Tuesday 30 August 2022

महालक्ष्मी व्रत कथा. .

 एक समय महाराज युद्धिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण जी से बोले कि हे प्रभु कोई ऐसा व्रत बता इये जिससे मैं अपऩे छूट हुये राज्य को वापस पा सकूं पुत्र आयु और समस्त ऐश्वर्य को देने वाला हो. उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि सतयुग में जब दैत्य़ लोग देवताओं को सताने लगे थे तब देवराज झ्ट्र ने नारद जी से यही युक्ति पूछी थी तब नारद जी ने एक कथा सुनाई थी वह इस प्रकार हैं।

नारद जी बोले प्राचीन काल में एक़ सुन्दर नगर था वहाँधर्म अधर्म कर्म और मोक्ष की उत्पत्ति होती थी उस नगर के राजा का नाम मंगल था राजा के एक भाग्य हीन सनी भी जिसका नाम चिल्ल देवी था दूसरी काफी समझ दार कीर्ति प्रदायनी  यशस्वी पत्नी थी उसका नाम चोल देवी था।एक दिन राजा अपनी पटरानी के

साथ अटारी पर बैठे थे वहां से उन्होंने एक सुन्दर बगीचा देखा और रानी से बोले कि मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा ही बगीचा बन वाऊँगा चोल देवी के हाँ कहने पर राजा ने उस स्थान पर एक सुन्दर बगीचा बनवा दिया जिसमें नाना प्रकार के फल फूल लगवाये पक्षियों का सुन्दरकलरव गाना होता जो कि राजा रानी को बहुत प्रिय लगता भाग्यवश एक दिन उस बाग में एक वाराह ने घुसकर फल फूल के वृक्ष सब तहस. नहस कर डाले और वहाँ के रक्षकों को घायल कर दिया ।राजा को बड़ा क्रोध आया और सिपाहियों से कह दिया कि इसे तुरन्त मार डालो और जिसके सामने से यह जिन्दा निकल गया उसे मैं शत्रु की भाँति काट डॉलूंगा।

वह वाराह राजा के ऐसे कठोर वचन सुनकर उनके सामने से ही निकल गया अब राजा लज्जित हुये और तुरन्त घोड़े पर चढकर उसका पीछा करने लगे पकड़ ये आने पर राजा ने उसे मार डाला। तब वही वाराह गन्धर्व स्वरूप कामदेव के समान वेष को धारण कर राजा से बोला कि हे राजन तुम्हारा कल्याण हो तुमने मेरी मुक्ति कर दी मैं इस प्रक़ार की योनि में कैसे आया ये मैं आपको बताता हूँ _ 

एक बार सभी देवताओं के मध्य में भगवान ब्रम्ह कमल के आसन में बैठे हुये थे मैं ष ड़ज ,निषाद गांधार,मध्यम,देवत, पंचम आदि सप्त स्वरों से गीत गा रहा था अचानक गाते-गाते बीच में मैं वेसुरा गाने लगा। इस नीच कर्म से क्रुद्ध होकर ब्रम्हा जी ने मुझे यानि में चित्र रथ गन्धर्व को श्राप दे दिया कि तुम प्रथ्वी पर जाकर सुअर हो जाओं और तुम्हारी मुक्ति तभी होगी जब अनेक राज्यों पर विजया करने वाला राजा मंगल तुम्हे मारेगा सो रहे राजन आज मैं मुक्त हो गया हूँ अतः हे राजन देवताओं को दुर्लभ मेरा आप एक वरदान ग्रहण करें तुम महालक्ष्मी का वृत करोयह पूजन वृत भाद्र पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और सोलह दिन अष्टमी तक किया जाता है। प्रथम अष्टमी के दिन स्थान को साफ करके महालक्ष्मी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया जाता है। विधिवत पूजन सामाग्री तैय्यार करें और व्रत रक्ख़ें इससे आप सार्वभौम राजा होंगे।अब आप अपने राज्य को जाइये ऐसा कहकर वह गंधर्व अन्तर धान हो गया तभी राजा ने एक ब्रम्हचारी को देखा तो राजा बोला कि हे विप्र आप कौन हैं तब राजा ने उससे कहा हे राजन

