Tuesday 19 July 2022

दत्तात्रेय जयंती

 ऋषि अत्रीय के आश्रम में एक बार ब्रह्मा विष्णु और महेश भगवान विष्णु के रूप में आए उस समय उनकी पत्नी अनुसूया घर में अकेली थी वह बड़े  पतिव्रता नारी थी इन तीनों भगवान ने उसके पति व्रत के परीक्षा लेने के कारण भेष बनाकर साधु के भेष में आए और बोले मां भिक्षम देही जब अनुसूया उन्हें भिक्षा देने के लिए आए तो वे तीनों बोले नहीं मैं ऐसे दीक्षा नहीं लूंगा तुम वस्त्र हीन होकर हम लोगों को दीक्षा दो तब अनुसूया ने ने उन्हें बड़े ही आदर पूर्वक आसन देकर बैठाला और कमंडल से जल लेकर उन तीनों साधु के भेष में भगवान पर अभिमंत्रित करके डाल दिया थोड़ी ही देर में वे तीनों साधु बालक के रूप में हो गए तीन-तीन माह के पुत्र बनाकर उन्हें  भरपेट दूध पिलाया और खिलाया । उधर लक्ष्मी जी सरस्वती और ब्रह्मा पत्नी जब अपने पति को खोजते खोजते अनुसूया के पास आए तो वे अपने पति को  बालक रूप में पहचान गई और अनुसूया से विनती करने लगे कि मेरे पति को पूर्व रूप में ही करके मुझे वापस कर दें मैं उनकी गलती के लिए क्षमा मांगती हूं तब अनुसूया ने कमंडल से जल  छोड़ा और उन तीनों को श्री ब्रह्मा विष्णु महेश उसी रूप में वापस कर दिया  , तभी से इन तीनों एका कार रूप ब्रह्मा विष्णु महेश ने अनुसूया के पति व्रत रूप से प्रसन्न होकर दत्तात्रेय रूप में दर्शन दिए और कृतार्थ हुए .

अर्पणा पांडे

बट सावित्री व्रत कथा

 जेष्ठ माह की अमावस्या को यह व्रत रखा जाता है स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है बरगद के फल के समान मीठे पुए बनाए जाते हैं और इस मौसम का प्रिय फल आम या खरबूजा चढ़ाया जाता है लाल चने भिगोकर पूजा में रखे जाते हैं उन से 12 बार बरगद के चक्कर लगाए जाते हैं । और कच्चे सूत से जनेऊ बनाकर उसे हल्दी से रंग कर दो माला बनाई जाती हैं l एक बरगद के वृक्ष पर चढ़ाते हैं ,और दूसरा स्वयं पहनते हैं .कम से कम 12 दिन अवश्य पहनना चाहिए इस प्रकार सुहागन महिलाएं या तो परिवार के साथ व अपने सहेलियों में समूह बनाकर सोलह सिंगार करके निर्जल व्रत रहकर पूजा करने जाती हैं l बरगद के वृक्ष पर जल चढ़ाकर  हल्दी आटे से  घोल बनाकर वृक्ष पर लगाते हैं l फूल चढ़ाते हैं फल चढ़ाते हैं और काले चने चढ़ाकर 12 12 चने और बरगद की कलंगी को 12 टुकड़ों में तोड़कर एक साथ पानी से  लिया जाता है l तत्पश्चात  महिलाएं एक दूसरे को जनेऊ की माला पहनाते हैं और कहानियां कहती हैं। इसमें सत्यवान और सावित्री की कहानी को आधार में रखा गया है....

 कहानी इस प्रकार है सावित्री नाम के स्त्री थी । वह बड़ी ही पतिव्रता थी पति की बहुत सेवा करती थी पति का नाम सत्यवान था,  जैसा नाम था वैसा ही वह सत्य बोलने वाला था एक दिन उसका पति लकड़ी काट रहा था तभी वह वृक्ष के नीचे गिर पड़ा अर्थात उसके प्राण निकल गए सावित्री उसके साथ हीं थी वह अपने पति को अपने गोद में लिए हुए विलाप कर रही थी जब यमदूत सत्यवान के प्राणों को उसके शरीर से खींच कर ले जाने लगे तो सावित्री ने यमदूत से बड़ी विनती करी कि मेरे पति को जिंदा कर दो । परंतु उन दोनों ने कहा नहीं इसकी इतनी ही जिंदगी थी अब यह मृत्युलोक को जाएगा किंतु सावित्री नहीं मानी और यमदूत के पीछे पीछे चलने लगी और प्रार्थना करने लगी......

