Sunday 12 May 2024

वोटिंग

 आज सुबह सुबह बोट डालकर अपना कर्तव्य निभाया 

Monday 29 April 2024

जिन्दगी

१ . 😀जिन्दगी पेनड्राइव नहीं कि जो मन हो बजा लो ।

जिन्दगी तो रेडियो जैसी है ' कब कौन सा गाना बज जाये पता ही न चले ।

२.🥰 एक घर था जहाँ अम्मा थी शाम होने पर जल्दी-      जल्दी भगाती थी कि अंधेरा ना हो जाये

      और अब कोई देखने कहने वाला ही नहीं उधर से        निकलती हूँ बस मुड़मुड़ कर देखती हूँ चाहे देर हो        जाये । क्योंकि अब गाड़ी में सवार होकर आती हूँ 

      लेकिन अब वो खुशी ही नहीं😭

3 .जिन्दगी में कुछ रास्ते सब्र के होते हैं 

   और कुछ सबक के ।

Friday 26 April 2024

बचपन की यादें


62 वर्ष बाद अब बचपनकी यादें सताने लगी है रुलाने लगी है वो अल्हड़पन एक बार क्यों नहीं लौट आता । चलो चलते हैं उस पल को जीने के लिये -कुछ प्रसंग तो हूबहू याद ही हैं ।मै जवाहर नगर 110/239 कानपुर में पली बढ़ी काफी पॉश इलाका माना जाता है जहाँ से स्कूल ऑफिस पार्कबाजार सिनेमाहाल सब पास ही पड़ता है पिताश्री शिवनन्दन लाल चतुर्वेदी 6 जीवित संतानों वो भी बहनों में मैं पांचवे नंवर पर थी बताते हैं कि शुरू में मेरे दो भाई भी हुये लेकिन वे एक या ड़ेडवर्ष के होकर नहीं रहे फिर हम पांच बहने २ वर्ष 3 वर्ष या 4 वर्ष के अन्तराल पर हुयी जिसमें मैं 9 वर्षतक सबसे छोटी रही छटी बहन मुझसे साल छोटी हुयी ये पूरी उम्मीद थी कि अबकी लड़का होगा गम थोड़ा मांको रहा होगा वो भी दूसरो के कहने से लेकिन मेरे बाबूजी के चेहरे पे दुःख नहीं दिखा वे प्रशन्न ही दिखे भले ही अन्दर से हो मेरे लिये तो छोरी बढन अपोली एक खिलौना सामान थी खूब खिलाती संभालती जब वह तीन वर्ष की हुयी तो मैही उसे स्कूल में दाखिला दिलाने ले गई थी बड़ जिज्जी ने अपने घर रामबाग के पासही एक स्कूल में बात कर ली थी । अंग्रेजी मीडियम स्कूल में नर्सरी क्लास बड़ा गर्व होता था क्योंकि हम लोग तो सरकारी स्कूल में सीधे क्लास २ में बैठाल दिये गये थे अपोली के लिये रिक्शा भी लगवाया गया था हमारी ये हसरते तो अधूरी ही रह गई थी ' मैं घर में छोटी होने के कारण घर के बाजार के छोटे-छोटे काम जैसे सब्जी लाना ' आटा पिसाना . पहले आटा पिसाने के लिये चक्की पर जाना होता था 3 और वहाँ से एक नौकर आता था जो कि घर से आटा पिसाने के लिये उठाने आता था फिर हम वापस तौलाने के लिये जाते थे 4 या 5 घंटे बाद फिर वापस ल तौलाकर पैसा देकर उसी नौकर के साथ आना होता था तीसरी मंजिल तक 25 किलो आटा लेकर वह चढ़ता था जिसकी मजदूरी अलग से ही जाती थी । इस तरह सब्जी खरीदने के बाद कुछ पैसे बचते थे तो वहीं रविवार शुक्रवार और बुद्धवार को फुटफाथ वाली वाजार में कपडे विकते थे कतरने वा एकमीटर दो मीटर सूती कपड़े मिल जाते थे वो मैं घरले आती अम्मा सिलाई करती तो उन्हे वेबहुत पसंद आते थे वे अपने शौक पूरे करती मैं भी इसी तरह सीख गई छोटी उम्र से ही मैं फ्राक बनियान नेकर आदि बनाने लगी । इस तरह बड़ा मजा आता अपने हाथ से बनाना फिर फहनना और दूसरों से तारीफ पाना इस तरह बड़ी होते होते सिद् हस्त हो गई तारीफ पाकर आत्मविश्वास जगा । इस तरह शादी के बाद हाउसवाइफ रहते हुये भी मैंने बच्चों के  स्वेटर कपड़े सबहाथ से बनाये और सासू म के ब्लाउज पेटीकोट पिताजी के नेकर वंडी इत्यादि बनाकर सबका मन जीत लिया वे मुझसे यही कहते बटया तुम खाना मत बनाओ तुम सिलाई करो मेरा ये सिल दो मेरा वो सिलदो इस तरह मै घर में सभी की चहेती बन गई ।