मैं आपके देश का ही हूँ मेरे लिये कोई काम हो तो बताइये तब राजा बोला हे बटोही,आज से तुम्हारा नूतन जन्म हुआ तुम शीघ्र ही मेरे लिये कोई जलाशय स े शीतल जल लेकर आओ वह बटोही राजा को आश्वस्त करके बोला ठीक है आप यहाँ विश्राम कीजिये मैं जल लाता हूं। उसने थोड़ी ही दूर जाकर देखा किकुछ स्त्रियां जलाशय के किनारे पूजा कर रहीं हैं।तो वह उनके करीब पहुंचा और पूछा कि यह आप किसकी पूजा कर रहीं हैं और इससे क्या लाभ होगा उस ब्रम्हचारी के वचन सुनकर नारी समूह से एक नारी ने, बहे डी कोमल वाणी में कहा यह महालक्ष्मी का पूजन हो रहा हैभाद्र पक्ष की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है प्रातः काल निप्रत्त होकर सोलह बार हाथपैर धोकर सोलह धाग़ों का सूत लेकर उसमें सोलह गांठ बनाते हैं उसकी प्रत्येक गांठ की पूजा की जाती है। स्त्रियां अपने बायें हाथ में पहन ले और पुरुष अपने दाय़ें हाथ में तत्पश्चात सोलह साबुत चावल लेकरमहालक्ष्मी जी का आवाहन हाथी की प्रतिमा के साथ करें ,महालक्ष्मी समगच्छ् . सोलह सोलह दूब से महालक्ष्मी को स्नान करावे सोलह बार सिंदूर चढावे ,आज हर चढ़ाई वस्तु की मात्रा सोलह ही रक्ख़ें इस तरह सोलह दिन करकेअष्टमी को ही उद्यापन करें इसमें सब श्रंगार का सामान रक्ख़ें और ब्राम्हण या ब्राम्हनी को दान दें सोलह दीपक जलाकर कहानी सुनों तत्पश्चात प्रसाद वांट कर स्वंय खाओं इस व्र त को तुम करों और राजा से भी करवाओ यह वृत मनवांछित फल देने वाला होता है। किन्तु श्रृद्धा पूर्वक ही करें ऐसा सुनकर वह बटुक कमल के पत्ते का दोना बनाकर राजा के पास जल लेकर गया और राजा को सारी बात बताई तब राजा अपने साथ उस बटुक को भी अपने राज्य ले आये सभी नगर वासी हर्षित होकर राजा की जय जयकार करने लगे ढ़ोल नगाड़े बजने लगे स्त्रियां बच्चे पुरुष सब खुशी से नाचने लगीं किन्तु चिल्ल देवी के मन में राजा के हाथ में बंधा कलावा देखकर शंका हो गई कि राजा जरूर कही दूसरी स्त्री के पास गया होगा जिसने यह धागा बांधा है। और मौका पाकर उसने राजा के हाथ से वह धागा निकालकर फेंक दिया उधर दैवयोग से चोल देवी ने उस पूजित धागा देखा और उठा लिया और उस ब्रम्हचारी से उस धागे का महत्व समझ कर अगले वर्ष भाद्र पक्ष की अष्टमी को महालक्ष्मी की पूजा की तभी राजा ने उस धागे के बारे में पता किया तो पता चला कि वह धागा चोल देवीके पास है और वह पूजा कर रही है तभी राजा चोल देवी के पास गये,इधर चिल्ल देवी क्रोध में बैठी थी कि तभी महालक्ष्मी जी उसके पास कुछ मांगने गईं तो वह क्रोध में बोली जाओ यहां से तब महालक्ष्मी जी चोल देवी के पास गई तो देखा कि वह मण्डप सजाये बैठी है साथ में राजा भी हैं और वह बटुक भी वह तीनों महालक्ष्मी का आवाहन ही कर रहे थे महालक्ष्मी समगच्छ कि महालक्ष्मी जी वृद्धा के रूप में आईं और कु द्द खाने के लिये मांगा चोल देवी ने उन्हें नहला धुलाकर साफ वस्त्र पहनये और पूजन किया सब चढ़ा हुआ सामान दिया भोग लगाया लक्ष्मी जी तो इतने में बहुत खुश हो गईं और अपने असली रूप में हाथी पर बैठकर दर्शन दिये राजा-रनी  और वह ब्राम्हण बहुत खुश हुए लक्ष्मी जी ने कहा अब आप वर मांग लें. तब राजा रानी ने कहा आप यह वर दे कि संसार में सभी प्राणी इस पूजन को करे और कृतार्थ हों लक्ष्मी जी ने तथास्तु बत्रा और अंतर्ध्यान हो गई इधर चिल्ल दे वी पश्चाताप करने अंगिराकृषि के आश्रम में रहने लगी उन्होंने उसे ज्ञान दृष्टि दी तब राजा उसे भी अपने महल ले आये, और दोनों रानियां प्रेम से रहने लगी ं। वह बटुक राजा मंगल का महामन्त्री बना यह मंगल पुर आज भी महाराष्ट्र के कोल्हापुर गांव में है। जहाँ महालक्ष्मी जी का भव्य मंदिर बना हुआ है। राजा सभी सुखों को भोगकर श्रवज नामक नक्षत्र हुआ।

मंत्र,

महालक्ष्मी  नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्य सुरेश्वारि 

हरि प्रिय नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे। ।

आ मोती दामोती सोलह पाठ नगर में राजा

रानी कहें कहानी _ 

तुमसे खाती तुमसे पीती सोलह दूब के पोड़ा

सोलह चावल, सोलह दियाला, .सोलह वाती 

सोलह सूत की एक कहानी महालक्ष्मी रानी