संध्या शब्द का अर्थ दिन और रात मिलने का है। न रात और दिन में सन्धि होती है संधि दो वस्तुओं में होती है ,सावित्री नाम गायत्री का है और जप नाम जपने का है तिस्थेट नाम खड़े होने का है अर्क नाम सूर्य का है ,
जब तक सूर्य नारायण ना निकले तब तक खड़े होकर गायत्री का जप करें ,प्रातः काल की संध्या हो गई। सायं काल की संध्या -जब तक अच्छी तरह से तारे न निकल आएं तब तक करें और बैठ कर करें। इससे सिद्ध हुआ कि संध्या सन्धि में ही होनी चाहिए अन्त्य काल में नहीं। [ बाबा का ज्ञान ]
जब तक सूर्य नारायण ना निकले तब तक खड़े होकर गायत्री का जप करें ,प्रातः काल की संध्या हो गई। सायं काल की संध्या -जब तक अच्छी तरह से तारे न निकल आएं तब तक करें और बैठ कर करें। इससे सिद्ध हुआ कि संध्या सन्धि में ही होनी चाहिए अन्त्य काल में नहीं। [ बाबा का ज्ञान ]