Wednesday 6 August 2014

Aparna Pandey aparnapandey1961@gmail.com

बच्चों को अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाएं 
अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां
की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी
सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे
पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की
महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी
होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे
बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति
विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।
सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना
चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने
दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी
मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का
असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान
न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा
पर श्रद्धा हो और गर्व मह सूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का
ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी
शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की
चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें
स्वयं की प्रशंसा न करें ,न ही किसी का अहित  करें। पाइथागोरस की उक्ति
है कि "जानवर जितना ना बोलने सेपरेशान रहता है इंसान उतना ही बोलने की
बजह से परेशान रहता है "
दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण
करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार
करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने
वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और
तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति
ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान
करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही
खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी
आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह
हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे
अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन
का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या
है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है।
बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये
गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए।
विवाह के बाद पीटीआई-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करे ,बात-चीत में तू और
मै की जगह" हम "की भावना रखे अक्सर घरों में तुम्हारे बाप या मेरे बाप की
या बात करके झगड़ा होता है.रूखे व कड़े शब्दों में कभी बात न करे। घर को
ससफ सुथरा रखे बच्चो की परवरिश अच्छे ढंग से करे आपस में मिलजुल कर रहना
भी भारत की संस्कृति का मान बढ़ाता है।
भारत अपनी धार्मिक ,शैक्षणिक ,आध्यात्मिक एवं कलात्मक धरोहरों के लिए भी
प्रसिद्द है देश-विदेश के लोग यहाँ की संस्कृति से मुग्ध होकर खिचें चले
आते हैं। भारत पुरे विश्व को एक परिवार की तरह देखता है।" बसुधैव
कुटुंबकम "और " सर्वे-भवन्तु सुखिनः ,सर्वे-सन्तु निरामया "यहाँ का
मूलमंत्र है। सुख और शांति की प्राप्ति हमारी संस्कृति के द्वारा ही संभव
है हमारी  तमाम धरोहरें कई विदेशी आक्रमणों के वावजूद भी आज सुरक्षित हैं
आज दूरदर्शन पर दिखये जाने वाले भड़काऊ दृश्य अवश्य हमारी संस्कृति पर
हमला कर रही है उसे रोकना चाहिए। कभी दूरदर्शन पर रामानंद सागर का सीरियल
रामायण व महाभारत के लिए सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। उसे जितनी
प्रसिद्धि मिली शायद ही कभी किसी सीरियल को मिली होगी ,इधर दो फिल्मे भी
बहुत हिट हुई एक" मुन्ना भाई लगे रहो " जिसमे संजय दत्त ने गांधी जी के
आचरण को उतार  कर सत्य और अहिंसा के रस्ते पर चल कर लोगो का मन जीता
जिसका असर सड़कों तक पर दिखाई दिया। दूसरी "चक दे इण्डिया "जिसमे सभी
अलग-अलग स्टेट से आई क्षात्राओं ने अपना परिचय नाम के साथ इंडिया कहकर
दिया तो एक मिशाल बन के सामने आया, यही हमारी भारतीय संस्कृति है जिसे
सुरक्षित रखना हमारा धर्म है इसे हम बच्चो को सिखा कर आगे बढ़ाये यही
हमारी भरतीय संस्कृति है।
अर्पणा पाण्डेय। फोन --09455225325


