Tuesday, 19 July 2022

बट सावित्री व्रत कथा

 जेष्ठ माह की अमावस्या को यह व्रत रखा जाता है स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है बरगद के फल के समान मीठे पुए बनाए जाते हैं और इस मौसम का प्रिय फल आम या खरबूजा चढ़ाया जाता है लाल चने भिगोकर पूजा में रखे जाते हैं उन से 12 बार बरगद के चक्कर लगाए जाते हैं । और कच्चे सूत से जनेऊ बनाकर उसे हल्दी से रंग कर दो माला बनाई जाती हैं l एक बरगद के वृक्ष पर चढ़ाते हैं ,और दूसरा स्वयं पहनते हैं .कम से कम 12 दिन अवश्य पहनना चाहिए इस प्रकार सुहागन महिलाएं या तो परिवार के साथ व अपने सहेलियों में समूह बनाकर सोलह सिंगार करके निर्जल व्रत रहकर पूजा करने जाती हैं l बरगद के वृक्ष पर जल चढ़ाकर  हल्दी आटे से  घोल बनाकर वृक्ष पर लगाते हैं l फूल चढ़ाते हैं फल चढ़ाते हैं और काले चने चढ़ाकर 12 12 चने और बरगद की कलंगी को 12 टुकड़ों में तोड़कर एक साथ पानी से  लिया जाता है l तत्पश्चात  महिलाएं एक दूसरे को जनेऊ की माला पहनाते हैं और कहानियां कहती हैं। इसमें सत्यवान और सावित्री की कहानी को आधार में रखा गया है....

 कहानी इस प्रकार है सावित्री नाम के स्त्री थी । वह बड़ी ही पतिव्रता थी पति की बहुत सेवा करती थी पति का नाम सत्यवान था,  जैसा नाम था वैसा ही वह सत्य बोलने वाला था एक दिन उसका पति लकड़ी काट रहा था तभी वह वृक्ष के नीचे गिर पड़ा अर्थात उसके प्राण निकल गए सावित्री उसके साथ हीं थी वह अपने पति को अपने गोद में लिए हुए विलाप कर रही थी जब यमदूत सत्यवान के प्राणों को उसके शरीर से खींच कर ले जाने लगे तो सावित्री ने यमदूत से बड़ी विनती करी कि मेरे पति को जिंदा कर दो । परंतु उन दोनों ने कहा नहीं इसकी इतनी ही जिंदगी थी अब यह मृत्युलोक को जाएगा किंतु सावित्री नहीं मानी और यमदूत के पीछे पीछे चलने लगी और प्रार्थना करने लगी......

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे  दे दो

मैं पति की पुजारिन हूं पति प्राण मुझे दे दो 

सिंदूर भरा जिसके कहलाती सदा  सधवा

सिंदूर बिना नारी कहलाती सदा विधवा 

सिंदूर सुहागन के पहचान मुझे दे दो 

मेरे मन मंदिर के भगवान मुझे दे दो। 

ऐसा कहते कहते हैं वह उन दोनों के साथ  साथ बदहवास सी चलती जा रही थी । तभी एक यमदूत को उस पर दया आ गई उसने कहा अच्छा तुम कोई वर मांग लो तब सावित्री ने सदा सुहागन रहने का वर मांगा ! यमदूत ने तथास्तु  कह दिया वे सावित्री के इस बात को  समझ नहीं पाय और जाने लगे लेकिन सावित्री को पीछे आते देख उन लोगों ने फिर उसे टोका तब सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति को ले जाएंगे तो मैं सुहागन कैसे  कहलाती  इसतरह सावित्री के हट को और उसके होशियारी को देखकर यमराज को भी झुकना पड़ा,  और सत्यवान के प्राण वापस कर दिए तभी से सत्यवान और सावित्री की कथा कहीं जाने लगी वट वृक्ष के नीचे यह कहानी इसीलिए कहीं जाती है क्योंकि इस वृक्ष के नीचे ही यह सब हुआ था  तभी से वट वृक्ष की पूजा लोग करते चले आ रहे हैं । 

अर्पणा पांडे

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