Thursday, 10 April 2014

दोस्ती करें तो ऐसी -

पानी- पय- वत गर प्यार प्रीत कि रीति सीख ले आप सभी
तो इस भारत भूमि जननी के ,निश्चय दुःख दूर हो जाएँ सभी ॥
जब दीन- हीन पानी बेचारा शरण दूध कि आता है
नहीं दूध करे दूर-दूर  छि -छि निज अंग समझ अपनाता है ॥
 सफेद रंग पानी को प्रदान कर अपने संग   मिलाता है
जिस भाव वो बिकता है उस भाव ही उसे बिकाता  है॥ 
गुण ग्रहण दूध का करते ही पानी पय- वत बन जाता है
नीचों को ऊँच बनाने का क्या बढ़िया सबक सिखाता है ॥

एक हलवाई के हाथों जब भट्टी पर चढ़ जाता है
उस वक्त मुसीबत में दोनों क्या मित्र भाव दरसाते हैं ॥
जब आग धधकने लगी खूब और जलने की  नौबत आ गई
हिम्मत कर बात दूध  से पानी ने तब फरमाई॥
मै हूँ मौजूद कढ़ाई में तब तक कुछ  मत परवाह करो
हे दुग्ध देव! बैठे तुम सानंद रहो  ,मत मुह से कुछ  आह करो ॥

दूध मित्र को रखा सुरक्षित और  खुद को जल ने जला दिया
प्रेम  सहित अपनाने का यह बदला कैसा भला किया॥
पृथकत्व सहन कैसे करता पय -पानी प्राण पियारे  का
जब बिछुड़ गया एक मित्र कु-समय में आज बिचारे का ॥
बस चला उबल होकर बिकल  मै भी  जलकर मर जाउंगा
चल बसा मित्र ,अब मई जिन्दा रहकर क्या मुह दिखलाऊंगा ॥

जब  देखा  हलवाई ने  --दूध ने हो बेचैन उबाल लिया
 झट समझ गया दिल की  हालत एक चुल्लू पानी डाल  दिया॥
थोडा सा पानी पड़ते ही बस दूध शांत हो जाता है
बिछुड़ा भाई मिल गया प्रेम से रो-रो कर गले लगाता  है॥ 

जब इस प्रकार से लोग  सभी आपस में प्रेम -प्रीत दिखलायेंगे
गरीब ,अछूत बच्चों को निज अंग   समझ अपनाएंगे॥
वह ऊँचा है यह नीचा है जब ये विचार मिट जायेंगे
निश्चय समझो इस भारत के फिर से दिन फ़िर जायेंगे ॥

                    अर्पणा पाण्डेय। …


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