नर हो, न निराश करो मन को।
आज हम चारों तरफ नजर दौडाएं तो, जो द्रश्य आखों के सामने उभरता है, वह सचमुच परेशान करने वाला है .मन कभी-कभी बैठ जाता है चोरी, डकैती, हिंसा ,बलात्कार, आरोप -प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है, कि लगता है कि जैसे कोई ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है।
जो ईमानदारी से मेहनत करते है, और अपनी जीविका चलते है, वे निरीह, भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं। ईमानदारी को मुर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई तो केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से में पड़ी है, ऐसे में उनकी भी आस्था हिलने लगी है।
ये बातें नई नहीं है पर इसकी विभत्सता शायद पहले कभी इतनी बिकराल होकर नहीं प्रकट हुई थी।
पर मेरे मन ! अभी निराश होने की जरुरत नहीं है।
2013 में एक मशाल तो जली -ही है। यदि बुरी बातों का ही ख्याल रखूं ,तो जीवन कष्टकर हो जायेगा। जीवन में बहुत सी घटनाएँ ऐसी भी होती है,जहाँ लोगों ने अकारण ही सहायता की है, निराश मन को ढाढस दिया है और हिम्मत बंधाई है ।
आशा की ज्योति अब पूरे भारत में जल गई है ,इसे अब कभी बुझने न दिया जाये ।
अपर्णा ............................