Thursday 31 July 2014

 बच्चों को ,अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाएं।                                                                                            अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।   
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।                                          सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा पर श्रद्धा हो और गर्व महसूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें ..................arpana
मित्रों , २ जुलाई को पथरी का ऑपरेशन करा के अब स्वस्थ हो गई हूँ ,पुनः f. b पर सक्रीय !                               खुली किताब -----      जिंदगी और किताब का गहरा रिस्ता है इसीलिए कभी-कभी ये जुमला भी कहा जाता है कि फलां कि जिंदगी एक खुली किताब है ,लोगों से सुनकर और किताबों से पढ़कर जिंदगी की समझ और बढ़ती है। जिंदगी संवरती है ,तभी तो शायर कहता है --"दर्द चेहरे पर पढ़ रहा हूँ मै  ,एक कहानी फिर गढ़ रहा हूँ मै  "                                                                                                                                                              निर्धन कवि के पास क्या ?  कुछ पीड़ा कुछ प्रीत और कुछ अनदेखे स्वप्न हैं दर्द भरे कुछ गीत                           जब तक दर्द आंसू नहीं बनता तब तक कविता नहीं बनती ,   अर्पणा पाण्डेय