भक्ति ने ज्ञान को हरा दिया l
ज्ञान में अभिमान होता है भक्ति में विनम्रता, ज्ञान में कर्म फल और मोक्ष प्राप्त की इच्छा होती है भक्ति में सिर्फ सेवा कीl ज्ञान में तर्क वितर्क होता है भक्ति में समर्पणl इसलिए भक्ति को ईश्वर की प्राप्ति का परम साधन माना गया है l
एक बार की बात है स्वामी परमानंद जी नर्मदा के तट पर अपने आश्रम में बैठे थे lतभी देखा कि आश्रम के पास झुरमुट के बीच में दो व्यक्ति बैठे हैं स्वामी जी को संदेह हुआ कहीं आश्रम से कुछ Lene तो नहीं आए हैं l शिष्यों ने बताया कि दोनों भक्त हैं और राम कथा सुनने आए हैं उनका हुलिया देखकर परमानंद जी को कुछ जचा नहीं बिल्कुल जंगली की तरह यह क्या समझेंगे राम कथा l उन्होंने उन दोनों को अपने पास बुलवाया फिर हंसते हुए बोले कुछ राम भक्ति का महत्व हमको भी बताओ दोनों कुछ नहीं बोले तो स्वामी जी ने डपट कर कहां जा भागो यहां बेकार की भीड़ ना लगाओ कल सुबह जब मेरा प्रवचन हो तब आना प्रसाद भी तभी मिलेगा l
दोनों मान अपमान की चिंता किए बिना चले गए स्वामी जी हंसे l तट पर चलते हुए आगे स्वामी जी को अचानक एक छोटा बालक मिल गया वह गीली रेत का एक छोटा सा तालाब बनाकर उसे अंजूरी में पानी ला ला कर भर रहा था खेल देखकर स्वामी जी को बड़ा आनंद हुआ उनके पूछने पर वह बालक ने कहा कि वह नदी का सारा पानी अपने तालाब में भरना चाहता है बालक की बात सुनकर शिष्य हंसने लगे किंतु स्वामी जी अचानक गंभीर हो गए उन्हें लगा कि कहीं इसमें कोई संदेश तो नहीं है कहीं मुझे मेरा गुरु तो नहीं मिल गया यह बालक मुझे बताना चाहता है कि जैसे हम इस नदी का सारा जल ret के इस छोटे से kund में नहीं भर सकते ठीक उसी तरह सारा ज्ञान भी अपने छोटे से दिमाग में नहीं भर सकते , उस बालक के भाव ने स्वामी जी के ज्ञान के अभिमान को उस कुंड में डुबो दिया l दूसरे दिन स्वामी जी के आश्रम में संत समागम का आयोजन था सैकड़ों विद्वानों और भक्त जनों के बीच स्वामी जी का प्रवचन होने वाला था लेकिन रात को भयंकर वर्षा हो गई नदी का पुल वह गया आने जाने के सभी मार्ग टूट गए कोई भी आश्रम तक नहीं आ पाया स्वामी जी आश्रम की खिड़की से पानी का तेज बहाव देख रहे थे . कि उसी में गिरते पड़ते दो व्यक्ति आश्रम की ओर चले आ रहे हैं थोड़ा नजदीक आने पर स्वामी जी ने पहचान लिया वे दोनों वही राम भक्त ...जिनको कल स्वामी ने अपमानित किया था वे राम कथा सुनने आज उफनती नदी पार करके आश्रम में पहुंच गए थे तब स्वामी जी धीरे-धीरे उन भक्तों के पास पहुंचे दोनों विनम्र भाव से खड़े होकर स्वामी जी को प्रणाम करने लगे अचानक उन दोनों में स्वामी जी को राम लक्ष्मण के दिव्य रूप के दर्शन हुए . स्वामी जी ने दोनों के चरण पकड़ लिया .इस तरह ज्ञान का अभिमान छूमंतर हो गया भक्ति की एक लहर ने सारा अहंकार बहा दिया, ज्ञान हार गया l
( सुनी सुनाई कथा )
अर्पणा पांडे 94 5 5 225 325.