कहो घना ,गोविंद के भये लाल.
हंसतें खेलत घर आये ,काहे घना अनमनी?मेरे लाल
लाज संकुचि की हैं बात, मर्द आगे का कहें मेरे लाल।
गोविंद _ हम तुम अन्तर नाहीं हम तुम अंतर एक
कपट जिया नाहीं,कहो दिल खोल के मेरे लाल।
बहू _ बाँहों कूल्हों मेरो कसके, करियाहयाँ मेरे सालें
उठी है पंजरवा की पीर,सुबर दाई चाहिये मेरे लाल।
गोविंद _ दाई को नाम ना जाने ,गांव ना जाने ,कहाँ दाई रहे बसें मेरे लाल ।
बहू _ पूछ ले ओ माई बहनिया ,सगी पितरानिया, शहर के लोग,कुआँ पनिहारिनिया मेरे लाल
दाई _ को मेरो टाटा खोलो ,कुकुर मेरो भूके,पहरूआ मेरे जाग उठे मेरे लाल
गोविंद _ माई की,पीर ना जानी,बहन परदेश ,हम घर अलख बहुरिया,रुदन भले भये मेरे लाल।
दाई_ माह पूस के हैं जाडे, दाई ने चले मेरे लाल।
गोविन्द _ हम तुम्हें शाला दें हैं, दुशाला देंहें,रथ ढरकहिये ,चलो उ लावनी।
जब दाई बाद में आई शगुन भले भये,जब दाई द्वारे पे आई शगुन भये। सखियन घर भरों मेरे लाल जब दाई अंगना में आई बोली,लाओ न् बेला भर तेल मलो तेरो पेट पिढ़री सुतत आई पीर ,सो लालन उर धरे मेरे लाल। वहू ÷ जब दाई घर से निकरी दाई को नाद सो हैं पेट,लाला लैके सोये रही मेरे लाल।मेरो सिर दुःखत् है मेरे लाल।
गोविन्द _ द्वारे से आये गोविन्द लला दाई से कौन लडे. मेरे लाल। शाल उढाये ,दुशाला उ ढाये, रथ ढ्ररकाये मेरे लाल।
कहो घना गोविन्द के भये लाल, हंसतै खेलत घर आये मेरे लाल।
शब्द _ अर्थ शब्द _ अर्थ
घना _ पत्नी उलायती _ जल्दी
अनमनी _ वे मन से पिढ़री _ बच्चा
करियाहयाँ _ कमर सुतत_ खिसकना
सालें _ दर्द उर _ धरती
पंजरवा _ पंजों का दर्द नाद _ मोटा
पितरनियां _ जेठानी दुशाला _ कंबल
पहरूआ _ पहरेदार
ढ़रकहिये _ धक्का देना
० अर्पणा पाण्डेय