आखिर अगस्त २०१६ आ ही गया,३५-३६ सालों से अलाहाबाद,दिल्ली,मुम्बई,पूना घूमते-फिरते अब कानपुर अपने स्थाई घर पर एक ठहराव सा हुआ है ,सुकून से कहे या हाथ-पैरों की शिथिलता कहें , कहीं भी आने-जाने का मन नहीं करता । हाँ ! घर को थोड़ा न्यू लुक देकर या कहें कि ये सुन्दर सा छोटा सा घर साज -सज्जा से पूर्ण हो , उस सपने को साकार करने का मन बनाया है और ऊपर हॉल,वन रूम किचन बन रहा है जिसे बनवाने में दीपक तोषी और इनके पापा पूरा सहयोग कर रहे है सितम्बर माह भी शुरू हो गया है काम अभी जारी है.