Aparna Pandey aparnapandey1961@gmail.com

2:54 PM (21 hours ago)
to ajay
अनेकता में एकता की संस्कृति हमारे देश की शान है ,प्राचीन कल से ही यहां
की जनता त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्धारित विश्व कल्याणकारी
सिद्धांतों को मान कर चल रहे हैं यद्यपि कुछ लोग भोग-विलास के पीछे
पथ-भर्स्ट होकर भाग रहे है.शास्त्रों पर आधारित सनातन सस्कृति को भारत की
महान हस्तियों ने अभी भी संजोय रक्खा है,ये बाटे अनुभव की कसौटी पर खरी
होने के कारन आज भी प्रमाणिक एवं विस्वस्नीय है।
आदर्श प्रिय सिद्धांत,विचार,कर्तव्य एवं व्यवहार ऐसे अनेक विषय हैं जिनमे
बहुत सी बाटे वर्तमान समय के अनुकूल नहीं भी हो सकती हैं। ये तो व्यक्ति
विशेस पर पर निर्भर है की वह किन बातों को स्वीकार करे और किसे नकारे।
सर्व प्रथम कल्याण करी आचरण पर चर्चा करें -प्र्तेक मनुष्य को यह समझना
चाहिए कि ईश्वर एक है सत्य निष्ठां से उसकी पूजा करे,मन में अहंकार न आने
दे.भगवान सात-चिट-आनंद अर्थात सच्चिदानंद है किसी
मंदिर,मस्जिद,मैथ,विहार.upasna आश्रम ,गुरुद्वारा ,गिरिजाघर आदि का
असम्मान न करे भगवान के किसी भी कार्य को तन-मन-धन से करे ,किसी का अपमान
न करे किसी को दुःख न पहुंचाए अपनी संस्कृति,परम्परा,शास्त्र व अपनी भाषा
पर श्रद्धा हो और गर्व मह सूस करें कर्म पर विश्वास करें।" यही गीत का
ज्ञान है-जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "          मन और वाणी
शुद्ध रखें विषयों का चिंतन न करे किसी को कटु शब्द न बोलें किसी की
चुगली या निंदा न करें,अभिमान भरे वाक्य न बोलें
स्वयं की प्रशंसा न करें ,न ही किसी का अहित  करें। पाइथागोरस की उक्ति
है कि "जानवर जितना ना बोलने सेपरेशान रहता है इंसान उतना ही बोलने की
बजह से परेशान रहता है "
दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण
करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार
करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने
वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और
तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति
ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान
करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही
खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी
आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह
हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे
अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन
का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या
है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है।
बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये
गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए।
विवाह के बाद पीटीआई-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करे ,बात-चीत में तू और
मै की जगह" हम "की भावना रखे अक्सर घरों में तुम्हारे बाप या मेरे बाप की
या बात करके झगड़ा होता है.रूखे व कड़े शब्दों में कभी बात न करे। घर को
ससफ सुथरा रखे बच्चो की परवरिश अच्छे ढंग से करे आपस में मिलजुल कर रहना
भी भारत की संस्कृति का मान बढ़ाता है।
भारत अपनी धार्मिक ,शैक्षणिक ,आध्यात्मिक एवं कलात्मक धरोहरों के लिए भी
प्रसिद्द है देश-विदेश के लोग यहाँ की संस्कृति से मुग्ध होकर खिचें चले
आते हैं। भारत पुरे विश्व को एक परिवार की तरह देखता है।" बसुधैव
कुटुंबकम "और " सर्वे-भवन्तु सुखिनः ,सर्वे-सन्तु निरामया "यहाँ का
मूलमंत्र है। सुख और शांति की प्राप्ति हमारी संस्कृति के द्वारा ही संभव
है हमारी  तमाम धरोहरें कई विदेशी आक्रमणों के वावजूद भी आज सुरक्षित हैं
आज दूरदर्शन पर दिखये जाने वाले भड़काऊ दृश्य अवश्य हमारी संस्कृति पर
हमला कर रही है उसे रोकना चाहिए। कभी दूरदर्शन पर रामानंद सागर का सीरियल
रामायण व महाभारत के लिए सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। उसे जितनी
प्रसिद्धि मिली शायद ही कभी किसी सीरियल को मिली होगी ,इधर दो फिल्मे भी
बहुत हिट हुई एक" मुन्ना भाई लगे रहो " जिसमे संजय दत्त ने गांधी जी के
आचरण को उतार  कर सत्य और अहिंसा के रस्ते पर चल कर लोगो का मन जीता
जिसका असर सड़कों तक पर दिखाई दिया। दूसरी "चक दे इण्डिया "जिसमे सभी
अलग-अलग स्टेट से आई क्षात्राओं ने अपना परिचय नाम के साथ इंडिया कहकर
दिया तो एक मिशाल बन के सामने आया, यही हमारी भारतीय संस्कृति है जिसे
सुरक्षित रखना हमारा धर्म है इसे हम बच्चो को सिखा कर आगे बढ़ाये यही
हमारी भरतीय संस्कृति है।
अर्पणा पाण्डेय। फोन --09455225325

