जरा बतादो भारत वासी ? समय निकलता जाता है। जहाँ तुम्हारा, जन्म हुआ उस मिटटी से क्या तुम्हारा नाता है ? क्या तू यह नहीं जानता कि पहले-पहल तू किस पर सोया था? धरती पर आते ही तू कँह -कँह कर रोया था , और जैसे-जैसे तू बढ़ता जाता वैसे तू भूला जाता है। समय निकलता जाता है अर्पणा पाण्डेय न जाने इस हिन्द- देश की क्या दुर्गति होने वाली है। गेहूं सड़ते जाते ,किसान मरते जाते , भ्रस्टाचारी बढ़ती जाती , जनसंख्या भी बढ़ती जाती वाहन है बढ़ते जाते , सड़के छोटी होती जाती पेड़ काट कर बना लिए घर बची अब सूखी डाली है। फिर भी हम सब कहते जाते भारत की शान निराली है। अर्पणा पाण्डेय
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