Monday 31 December 2012

नये साल का स्वागत करें .

हाथों में फिर आ रही -इंद्र धनुष की डोर .
तितली के पंखों लिखी नये साल की भोर
रोली जैसा दिन उगा हल्दी भीगी शाम ,
नये साल लिखने लगी कुछ गीत तुम्हारे नाम ।
अपर्णा .....................................

Sunday 30 December 2012


दामिनी .

जिन्दगी की जंग ख़त्म हुई -
अब आप मुझे कैसे कर सकते हैं बाहर , अपनी दुनियां से !
अब रहूंगी मैं आपके दिल में   ,

 माँ में ,  बेटी में बहन में,
  
 अब नहीं फेंक सकते अपने दिल  के बाहर ,
 और सुनेगे मेरा दर्द  अपनी सासों के साथ ।

यही मेरी सच्ची श्रधान्जली होगी
        _____________


यह साल समाप्ति की ओर अग्रसर है ,
नए  साल की हार्दिक शुभ-कामनाएं 
स्वीकार करें।

 अपर्णा ............................

Friday 28 December 2012

 अति सर्वत्र वर्जयेत -

आज दामिनी का अंत  हो गया  ,
हर नारी के जीवन का अंत हुआ है,
उस परिवार का तो संगीत ही मौन हो गया,

दु:ख है ,की आज हम अकेले ,नि:सहाय से हो गए है।
हर स्त्री के मन में खौफ सा बैठ  गया है।

क्यों आज हम इतने -
हिंसक ,ईर्सालु ,दुखी,कातर और छमाहीन हुए जा रहे हैं,
स्वार्थ - कर्कशताओ की आहों - कराहों के बीच रक्त-रंजित हो रहें है,

उठो-जागो

समय सर्वनाश की चेतावनी दे रहा है।
 और हम इन्द्रियों के वशीभूत हुए अपाहिज की भूमिका निभा रहे है।
 बहुत हो गया -

अब वर्तमान के बुझे दीपक की लौ जलाना  ही होगा  ।
मस्तिष्क के असीम क्षितिज को साफ करना ही होगा।
अति .....सर्वत्र वर्जयेत

Thursday 27 December 2012

दुःख के सबब

पेड़ बनने
से पहले किसी पौध को काटना  ,

डाल  पर खिलती कोंपल को,
पाला  मार  जाना ,

बेटियों को जनम देने से -
पहले ही मार  देना .

यूं  भविष्य का आने से-
 पहले ही अतीत हो जाना 

 अपर्णा ...............

Wednesday 26 December 2012

 




अतीत  

आज 26 दिसम्बर 2012 आ गया

दिन महीने साल गुजरते जा रहे , वक्त का पता ही नहीं चलता भले ही जिन्दगी का प्रवाह धीमी गति से चला आ  रहा हो किन्तु मानस पटल में अंकित   10 नवंबर 1994 दीपावली  के 8 दिन बाद  की घटना भुलाये नहीं भूलती -हम लोग गाँव से दूर कानपूर शहर में रह रहे थे मेरे माता -पिता जी गाँव में सुकून की जिन्दगी जी रहे थे ,कि गाँव में डकैती पड़ गई और उन दोनों के साथ-साथ सब कुछ ख़त्म हो गया ,अचानक वह मनहूस घड़ी जो किसी चील की तरह वहां आई और अपने पंजे गड़ाकर चली गई। हरदिन सूरज निकलता और  शाम को आँखों के आगे अपनी रंगोलियाँ बिखेरता और फिर अंधकार  भरकरसुला  देता,घटनाओं को विस्मृत  कर देने(यानि सो जाना ) का अचूक उपाए ही जीना सिखाता है । और सहन करने की  शक्ति देता है ।इसी के साथ नव बरस का स्वागत करें .

अपर्णा ............... 

Tuesday 25 December 2012

मेरा अपना घर .................

मेरा अपना घर  कानपुर में बन गया है ,
हम  बच्चों के साथ खुश  है  ,

सारा  दिन खटने के बाद भी हम थके नहीं हैं
नाच-गा कर प्रवेश करना चाहते  हैं ,एक दुसरे की आत्मा  में ,और बसाना चाहते  हैं अपना घर संसार .
आहा!
कितनी बड़ी है यह दुनिया जो सिमट  कर रह जाती है एक छोटे से घर में  ,उस छोटे से घर के छोटे से घर-संसार में ।
अपर्णा ...............1310 अ बसंत विहार कानपुर 208021                                        


 जमाने की बात
जिन्दगी का प्रवाह  धीमी गति से चलता रहता है   कभी  ख़ुशी कभी गम .....
कभी  छोटी सी घटना अपार आनंद प्रदत्त करती है  और कभी एक छोटी सी  कोई घटना समय के  विराट काल -खंड पर अपने  नख गड़ा देती है ,  दोनों ही  स्तिथि में संयम और धैर्य से काम  लेना चाहिए ,क्योंकि हर बड़े  बदलाव के  बीज  किसी  अदना सी  घटना  में  ही   छिपे   रहते हैं ।
अपर्णा ........

