Saturday, 3 September 2022

उत्तर भारत के लोकगीत और लोक कथाएं

 लोकगीत एवं लोक कथाएं हमारी संस्कृति  को परिलक्षित करती हैं लोकगीत और लोककथा को संरक्षित रखना एक दुष्कर कार्य होता जा रहा है । लोग ग्रामीण अंचलों से शहरी अंचलों में आकर इतने मग्न हो रहे हैं कि कहीं ना कहीं वे लोकगीत एवं लोककथा को कहने सुनने में शर्म और संकोच महसूस करते हुए नजर आते हैं  कहीं उन्हें हम कम पढ़ा लिखा मान लेते हैं और वह हीन भावना के शिकार होने लगते हैं जबकि सत्य है की असली भारतीय संस्कृति गांव में ही बसती है यह संस्कृति क्रमशः निरंतर एक से दूसरे को युगों युगों से आदान प्रदान की जाती रही है आज बच्चों के जन्मदिन पर जच्चा बच्चा गीत, सोहर ,सरिया लुप्त होते दिख रहे हैं l शहरी निवासी होते ही लोग केक काटने का चलन चलाने में गर्व महसूस कर रहे हैं हमारे यहां जैसे जन्मदिन पर दीपक को प्रज्वलित किया जाता है वही आज  केक काटते समय दीपक को बुझाया जाता है। मुंडन ,छठी ,अन्नप्राशन  ,विवाह जैसे कार्यों में बिना गाए कोई कार्य नहीं किया जाता था l आज उसकी जगह  माइक और सीडी मैं ने ले ली है। इसी प्रकार लोक कथाएं भी लुप्त होती जा रहे हैं हर  त्यौहार पर पहले घर की बुजुर्ग महिला उस त्योहार से संबंधित कथा सुनाती थी और सभी लोग उसको ध्यान से सुनते थे फिर कहते थे भगवान जैसा उसके साथ हुआ वैसा ही मेरे साथ भी हो मैं आपकी पूजा विधिवत करूंगी मुझे उस का योगफल दीजिए मैंने भी अपनी मां कुसुम चतुर्वेदी से हर पावन पर्व पर कथा सुनी और हर शुभ अवसर पर  उनके गाए हुए गीतों को गुनगुनाती  आई ,मैं उनके सुनाए हुए गीतों को और उनकी सुनाए हुई कहानियों को इस किताब रूप में संपन्न कर रही हूं आप सभी लोग इसे पढ़ें और गुनगुनाए परिवार के साथ बैठकर इन कथाओं का आनंद लें इसी आशा के साथ मैं इस पुस्तक को आप सभी तक पहुंचाना  चाहती हूं l हमारी धरोहर संरक्षित रहे उसका प्रचार प्रसार हो यही मेरी कामना है इस कंप्यूटर युग में आज भी पुस्तकों में लिखी कहानियां बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती रहती हैं । 


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