एक ब्राह्मणी की एक पुत्री थी और एक बहु दोनों पूजा व्रत हमेशा करते थे पूजा के बाद पंडित जी आशीर्वाद देते बेटी को कहते सुखी रहो और बहू से कहते पुत्रवती हो घर वर समृद्धि सब बड़े । एक दिन ब्राह्मणी ने पंडित जी से पूछा कि आप बेटी को घर बर का आशीर्वाद क्यों नहीं देते? तब पंडित जी ने बताया कि जब यह पुत्री तुम्हारे पेट में थी तो तुमने सोमवती अमावस्या के दिन अपने पेट में तेल लगा लिया था और हल्दी का प्रयोग किया था इससे इसका विवाह का योग नहीं बन रहा है यदि विवाह हो गया तो इसे सुख नहीं मिलेगा ब्राह्मणी बहुत दुखी हुई और बोली महाराज इसका कोई उपाय तो होगा वह बताइए वरना बेटी कुमारी कैसे और कब तक रखेंगे जब पंडित जी ने सोमवती अमावस का व्रत करने को कहा जो अमावस सोमवार को पड़े वह सोमवती अमावस्या कहलाती है इस दिन हल्दी और तेल को छूना मना है और पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है जिसे तुम और यह कन्या करें और हमेशा करती रहे उसकी पूजन विधि इस प्रकार है सोमवती अमावस्या के दिन सर्वप्रथम घर की साफ सफाई करें । स्वयं स्नान करें साबुन का हल्दी का और तेल का प्रयोग ना करें पूजन सामग्री में अपन बनाकर रख लें शुद्ध घी का दीपक जलाएं एक कलश शुद्ध जल लेकर पीपल के वृक्ष की फेरी लगाने के लिए चना ले ले चना अगर ना हो तो रेवड़ी किशमिश पेड़ा और इलायची दाना भी ले सकते हैं अपनी सामर्थ्य अनुसार गिनती में 108 या 51 रखें अब पुराने पीपल के वृक्ष पर सर्वप्रथम जलाभिषेक करें दीपक जला ले और अपन लगाएं तथा पीपल के चक्कर लगाएं और चक्कर लगाते समय चना या जो भी सामग्री हो से चढ़ाते जावे तत्पश्चात स्मरण करें आरती करें और चढ़ी हुई वस्तु को खा लें किसी कन्या को दान में दें प्रसाद रूप में उसे बांट दें स्वयं ना लें फिर घर में जो भी पदार्थ बनाएं उसमें हल्दी व तेल का प्रयोग ना करें उपवास भी ना रखें बस बाहर का खाना ना खाने इस तरह धीरे-धीरे बेटी पर लगा सोमवती अमावस क दोष कम होता जाएगा और घर बर की समृद्धि उसे भी प्राप्त होगी ब्रह्मदेव के श्राप से उसे मुक्ति मिलेगी।
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