Saturday 7 August 2021

प्रेम

 प्रेम करना परम संतोष दायक है। किन्तु प्रेम करना आसान नहीं है.   इसमें एक दूसरे के सुख ,दुःख और श्रम का भी भागीदार बनना पड़ता है।दुःख से हृदय निर्मल होता है और सुख से -दुःख की क्षति पूर्ति होती है। श्रम से मनुषत्व का विकास होता है। इसलिये प्रेम के लिये ये तीनों ही आवश्यक हैं।  इसके लिये पहले करुणा और देख - भाल का भाव जगाना पड़ता है। फिर आदान - प्रदान शुरु होता है। एक साथ रहते हुये हमे सुख. दुख. व श्रम को एक साथ लेकर चलना होता है. एक की भी डगमगाहट दूसरे को कमजोर बना देती है। हम इसमें एक-दूसरे के इतने आदी हो जाते हैं कि फिर कोई कार्य अकेले नहीं होता। असंभव सा लगने लगता है। 

शुरुआत में प्रेम करना मेहनत का काम है। लेकिन वही मेहनत बाद में स्वचालित क्रिया हो जाती है। धीरे-धीरे संबन्धों में सुधार होने लगता है. फिर निखार आने लगता है। तत्पश्चात प्रेम से संगीत गूंजने लगता है।

         अर्पणा पाण्डेय.

         9455 22 5325

Sunday 1 August 2021

एकाकीपन . .

 किसी को 2 , 3 फुट चौड़ी पट्टी पर चलने को कहा जाये और उसके दोनों तरफ गड्डा हों तो उस पर चलना असम्भव होगा ,यही बात इंसानी रिश्तों पर भी लागू होती है , ये छोटे - छोटे नाजुक संबंध हमें सुरक्षा का वह कवच देते हैं . जिसके  हटते ही एकाकीपन का अंधेरा हमें दबोच लेता है।

शरत चन्द्र ने अपने उप न्यास देवदास के अंत मैं लिखा हैं कि देवदास का मरना उतना दुःखद नहीं था जितना कि यह कि मरते समय अपने किसी प्रिय जनों की आँखों में वह एक बूंद भी न देख सका । देवदास की त्रासदी उसका प्रेम में विफल हो जाना ही नहीं बल्कि उसकी त्रासदी है सबसे कट जाना।