इसी तरह अम्मा की पूजा पाठ का सामान मैं लाती उससे  भी जाग्रत हुई हर त्योहार की कहानी से लेकर क्या क्या चढ़ना है अम्मा से सीखा होली पर तो और मजा उसके लिये एक माह पहले से  ही गोबर के उपले बनाये जाते फिर उनकी माला बनती सुखाये जाते ततपश्चात होली के दिन ढेर लगाकर ये देखते कि किसके घर की होलिका कितनी ऊंची है। सहेलियों के साथ गोबर उठाने जाते बाल्टी भारी हो जाने पर दो लोग पकड़ते घर आकर उस गोबर को आधा आधा बांटा जाता इस चक्कर में कभी-कभी भैसो के झुंड के पीछे जाने कितनी कितनी दूर चलते चले जाते घर कीडांट का होश आता और उसभारी बाल्टी को उठाकर जल्दी जल्दी घर के लिये भागते थे अंधेरा होने से पहले सभी बहनोको घर में रहने की हिदायत दी जाती थी बाबूजी कहते कुछ नहीं थे लेकिन ऑफिस से आकर हम सबको देखते जरूर थे इसलिये अम्माका कड़ा शासन चलता था वे जोर से डांटती मारती नहीं थी  आँख से ही डरा देती थी और हम सबकी क्या मजाल जो कुछ बोल जाये बस सीधे किताब कापी पेन लेकर बैठ जाते ।

सुबह उठकर स्कूल की तैय्यारी शामको आकर फिर वही शौक के काम शामको पढ़ाई यही दिनचर्या । हाँ उस समय मेरे बाबा भी थे मेरे बाबा मुझे बहुत चाहते थे चाहते तो बड़ी जिज्जी को भी थे लेकिन वो मैंने जाना देखा नहीं क्योंकि वे मुझसे 15 साल बड़ी थी मेरे होश में बाबा को मैंने एककमरे एक बैड या तखत पर ही देखा उन्हे पक्षाघात की बीमारी थी । तो बे मेरे से छोटे छोटे काम करवाते थे जैसे आइसक्रीम ला हो पानीला दो चाय दे दो विस्तर ठीक कर दो करवट लिटा दो इसके बदले वे मुझे पैसे देते थे तो मैं शौक से करती थी उनके आखिरी समय का वाकया जो है वो मुझे बहुत कष्ट दे गया जिसे मैं आज भी नहीं भूलती हूं। हुआ ये कि सन् 1972 में मैं 8 class में पढ़ती थी गर्मी की छुट्टी होने पर मै अपने नाना के घर चली जाती थी इस बार भी मैं मामा के साथ जा रही थी तो बाबा ने बहुत मना किया तुम न जाओ तुम्हे 10 रु० देंगे उस समय 10 रु0 काफी रकम थी लेकिन मैं अपनेको जाने से नहीं रोक पाई लड़कपन यही होता है जो उनकी कुछ भावनायें नही समझ पाये उन्होंने पता नही क्या सोचकर मना किया था 'कि मैं गई और 10-12 घंटे बाद ननिहाल खबर आ गई कि बटियाँ के बाबा खतम हो गये उस समय ट्रेने सुपर फास्ट नहीं चलती थी इटावा तक की दूरी में 7 से 8 घंटे लग जाते थे फिर वहाँ से 2 किमी . नाना के घर पहुंचते ही धीरे-धीरे कान में बाते हो रही थी क्योंकि मैं वापस चलने की जिद करती और नाना के यहाँ से तुरन्त मुझे लेकर जाना संभव नहीं था । आखिर मेरे हमउम्र मामा के लड़के ने हंसके कहा बटियाँ के तो बाबा खतम हो गये मैं सन्न रह गई और रो रोकर 12 दिन कैसे काटे नहीं भूलती तेरवीं पर नाना के साथ आई तो बहुत रोई और पछताई रात होते मैं अपने आप से पूछती हूँ कि बाबा तुम कैसे चले गये तो मुझे सच में बाबा दिखे और एक तेज पुंज के रूप में ओझल हो गये । मैं बस वही यादें लिये रह गई ।

इसी तरह करवा चौथ का त्योहार मेरे लिये अम्मा खास बनादेती वे दीवार पर चित्र उकेरती थी उसके लिये पहले दीवार पर गोबर से लीपना होता था फिर सूख जाने पर हरे ताजे पत्तों से घिसकर हरा करना होता था ततपश्चात चावल भिगोकर पीसकर माचिश की तीली से बारीक बारीक डिजाइन बनानी होती थी जिसमें अम्मा को महारत हासिल थी उनके इधर उधर होते ही हम भी बनाने लगते थे ' इसमें डाँट नही पड़ती थी बल्कि अम्मा ने धीरे-धीरे मुझे बनाना सिखा दिया था । अब तो मुझे भी अच्छा बनाना आ गया और हम आसपास जैसे बड़ी जिज्जी के घर मौसी के घर मामा के घर जब जाते तो वे लोग मुझसे पक्के पेंट से बन वाकर रख लेते थे ।

