागा है मुँह छिपाकर ,दासत्व का अँधेरा
धरती पर लाली छाई ,अब हो गया सवेरा।

झूठी चमक दिखाकर जुगनू ने नाम पाया
अब दीखता न वह भी ,अब हो गया सवेरा।
तारे जो दूर से ही रहते वे थे चमकते
वे भी लगे खिसकने अब हो गया सवेरा।

ये कर्म क्षेत्र तुमको हंस-हंस बुला रहा है
करना न अब किनारा ,अब हो गया सवेरा ॥

   अर्पणा पाण्डेय।



दोस्ती करें तो ऐसी -

पानी- पय- वत गर प्यार प्रीत कि रीति सीख ले आप सभी
तो इस भारत भूमि जननी के ,निश्चय दुःख दूर हो जाएँ सभी ॥
जब दीन- हीन पानी बेचारा शरण दूध कि आता है
नहीं दूध करे दूर-दूर  छि -छि निज अंग समझ अपनाता है ॥
 सफेद रंग पानी को प्रदान कर अपने संग   मिलाता है
जिस भाव वो बिकता है उस भाव ही उसे बिकाता  है॥ 
गुण ग्रहण दूध का करते ही पानी पय- वत बन जाता है
नीचों को ऊँच बनाने का क्या बढ़िया सबक सिखाता है ॥

एक हलवाई के हाथों जब भट्टी पर चढ़ जाता है
उस वक्त मुसीबत में दोनों क्या मित्र भाव दरसाते हैं ॥
जब आग धधकने लगी खूब और जलने की  नौबत आ गई
हिम्मत कर बात दूध  से पानी ने तब फरमाई॥
मै हूँ मौजूद कढ़ाई में तब तक कुछ  मत परवाह करो
हे दुग्ध देव! बैठे तुम सानंद रहो  ,मत मुह से कुछ  आह करो ॥

दूध मित्र को रखा सुरक्षित और  खुद को जल ने जला दिया
प्रेम  सहित अपनाने का यह बदला कैसा भला किया॥
पृथकत्व सहन कैसे करता पय -पानी प्राण पियारे  का
जब बिछुड़ गया एक मित्र कु-समय में आज बिचारे का ॥
बस चला उबल होकर बिकल  मै भी  जलकर मर जाउंगा
चल बसा मित्र ,अब मई जिन्दा रहकर क्या मुह दिखलाऊंगा ॥

जब  देखा  हलवाई ने  --दूध ने हो बेचैन उबाल लिया
 झट समझ गया दिल की  हालत एक चुल्लू पानी डाल  दिया॥
थोडा सा पानी पड़ते ही बस दूध शांत हो जाता है
बिछुड़ा भाई मिल गया प्रेम से रो-रो कर गले लगाता  है॥ 

जब इस प्रकार से लोग  सभी आपस में प्रेम -प्रीत दिखलायेंगे
गरीब ,अछूत बच्चों को निज अंग   समझ अपनाएंगे॥
वह ऊँचा है यह नीचा है जब ये विचार मिट जायेंगे
निश्चय समझो इस भारत के फिर से दिन फ़िर जायेंगे ॥

                    अर्पणा पाण्डेय। …


Sunday 6 April 2014


 समय ----
 काफी  समय  बादलों  की तरह  हमारी  जिन्दगी के  पीछे उड़कर चले गये हैं
 रोज कि तरह आज फिर सवेरा हो गया
,बादलों में हलकी नीलिमा के साथ लाल किरणो ने खेलना शुरू कर दिया है
 धीमी -धीमी बयार ने फुनगियों को धक्के मारना  भी शुरू कर दिया है.

Wednesday 26 March 2014

आह भी करती हूँ '
और आंसू भी बहा लेती हूँ।
इस तरह दिल में लगी आग को बुझा लेती हूँ मैं ,

खर को भी मतलब के लिए बाप बना लेते हैं लोग
ऐसे लोगों से उम्मीद क्या करना ,
झूठी बातों  पे जो ईमान उठा लेते हैं ।

लोग कहते हैं कि बफादारी दिखाने  आये हैं
हम  ये कहते हैं कि नया वे गुल खिलाने  आये हैं ।। 

एक दिन वह था जब मनाने से भी न मनते  थे वे ,
अब हम जब रूठे हैं तब वे मनाने आये हैं । ।

तुम्हे कुछ और समझे थे मगर तुम कुछ और निकले ,
दल-बदल कर तुम,  जालिम -सितम निकले ॥

लोग कहते है कि बदलता है जमाना अक्सर
हम  ये कहते हैं कि लोग बदल देते हैं जमाने को ॥

Monday 24 February 2014

भागमभाग में आज किसी को फुर्सत नहीं है लेकिन  थोडा समय  अवस्य निकालिये  
कहीं ऐसा न हो कि जीवन कि शाम में हमारे पास समय  तो बहुत सारा हो, पर रिस्ते साथ नहीं , रिश्तों  कि अमृतवर्षा में भीगिये और सारे कष्ट और  तनाव दूर कीजिये॥  

--


arpana pandey

Monday 10 February 2014

आजकल प्रेमचंद्र का बचपन पड़ रही हूँ ,कितना सरल, सहज, सुन्दर व्यक्तित्व और उनके विचार ।
 सन १८८०  का जन्म उ,प्र . के लमही गाँव में .
 लगभग २०० साल पहले कोई टीकाराम नामक आदमी ऐरे से आया था इन्ही कायस्थ परिवार से इनके पुत्र गुरुसहायलाल व इनके भतीजे हरदयाल लाल लमही में बसे ,गुरुसहायलाल के पुत्र अजायबलाल से धनपतलाल यानि मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म हुआ इनकी माँ का नाम आनन्दी  था

 अर्पणा ……। 

Monday 3 February 2014

jindgi me bas dhllan baki hai . khvab me bas makan baki hai haar gai hun jindgi se magar aankhon me abhi tufan baki hai.
 जिंदगी में बस ढलान बाक़ी है
 ख्वाब में अस मकान बाक़ी है
   हार गई हूँ जिन्दगी से  मगर ,
   आँखों में अभी तूफ़ान बाक़ी है ॥ 

Sunday 5 January 2014

नया साल आ गया ,
जनसंदेश में इनकी कविता छपी
३ को फिर एक कविता छपी
अभी सब ठीक है

गुजरे ३ वरसों ने तो सितम खूब ढाये
नया बरस अब खूब खु`शियां  ही लाये
अम्मा ,बाबूजी ,व बउआलाल चाचा का चले जाना बेहद दुखदाई लगा ।