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे  दे दो

मैं पति की पुजारिन हूं पति प्राण मुझे दे दो 

सिंदूर भरा जिसके कहलाती सदा  सधवा

सिंदूर बिना नारी कहलाती सदा विधवा 

सिंदूर सुहागन के पहचान मुझे दे दो 

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे दे दो। 

ऐसा कहते कहते हैं वह उन दोनों के साथ  साथ बदहवास सी चलती जा रही थी । तभी एक यमदूत को उस पर दया आ गई उसने कहा अच्छा तुम कोई वर मांग लो तब सावित्री ने सदा सुहागन रहने का वर मांगा ! यमदूत ने तथास्तु  कह दिया वे सावित्री के इस बात को  समझ नहीं पाय और जाने लगे लेकिन सावित्री को पीछे आते देख उन लोगों ने फिर उसे टोका तब सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति को ले जाएंगे तो मैं सुहागन कैसे  कहलाती  इसतरह सावित्री के हट को और उसके होशियारी को देखकर यमराज को भी झुकना पड़ा,  और सत्यवान के प्राण वापस कर दिए तभी से सत्यवान और सावित्री की कथा कहीं जाने लगी वट वृक्ष के नीचे यह कहानी इसीलिए कहीं जाती है क्योंकि इस वृक्ष के नीचे ही यह सब हुआ था  तभी से वट वृक्ष की पूजा लोग करते चले आ रहे हैं । 

अर्पणा पांडे

Tuesday 12 July 2022

महालक्ष्मी की कथा

 एक ब्राह्मण औरत के 7 लड़के थे ,और उसकी देवरानी के एक लड़का। देवरानी गरीब  लेकिन महालक्ष्मी का व्रत पूजा  बहुत करती थी महालक्ष्मी की पूजा पूरे 16 दिन भादो की अष्टमी से शुरू होकर कुंवार की अष्टमी तक की जाती है इसमें 16दूर्वा  16 चावल 16 सूत का धागा उसमें 16 गांठ लगाकर देवी का पूजन किया जाता है । महालक्ष्मी हाथी पर सवार हैं ऐसे मूर्ति प्रतिमा बनाकर स्थापित की जाती है तत्पश्चात 16 दीपक जलाए जाते हैं मीठे पुए 16 16 चढ़ाए जाते हैं पेड़े का भी भोग लगाया जा सकता है अंत में कथा कहकर प्रसाद स्वयं लेकर घर परिवार पास पड़ोस सब को भी बांटा जाता है । जेठानी के तो 7 लड़के से वह थोड़ी-थोड़ी मिट्टी भी लाएंगे तो उनका हाथी 1 दिन में तैयार हो जाएगा किंतु देवरानी यह सोचकर हैरान परेशान थी कि उसका एक ही बेटा है वह कैसे मिट्टी लाएगा तो वह कुछ दिन पहले से ही कहने लगी बेटा थोड़ी थोड़ी मिट्टी ले आओ तो मैं हाथी बना लूं लेकिन बेटा कह देता की तुम चिंता ना करो मैं जिस दिन तुम्हारी पूजा होगी उस दिन हाथी भी ले आऊंगा ऐसा कह कर वह बात को टाल देता मां दिन पर दिन परेशान ही रहती और अपनी जेठानी के घर देखती कि उनके लड़के थोड़ी-थोड़ी मिट्टी ला रहे हैं 16 दिन बीत जाने पर जेठानी के बच्चों ने मिट्टी को गीला कर के मुलायम कर  लिया और हाथी तैयार कर दिया उस पर लक्ष्मी जी की मूर्ति भी स्थापित कर दी तत्पश्चात प्रसाद बनाया और पूजा करने बैठ गई इधर देवरानी हैरान-परेशान से इधर उधर देख रही थी दुखी मन से उसने मंडप सजाया और महालक्ष्मी को याद किया महालक्ष्मी का मंत्र जपने लगी।

 महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी 

हरि प्रिय नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे 

इस तरह उसने बराबर जाप करना जारी रखा उसकी सच्ची भक्ति से मां लक्ष्मी जी प्रसन्न हुई और उसके पुत्र का मार्गदर्शन किया उसे वह महावत के पास ले गई  लड़का सुबह से ही चिंतित था कि मेरी मां भूखी प्यासी होगी उसे मैं रोज आसरा देता रहा कि साक्षात हाथी लाऊंगा अब उसने महावत को राजी कर लिया  महावत ने खुशी खुशी हाथी को सजाकर कपड़े पहनाकर कंठी माला मस्तक पर तिलक सजाकर उसकेसाथ भेज दिया जब लड़का मां के सामने पहुंचा तो मां बहुत आश्चर्य से देखती रह गई और जल्दी से उसने द्वार पर ही हाथी की पूजा अर्चना की महावत ने अपनी कन्या को भी लक्ष्मी के रूप में सजा कर भेजा था ब्राह्मणी ने खूब धूमधाम से लक्ष्मी जी की पूजा की 16 दीपक जलाए इस तरह घर जगमगाने लगा जेठानी का अहंकार टूटा के उसके तो 7लड़के हैं  इधर देवरानी के घर हाथी और उस पर बैठी लक्ष्मी विराजमान तो दूर दर से लोग  आने लगे  और बेटे को भी आशीर्वाद दिया और कहानी  इस प्रकार कहीं ,

आ मोती दामोती 16  पाठ नगर में राजा

 रानी कहे कहानी तुमसे खाते तुमसे पीती 16 दुब के पोड़ा 16 चावल 16 सू त की एक कहानी महालक्ष्मी रानी ।

इस तरह जेठानी देखती रह गई देवरानी के घर साक्षात लक्ष्मी जी और हाथी देखकर उसका अहंकार चूर चूर हो गया सच्ची निष्ठा और भक्ति से देवरानी को साक्षात लक्ष्मी जी के दर्शन हुए बोलो महालक्ष्मी रानी की जय अर्पणा पांडे