Sunday 16 December 2012

sanghrsh

आज   जीवन एक चुनौती है ,एक  संघर्ष है इसे स्वीकार करने के आलावा हमारे  पास कोई चारा नहीं है जीवन एक अवसर है इसका सही उपयोग करके उन्नति के शिखर तक पहुंचा जा सकता है, हर व्यक्ति की संरचना तो एक ही है ,

फिर भी कुछ साहसी होते है और कुछ भीरु .
साहसी व्यक्ति मुसीबतों से होड़ लेतें है और अपने बल से उन्हें अपने अनुकूल बना लेते है,
 जबकि भीरु व्यक्ति  घबराकर
 बुरी  आशंकाओं से  घिरकर  विचलित  होने लगता है  और  हड़बड़ी  में  और परेशानियों को निकट  ले आते  है .  इसलिए मेरे हिसाब से हर विपत्ति या आपत्ति अभिशाप नहीं होती । जीवन की प्रारंभिक विपत्तियाँ अनेकों बार वरदान सिद्ध होती है ।ऐसा कई महापुरुषों की जीवन गाथा पढने से  लगता है और  मुझे इसी से बल  मिलता है ।
अपर्णा ............................................

Tuesday 11 December 2012

aaj ki sham .

आज उम्र के 50वें पड़ाव पर आके ,व्यस्त जिन्दजी से दूर ,पुणे के इस घर में, जो की चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है ,और पहाड़ियों की ऊंची -नीची चोटियों के बीच बसा है ,शाम के समय जब हल्की बूंदा-बांदी हो रही है  ,ह्रदय को अनायास ही सम्मोहित किये दे रही है ।अपनी कमरे की  खिड़की के पास बैठी  कुदरत के इस अदभुत नजारे को देख रहीं हूँ ,मन  खुले में जाने के लिए मचल उठा  है ,रोज की तरह नीचे आकर बैंच पर बैठ गई ,और हवा के साथ उडती जल की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से तन और मन शीतल हो गया है ।
                                        अपर्णा ..................



 आज   मैं  भौचक्की   रह गई  हूँ .
रिश्ते जो अच्छा समय रहते आस-पास ही नजर आते थे ,विपरीत परिस्थित में वे ही नज़र चुराते नजर आते  हैं ।और जो रिश्ता हमारे  लिए कभी बोझ से ज्यादा कुछ  नहीं रहा ,आज उसी रिश्ते ने हमारे आंसुओं को अपनी हथेलियों पर ले लिया है। मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया  है ।
                                                                                                         अपर्णा .

Sunday 9 December 2012

मेरे मन में बसी मेरी माँ की तस्वीर है।


सहज , सरल और गठा  बदन
सुन्दर     चेहरा और गोरा बदन
माथे पर कुमकुम की गोल बिंदी ,
सीधी  चाल
सूती धोती को सीधे पल्ले में पहने
सर को ढके , चूल्हे पर बैठी,
 मुझे गरम -गरम   रोटी परोस रही है
 माँ   से    अंतिम  मिलन .

 जेठ की  दोपहरी ,
 सूरज  अपनी
 जवानी  पर   इतरा रहा  था  
 और   अम्मा   उम्र के अंतिम पड़ाव में 
 अपनों के   बीच होते हुए  भी  असहाए सा 
 महसूस    कर  रही थी .

 कूलर की   शीतलता भी  तन को  आराम नहीं   दे रही थी 
 सहज  ही वे,
 भाव -  भक्ति को    भूल
 शूल को  झेल रही थी .
 पीड़ा  व्यक्त ना हो   जाये
 इस भय से ,
 मुख पर  फीका  हास लिए
 वह मुझसे बोली -
 बेटा
 खाना खा लो
 दोनों ने साथ में खाना खाया,  फिर आराम किया.
 वह भी  सोई, मै भी सोई 

 लेकिन वह सोई !
 चिर  निद्रा में


Wednesday 5 December 2012

  भोर का सूरज

उग आया  है
रोज की तरह !

और सोचती हूँ की ,
आत्मविश्वास से भर कर

कुछ नया करने की शुरुआत करूँ ,

मन के कोने में बैठे अंधकार को निकाल दूँ .
जो कुछ भी नया नहीं देखने देता , 

इसे भगाना ही होगा . नई उर्जा भरकर
नकारात्मक सोच को दूर कर सकारात्मक-

सोच से भविष्य का दर्पण साफ करना होगा
तभी हम अपनी सही अक्ल और शक्ल देख पाएंगे  

Tuesday 4 December 2012

bachchon ka sampurn vikas

बच्चों  के सम्पूर्ण विकास के लिए केवल शारीरिक विकास ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके विकास से जुड़े भावनात्मक ,रचनात्मक एवं सांस्कृतिक पक्षों को भी जानना और समझना आवश्यक है ।
संवाद रचना में मेरा प्रयास जारी रहेगा .आपकी सराहना बस  मिलती रहना चाहिए ............

mere lal

मेरे लाल !
मेरे  लाल जब तुम छोटे  थे ,
और आते थे मेरे पास खिलौने लेकर
मै  लौटा देती कि  अभी समय नहीं है ,
जाओ .
और तुम उदास सा  चेहरा  लेकर लौट जाते।
नहीं जानती थी की बचपन चाहता था 
मेरा साथ !
और आज समय कितना तेजी से भागता जा रहा है
तुम्हारा बचपन जवानी की  ओर बढता जा  रहा है
अब  तुम्हारा दिल किसी और के लिए डोल  रहा है
जैसे पंछी उड़ान के
लिए पर खोल रहा है
व्यस्त  हो तुम अब .
और मेरा बुडापा  चाहता है
अब तुम्हारा साथ ।

Sunday 2 December 2012

एक शुरुआत

उतार - चढ़ाव ..... खुशी - गम ... जीवन की गाड़ी के इन्ही पहियों से बनती है लय ... और शुरू होता है संवाद !
संवाद से दुनिया चलती है .. दुनिया बनती  है  ... आपकी  हमारी  .... इन्ही की एक छोटी दुनिया बसाने की ... इनको पिरोने की एक कोशिश है ... संवाद रचना !