इस तरह बचपन में टीवी मोबाइल न होने से परिवार में ही ये हुनर आसानी से सीखलिये जाते थे वाकी तो इतने किस्से हैं कि अभी दोतीन चार पेज और लिख डाले लेकिन लंबा पढने वाला भी आजकल नहीं मिलेगा सॉट कट का जमाना है।

अर्पणा पाण्डेय

Thursday 25 April 2024

अद्भुत आभाष

 एक सैनिक को मरने के बाद का सम्मान देख अद्भुत ही लगता है ' बाबा हरभजन सिंह उनकी माँ 15 सितम्बर को सुबह से ही बेटे की तस्वीर लेकर बैठ जाती है और खुश होती है ।

सिक्किम से 50 - 60 कि.मी की दूरी पर नाथूला दर्श चीनी वार्डर पर स्थित है वाबा हरभजन सिंहजीका अद्भुत स्मारक है । वहाँ उनके कमरे व उनके सामान की उसी तरह देखरेख होती है जैसे जिन्दा व्यक्तिकी होती है। कहा जाता है कि वे आज भी आत्मारूप में हैं उनके भाई को उनके रहने का अहसास भी हुआ उन्हे रजाई उडाई और बोला मैं ही हूँ फिर जहाँ जानवर बांधे जाते हैं वहाँ भी वे दिखाई दिये । ऑनड्यूटी पर भी उनके मित्रो को दिखाई दिये और वे पूरी सजगता से अपनी ड्यूटी निभाते हैं और छुट्टी होने पर अपने गाँव भी जाते है जब वे अपने गाँव कपूरथला आते हैं तो माहौल खुशनुमा हो जाता है त्योहार के जैसा लगता है प्लेटफार्म भीड़ लगती है बावा के नारे लगाये जाते हैं गाँव में उन दिनो बड़ी सुख शांति रहती है और उधर उनकी ड्यूटी की जगह और सैनिकों की ड्यूटी लगती है और जब छुट्टी खत्म होती है तो उन्हे अके बक्से व पर्सनल सामान के साथ विदा किया जाता है । इनकी छुट्टी भर पूरा वार्डर हाई अलर्ट रहता है या रहना पड़ता क्योंकि उनका सजग मंत्री जो नहीं है। चीनी सेना भी भयभीत रहती है। 2006 तक ऐसा ही रहा फिर रिटायर्ड होने पर इनकी पूरी पेंसन अनके घर पर भेजी जाती है। इस तरह सिक्किम जाने पर नाथूला जाकर थे अद्भुत स्मारक देखना बड़ा अच्छा लगा ।

Tuesday 23 April 2024

मन की बात

 बहुत कुछ लिख लिखकर मिटाया है मैंने

ठीक न होने पर भी अपना हाल ठीक बताया है मैंने

बात बात पर अपने दिल को बहलाया है मैंने

अपनी सोच में ही खोकर न जाने कितनी रातो को जाग जागकर बिताया है मैने ।

कोई समझेगा नहीं ये हाल मेरा बस इसी फिक्र में सबसे सब छुपाया है मैने ।

मन बहुत सोचता है कि उदास न रहूँ ।

शहर के दूर के तनाव को तो सह भी  लें पर ये अपने ही रचे एकांत के दवाव को कैसे सहा जाये ।

यदि कुछ कहूँ भी कुछ तो सुननेको कोई पास न हो इसी पर जब जी मे उठे उसे कहा कैसे जाये .

Sunday 21 April 2024

अप्रैल २१


 आज हर्षित की बारात . शामको नरुला गेस्ट हाउस जाना है परसो जनेऊ था दोपहर में गये थे अच्छा लगा शाम को आ गये थे इस शादी में पुराने लोगों से मुलाकात अच्छी लगी आज तो और भी लोग मिलेंगे अटियाँ भी आई हैं

Sunday 14 April 2024

पिता

 पिता बच्चों के साथ तेज भाग सकता है पर बच्चे पिताके साथ धीरे नहीं चल सकते

पिता के पास अम्मा की तरह कपडे व वह बाजार नहीं 'न ही नमक मिर्च वाली बाते करते हैं

वे नजर भी नहीं उतारते पर हमे नजरो के सामने ही रहने देना चाहते 

सख्त है पिता पर अंदर से कोमल

उम्र बूढ़ा बना दे तो ठीक पर शरीर लाचार बना दे यह सालता है "