बच्चों की छुट्टियाँ और हमारा कर्तव्य। (बच्चे और हस्त-कलाएं )
बच्चों के विकास का एक
महत्वपूर्ण पहलु है ,उनका रचनात्मक विकास। रचनात्मक विकास यानि बच्चे अपने
नन्हे-नन्हे हाथों से नई -नई वस्तुएं बनायें। इस रचनात्मक खेल को खेलते समय
बच्चे अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अपने परिवेश की खोज करते हैं अपने
आस-पास बिखरी चीजों को देखते हैं छूते हैं और महसूस करते है। फिर समझते
हैं। वे अपने अनुभव द्वारा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए जब भी हम
बच्चों के लिए कला-या हस्तकला की बात करते हैं तो इसका मतलब स्वयं बच्चो
के हाथों द्वारा कुछ करने या वस्तुएं बनाने से होता है।
यह आवस्यक नहीं है की हम बच्चो को महंगे से महंगा सामान ही लाकर
दें बल्कि घर पर कई ऐसी बेकार की वस्तुएं पड़ी रहती हैं ,जिनका उपयोग करके
बच्चो की रचनात्मक प्रवृत्ति को जगाया जा सकता है। हम उनकी हस्त कुशलता से
उनकी क्षमताओं को विकसित करके अपने तथा बच्चों के खाली समय को काफी हद तक
उपयोगी बना सकते हैं। इस कार्य में घर में पड़ी अनावस्यक समझ कर फेंकी गई
चीजे बहुत काम है, जैसे --दफ्ती के पुराने डिब्बे ,अलग-अलग आकर के कार्ड
-पोस्टकार्ड ,पुरानी कापी - किताबों की जिल्द ,तथा पुरानी चूड़ियाँ इत्यादि,
सहायक सामग्री - के रूप में लेइ या गोंद ,कैची ,रंग पेन्सिल ,सुई-धागा
,तथा कपड़ों की छोटी-छोटी कतरने पर्याप्त होंगी। सबसे पहले तो बच्चो को
इन्हे व्यवस्थित ढंग से रखने को कहें। इसी तरह काम हो जाने के बाद भी बचे
हुए सामान को यथास्थान रखवाकर सफाई की ओर भी ध्यान दिलवाएं यदि बच्चे एक से
अधिक हो तो सबको एक ही काम न देकर अलग-अलग तरह का काम दें। इससे उनके
क्रिया-कलापों का निर्देशन करना सरल हो जाता है। हाँ, जब बच्चे कार्य करने
लगे तब उन्हें नक़ल करने के लिए कोई अन्य नमूना न दे ,इससे बच्चो के
रचनात्मक विकास में अवरोध उत्पन्न हो सकता है । इससे वह कुछ अलग करने
के लिए अपनी ज्ञानेन्द्रियों तथा मस्तिष्क पर जोर डालकर कुछ सोचेगा ,उस
समय आप उसकी रचना देखें और उसको विकसित करने में सहयोग
करें। फोन ० ९४५५२२५३२५