                     जरा बतादो भारत वासी  ?  समय निकलता जाता है।                                                                                      जहाँ तुम्हारा, जन्म हुआ उस मिटटी से क्या तुम्हारा नाता है ?                                                                        क्या तू यह नहीं जानता कि पहले-पहल तू  किस पर सोया था?                                                                        धरती पर आते ही तू कँह -कँह कर रोया  था ,                                                                                                  और जैसे-जैसे तू बढ़ता जाता वैसे तू भूला जाता है।                                                                                        समय निकलता जाता है                                                                                                                                                                        अर्पणा पाण्डेय                                                                                                                                                                                                                                                                            न जाने इस हिन्द- देश की क्या दुर्गति होने वाली है।                                                                                       गेहूं सड़ते जाते ,किसान मरते जाते ,                                                                                                              भ्रस्टाचारी  बढ़ती जाती , जनसंख्या भी बढ़ती जाती                                                                                      वाहन है बढ़ते जाते , सड़के छोटी होती जाती                                                                                                  पेड़ काट कर बना लिए घर बची अब सूखी  डाली है।                                                                                        फिर भी हम सब कहते जाते  भारत की शान निराली है।                                                                                                                        अर्पणा पाण्डेय 
पक्षी गणों का झुण्ड गगन में कैसा है आता जाता 
वह सवतंत्रता सुख क्या ? जाने जो ,
पक्षी है दुर्भागा ।
एक पंक्ति में सभी चले हैं 
सबका सुखद एक ही रंग 
देखो आगे जो जाता है 
सब जाते हैं उसके  संग ।
मीठे-मधुर सुरों में मिलकर
 कैसा  गाना गाते हैं.? 
पर वे गाना गा- गाकर 
पिंजड़े में कैदी पक्षी के -
 मन को तो , तरसाते हैं । 
उस पक्षी का जीवन क्या है 
जो पराधीन से है  बंधा हुआ 
फिर भी देखो बच्चों उसको 
चकित हो गया सुनकर उनके मीठे-मीठे स्वर ।
भौचक्का सा लगा घूमने,
 उस पिंजड़े के ही भीतर 
बहुत तड़पता है ,फड़फड़ाता है 
फिर भी उनके सुर में सुर मिलाता है ।
भूल गया वह सारे सुख-दुःख 
अब पिंजड़े का   ही आदी  है 
उसके लिए इसी पिंजड़े में,
 स्वर्ग -नरक  दुःख- शादी है ॥

अर्पणा पाण्डेय 
०९८२३५४९११४

Saturday 2 August 2014

दैनिक कार्यों हेतु मनुष्य स्वयं सूर्योदय से पहले उठे और ईश्वर का स्मरण करे ,पृथ्वी माता के पैर छुए ,बड़ों को यथा-संभव सम्मान दे छोटो  को प्यार करे ,जीवन को सात्विक बनाने वाले सद्ग्रन्थों का पाठ  करे ,शाम को होने वाली आरती में सभी लोग सम्मिलित हों। इधर-उधर कचरा न डेल,थूकें नहीं ,और तन को स्वस्थ रखने के लिए योगासन ,प्राणायाम अवस्य करे अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। आवश्यकता से अधिक धन हो तो गरीबों की मदद करें दान करे,तीर्थ पर जाएँ पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म पर खर्च करें ,स्नान करके ही खाना खाए ,कभी-कभी उपवास भी रखें ,फलाहार खाएं। उसी प्रकार वस्त्र भी आरामदायक पहने भड़काऊ व चमकीले वस्त्रों को धारण ना करें।        विवाह हेतु लड़के-लड़कियां माँ-बाप की पसंद को तबज्जो दें ,क्योकि आजकल बच्चे अपनी संस्कृति से दूर भाग रहे हैं इससब की जड़ में शिक्षा की कमी ,अपनेपन का आभाव माता-पिता से दूर रहना ,महीनो भेंट ना होना ही सबसे बड़ी समस्या है इसपर बच्चों की जिद ,उनमे अनुभव हीनता की कमी सबसे बड़ी समस्या है। बच्चों से जल्दी-जल्दी मिलते रहना चाहिए और उन्हें शास्त्र-विधि से किये गए विवाह की उपयोगिता बतानी चाहिए।