Wednesday, 6 August 2014

पक्षी गणों का झुण्ड गगन में कैसा है आता जाता 
वह सवतंत्रता सुख क्या ? जाने जो ,
पक्षी है दुर्भागा ।
एक पंक्ति में सभी चले हैं 
सबका सुखद एक ही रंग 
देखो आगे जो जाता है 
सब जाते हैं उसके  संग ।
मीठे-मधुर सुरों में मिलकर
 कैसा  गाना गाते हैं.? 
पर वे गाना गा- गाकर 
पिंजड़े में कैदी पक्षी के -
 मन को तो , तरसाते हैं । 
उस पक्षी का जीवन क्या है 
जो पराधीन से है  बंधा हुआ 
फिर भी देखो बच्चों उसको 
चकित हो गया सुनकर उनके मीठे-मीठे स्वर ।
भौचक्का सा लगा घूमने,
 उस पिंजड़े के ही भीतर 
बहुत तड़पता है ,फड़फड़ाता है 
फिर भी उनके सुर में सुर मिलाता है ।
भूल गया वह सारे सुख-दुःख 
अब पिंजड़े का   ही आदी  है 
उसके लिए इसी पिंजड़े में,
 स्वर्ग -नरक  दुःख- शादी है ॥

अर्पणा पाण्डेय 
०९८२३५४९११४

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