Sunday 4 October 2015

दूरियाँ जब बढ़ी तो गलतफहमियां भी बढ़
गयी... फिर तुमने वो भी सुना जो मैंने कहा
ही नही
शब्द ......कहीं 'घाव' बन जाते तो कहीं औषधि बनकर घावों को ठीक कर देते है....
लाख मिठाईया हो .
मगर...
ख़ुशी के आंसू का स्वाद सबसे मीठा होता है...
टेक्‍नोलॉजी .....
आप एक क्लिक करते है और दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं, बिना ऑफिस जाएं घर बैठे कमा लेते हैं, 48 डिग्री के झुलसते तापमान में ठंडक महसूस करते हैं, बिना हाथों से सिलबट्टा चलाएं चटनी पीस लेते हैं, बिना पैदल चले हजारों मील का सफर तय कर लेते हैं, बिना लाइन में लगे बिल भर देते हैं और न जाने ऐसे कितने ही हजारों काम....
शहर की जिंदगी भी कैसी हुई जा रही है। क़ि हमे अपने बगल में रहने वाले की भी जानकारी नहीं,या कहें की जान लेने की फुर्सत ही नहीं, न जाने कूँ समय इतना महंगा हुई गया है या कहें की हमारा अहंकार इतना बढ़ गया है की हम मिलते नहीं। अब बिना काम के आदमी से आदमी का मिलना अशिष्टता के अंतर्गत गिना जाने लगा है. बात सही है या नहीं आप बताएं। .....