Sunday 25 May 2014

बच्चों की छुट्टियाँ और हमारा कर्तव्य। (बच्चे और हस्त-कलाएं )

बच्चों के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलु है ,उनका रचनात्मक विकास। रचनात्मक विकास यानि बच्चे अपने नन्हे-नन्हे हाथों से नई -नई वस्तुएं बनायें। इस रचनात्मक खेल को खेलते समय बच्चे अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अपने परिवेश की खोज करते हैं अपने आस-पास बिखरी चीजों को देखते हैं छूते हैं और महसूस करते है। फिर समझते हैं। वे अपने अनुभव द्वारा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए जब भी हम बच्चों के लिए कला-या हस्तकला की बात करते हैं तो इसका मतलब स्वयं बच्चो के हाथों द्वारा कुछ करने या वस्तुएं बनाने से होता है।
यह आवस्यक नहीं है की हम बच्चो को महंगे से महंगा सामान ही लाकर दें बल्कि घर पर कई ऐसी बेकार की वस्तुएं पड़ी रहती हैं ,जिनका उपयोग करके बच्चो की रचनात्मक प्रवृत्ति को जगाया जा सकता है। हम उनकी हस्त कुशलता से उनकी क्षमताओं को विकसित करके अपने तथा बच्चों के खाली  समय को काफी हद तक उपयोगी बना सकते हैं।  इस कार्य में घर में पड़ी अनावस्यक समझ कर फेंकी गई चीजे बहुत काम  है,  जैसे --दफ्ती के पुराने डिब्बे ,अलग-अलग आकर के कार्ड -पोस्टकार्ड ,पुरानी कापी - किताबों की जिल्द ,तथा पुरानी चूड़ियाँ इत्यादि, सहायक सामग्री  - के रूप में लेइ  या गोंद ,कैची ,रंग पेन्सिल ,सुई-धागा ,तथा कपड़ों की छोटी-छोटी कतरने पर्याप्त होंगी। सबसे पहले तो बच्चो को इन्हे व्यवस्थित ढंग से रखने को कहें। इसी तरह काम हो जाने के बाद भी बचे हुए सामान को यथास्थान रखवाकर सफाई की ओर भी ध्यान दिलवाएं यदि बच्चे एक से अधिक हो तो सबको एक ही काम न देकर अलग-अलग तरह का काम दें। इससे उनके क्रिया-कलापों का निर्देशन करना सरल हो जाता है। हाँ, जब  बच्चे कार्य करने लगे तब उन्हें नक़ल करने  के लिए कोई अन्य नमूना  न दे ,इससे बच्चो के रचनात्मक विकास में  अवरोध उत्पन्न हो सकता है । इससे वह कुछ अलग करने के  लिए अपनी ज्ञानेन्द्रियों तथा मस्तिष्क पर जोर डालकर कुछ सोचेगा ,उस समय आप उसकी रचना देखें और उसको विकसित करने में सहयोग करें।                        
छोटे बच्चो को कागज -पेन्सिल देकर भिन्न-भिन्न तरह के रेखचित्रों को खीचने के लिए प्रेरित करें। आप कुछ रेखाएं खींचकर उसको चित्र बनाने के लिए कहें ,फिर आप देखेंगे कि बच्चा किस तरह अपनी स्मरण शक्ति पर जोर लगाकर क्या सोचता है। और क्या बनाता है यह क्रिया स्लेट और चॉक ,विशेस कर रंगीन चाक द्वारा भी की जा सकती है भृमण के दौरान रेतीले स्थानो पर बच्चों के हाथ में एक डंडी पकड़ाकर उसकी रचनात्मक क्रियाओं को विकसित किया जा सकता है पुराने कार्डों से पंखा बनाना ,कागज से नाव फूल ,लिफाफा बनाना ,वॉल हैंगिंग जैसी अनेक हस्त-कलाएं है जिन्हे बच्चे बहुत ही मन लगाकर करेंगे। रंगीन कागज से घर, पेड़, फूल, पत्ते ,सूरज आदि की कटिंग करके  दफ्ती पर चिपकाकर  सीनरी बनाई जा सकती है बच्चे उनसे क्या-क्या बनाते है ये उनकी रचनात्मक सोच पर छोड़ दें ऐसा करते वक्त आपका बराबर उनके पास बैठना भी  आवस्यक नहीं है। बस आप बीच-बीच में देखती जाएँ।
बच्चो में कलात्मक अभिरुचि के विकास में एक क्रिया और  महत्वपूर्ण हो सकती है
बच्चों को कागज के कुछ टुकड़े करने को कहें और उन टुकड़ों को एक जगह एकत्रित कराएं फिर आप एक कार्डसीट  पर पेन्सिल से किसी पशु-पक्षी या फूल का चित्र बना दे अब बच्चे से कहे कि उन टुकड़ों को लेइ या गोंद  लगाकर चित्र भरें पूरी जगह भर जाने के बाद मुख्य स्थान जैसे आँख ,कान ,सींग,में अलग रंग के टुकड़े  चिपकने को कहें। इससे आप स्वयं देखेंगी कि बच्चे कितनी तल्लीनता के साथ इस कार्य को कर रहे हैं।
यह क्रिया बच्चों में आगे चल कर "कोलाज़"  कला के प्रति अच्छी अभिरुचि जाग्रत करने में सहायक होगी।
इसी तरह लकड़ी के बुरादे,नारियल के खोल और जटाओं से बच्चो को कुछ बनाने के लिए कहें ,नारियल के खोल के आधे भाग को चेहरे का रूप बनाने को कहें और उस पर पुराने कार्ड से टोपी का आकार  बनवाएं और पहनाएं वे अपनी सोच व कल्पना शक्ति से टोपी  पर रंग बिरंगी आकृतियां भी बना सकते हैं बस आप दिशा निर्देश देती जाएँ। नारियल की जटाओं ब्रश से झाड़कर इस मानवाकृति के बालों के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। पुरानी ऊन ,सुतली  तथा धागे के सहारे खूबसूरत गुड़िया भी बनाई जा सकती है। रंगीन कागज की कुछ पत्तियां काटकर बच्चे को दे दें,फिर उन्हें चटाई की तरह बुनना सिखाएं । इस तरह अनेकों क्रियाएँ आप अपनी कल्पना शक्ति के माध्यम से विकसित कर सकती हैं।
आप देखेंगी कि खेल-खेल में किये गए इन कामों से बच्चों का मनोरंजन भी होगा और रचनात्मक विकास भी ,बच्चों के इन कामो को सराहें और देखे कि उन्होंने क्या सीखा। बच्चों के साथ बच्चा बनकर आपको अपना बचपन लौटता नजर आएगा और इस तनाव भरे जीवन में कुछ देर ही सही ,सुखद अहसासों की अनुभूति  होगी।
           
                          अर्पणा पाण्डेय
                          फोन ० ९४५५२२५३२५

 

Saturday 3 May 2014


 दीवारें ----------
हर एक घर मे दीवारें हैं
और उन दीवारों मे बन्द दरवाजे हैँ

सूरज अन्दर धुसने को बेताब है
सुबह वह मुस्काती - लालिमा लिये
यहाँ-वहां चारों ओर देखता है
बंद दरबाजों को देख क्रोध मे जलता है तपता है
और  फिर -
शाम को  निराश होकर ठंडा पड़  जाता है

अर्पणा पाण्डेय ---