Friday 24 June 2016

संध्या शब्द का अर्थ दिन और रात मिलने का है। न रात और दिन में सन्धि होती है संधि दो वस्तुओं में होती है ,सावित्री नाम गायत्री का है और जप नाम जपने का है तिस्थेट नाम खड़े होने का है अर्क नाम सूर्य का है ,
जब तक सूर्य नारायण ना निकले तब तक खड़े होकर गायत्री का जप करें ,प्रातः काल की संध्या हो गई। सायं काल की संध्या -जब तक अच्छी तरह से तारे न निकल आएं तब तक करें और बैठ कर करें। इससे सिद्ध हुआ कि संध्या सन्धि में ही होनी चाहिए अन्त्य काल में नहीं। [ बाबा का ज्ञान ]

Wednesday 22 June 2016

माया का प्रबल  दल --

मोह  न अंध  कीन्ह कहु  केही ।
को जग काम  नचाव  न जेही । ।
         तृष्ना केही न कीन्ह बौराहा  ।
          केहि   के ह्रदय  क्रोध  नहि  दाहा । ।
ज्ञानी, तापस,  सुर - कवि , कोविद,  गु न आगार ।
केहि  के लोभ बिडंबना , कीन्ह न यहि  संसार । ।
             श्री - मद  वक्र न कीन्ह  केहि ,प्रभुता बधिर ना  काहि ।
              मृग- लोचनि  के नयन - सर, को अस लाग  न जाहि  । ।
गुन - कृत-सन्निपात  नहि  केही ।
को  न   मान - मद  भयहु निमेहि । ।
                जौवन -ज्वर केही नहीं  बल कावा ।
                 ममता केहि कर जस न   नसावा    । ।
मत्सर  काहि  कलंक न लावा ।
काहि  न सोक -समीर डुलावा । ।
                  चिंता- साँपिनि  काहि  न खाया ।
                   को जग जाहि  न  व्यापी माया । ।
कीट-मनोरथ ,    दारु  सरीरा ।
जेहि न लागि घुन  को अस  बीरा । ।
                   यह  सब माया कर  परिवारा ।
                   प्रबल  अमित को बरनै  पारा । ।