एक राजा था उसकी एक रानी थी सब कुछ होते हुए भी उसके कोई औलाद नहीं थी इस कारण राजा और रानी हमेशा दुखी रहते थे क्योंकि एक दासी थी जो संकटा देवी की पूजा हमेशा किया करती थी वह रानी को भी समझाते कि तुम संकटा देवी की मन्नत मान लो और सुहागिन औरतों को एकत्र कर संकटा देवी की पूजा अर्चना करो ज्यादा ना हो सके तो सवा किलो का प्रसाद बनाकर तैयार करें और पांच सुहागिन औरतों को बुलाकर उन्हें खिलाएं साथ ही श्रृंगार का सामान और दक्षिणा देकर विदा करें। रानी ने काफी सोच विचार कर दासी से कहा कि ठीक है हमारे पुत्र होगा तो हम संकटा मैया की पूजा करेंगे और सभी सुहागिनों को बुलाकर उन्हें भोजन कर आएंगे इधर राजा बहुत परेशान रहते थे एक दिन राजा बाहर भ्रमण को निकले तो उन्होंने देखा की प्रजा उनसे आंखें फेर रही है राजा ने घर आकर मंत्री से कहा के आज प्रजा ने मुझसे आंखें फेर ली ऐसा क्या हो गया पता करो तब मंत्री ने बताया के महाराज मुझे क्षमा करें आपके औलाद ना होने के कारण सुबह- सुबह आपका कोई मुंह नहीं देखना चाहता सब कहते हैं के निर्बन सी राजा का मुंह सुबह नहीं देखना चाहिए दिन भर खराब हो जाता है। रानी और दासी को यह बात बहुत बुरी लगी। तब दासी ने रानी से कहा कि मैं जैसा कहूं वैसा करो रानी ने कहा ठीक है सुबह होते ही दासी ने राजा से कहे दिया की रानी गर्भ से है और रानी को चुप रहने के लिए कह दिया तब राजा बहुत खुश हुआ। लेकिन दासी ने राजा से यह शर्त रखी कि वह रानी से नहीं मिलेंगे जब बच्चा हो जाएगा तब ही मिल सकते हैं राजा को इतनी खुशी थी कि वह इस बात के लिए तैयार हो गए 9 महीने बाद दासी ने राजा से कहकर ढिंढोरा भी पिटवा दिया की रानी को बालक हुआ है किंतु वह अभी किसी को दिखाया नहीं जाएगा उसके ग्रह है ऐसे हैं कि वह बाहर नहीं निकलेगा राजा चुप रहा और सारे राज्य में मिठाई बटवा दे इसी तरह छट्टी हुई मुंडन हुआ । और अंत में विवाह का समय भी आ गया राजा मन मार के बैठे रहे कुछ अनहोनी ना हो इस भय से राजा और रानी चुप रहे 15 वर्षों तक यह धैर्य बनाए रखें अब दासी ने राजा से कहा कि आप राजकुमार के विवाह की तैयारी करें राजा करता क्या न करता उसने एक कन्या से राजकुमार का विवाह भी तय कर दिया विवाह वाले दिन दासी ने सुंदर सी पालकी बनवाई और उसमें मेवे मिष्ठान से एक सुंदर सा पुतला बनाया और रख दिया ओढ़नी से ढक कर बरात उठाई गई गाजे बाजे ढोल नगाड़ों के साथ बारात निकलने को हुई आधी दूर चलने के बाद संकटा देवी का मंदिर आया । वहीं पर दासी ने पालकी को रुकवाया और संकटा मैया के मंदिर में दर्शन करने गई इतने में संकटा मैया बिल्ली के रूप में उस मेवे के लड्डू को खाने के लिए आतुर हो गई अपने को वह रोक नहीं पाएं तभी दासी मां के चरणों में गिरकर रोने लगी और बोली मां मुझे मेरा बेटा दे दो मैं तुम्हारी पूजा अवश्य करूंगी । संकटा मैया को दासी पर दया आ गई और उसने 16 बरस के कुमार को पालकी में बिठा दीया इस तरह बारात जब दरवाजे पर पहुंचे तब दासी ने राजा से कहा अब आप कुंवर साहब को देख सकते हैं लेकिन घर चल कर हमारी संकटा मैया की पूजा अवश्य करवाएंगे राजा बहुत खुश हुआ और उसने जो ही पालकी से पर्दा हटाया सुंदर सा राजकुमार देखकर राजा ने उसे गले से लगा लिया तत्पश्चात राजकुमार का विवाह राजकुमारी से हो जाने पर वापस अपने राज्य आ गए उधर रानी बहुत परेशान थी कि अब राजा हमें मार ही देंगे मैंने उनसे बहुत झूठ बोला। किंतु दासी के सच्चे मन से पूजा करने पर रानी और राजा को राजकुमार और बहू मिल गई थी यह बात रानी को जब पता चले तो रानी बहुत खुश हुई राजकुमार और बहू के स्वागत करने के बाद आरती करने के बाद संकटा मैया की पूजा की तैयारी भी की पूरे राज्य में सुहागिनों के निमंत्रण भेजे गए उन्हें विधिवत खिला पिला कर सोलह सिंगार का सामान देकर दक्षिणा देकर स सम्मान विदा किया इस तरह संकट आने पर संकटा देवी की पूजा सच्चे मन से की जाए तो वह सभी संकट हर लेती हैं सभी को संकटा मैया की पूजा विधि विधान से सच्चे मन से करनी चाहिए जय संकटा मैया की।
अर्पणा पांडे