Saturday, 6 September 2014

 बच्चों में ज्ञानेन्द्रिय विकास हेतु नृत्य,संगीत ,और नाट्य-कला का ज्ञान होना बहुत जरूरी ==                           बच्चे निरंतर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं. किसी भी वस्तु को  देखकर छूकर और कानो से सुनकर अपनी प्रतिक्रिया देते रहते हैं कभी-कभी सूंघकर और चखकर भी वे सवाल-जबाब करते हैं एकांत में वे कभी सोचते-विचारते  भी नजर आ जाते हैं ऐसे में उन्हें देखना भी अति आवस्यक हो जाता है ,  वे विचार करते हैं और दूसरों तक अपनी बात पहुँचाना भी सीखते हैं और अपने भावों पर नियंत्रण करना भी सीख जाते हैं जब बच्चा बोल नहीं पाता  है तब जब  उससे बात करते हैं तो वह आँ ,ऊं व अपने चेहरे के भावों को प्रकट करता है जैसे वह आपकी हर बात का जबाब देता हो ,हाथ-पैर चलाकर हंस कर। रो कर खूब बातें करता है जिन्हे  सबसे निकटम व्यक्ति  माँ सब समझ लेती है। निःसंदेह नारी में यह क्षमता तो प्रकृति-प्रदत्त है वह बालमन चिंतन भावना संवेदना और आकांक्षा की सबसे बड़ी अध्ह्येता है। इन्ही क्रियाशील ज्ञानेन्द्रिय के विकास के लिए माता-पिता को सदैव तत्पर रहना चाहिए।                                                                                                                                                     बच्चे अपनी शारीरिक गतिविधियों से यानि नृत्य और अभिनय द्वारा ,अपनी आवाज के माघ्यम से संगीत का ज्ञान प्राप्त करके अपनी ज्ञानेन्द्रिय का विकास आसानी से कर सकते हैं बस उन्हें थोड़ी सहायता और नियमित अभ्यास की आव्सय्कता होती है। यही कार्य  आदत बन जाने पर आसान हो जायेगा और उन्हें इस क्रिया में आनंद आएगा इस प्रकार उनके शारीरिक और मानसिक कार्य में बृद्धि होगी।  जब बच्चे ३,४ वर्ष के हो तो उन्हें स्वाद,गंध और स्पर्श के माध्यम से वस्तुएं पहचानने को दे ,जैसे पुराने कपड़ों के छोटे-छोटे थैले सील ले अब किसी में प्याज,किसी में आलू,सुखी धनिया ,मसले ,रबर,चाक ,व अन्य पदार्थ डालकर बच्चों की आँखों में पट्टियां बांध दे फिर उन्हें गंध पहचाने को कहे आप देखेंगे की बच्चे कितनी रूचि से खेल-खेल में सूंघने की क्रिया का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।  इसी प्रकार चखकर पहचानो उन्हें मीठा,खट्टा,  कड़ुआ ,फीका आदि सामान दे उनकी आँखों में पट्टी बांधकर चखाएं फिर पूछे कि स्वाद कैसा है। बालक से यह भी पूछे की कि उसने कैसे पहचाना ? इस तरह स्वाद की विशेसता बताकर उन्हें प्रोत्साहित करें।  इसी प्रकार किसी वास्तु को श्पर्श द्वारा यानि वास्तु को छूकर उसे पहचानने के लिए प्रोत्साहित करें ,इसके लिए कुछ कुदरती बस्तुये जैसे बीज,कंकड़,बालू मिटटी,कपड़ा , शीप , मोती आदि अन्य पदार्थ हो सकते है इन वस्तुओं को एक थैले में डालकर बच्चो का हाथ उसमे डलवाकर ,बिना देखे पूछे की वह कौन सी वस्तु है ,व वह कैसा है खुरदरा है या चिकना हैं। सख्त है या मुलायम है ? भरी है कि हल्का है ? थोड़े  बड़े बच्चों से आप पूछ सकते है कि वह कैसा व किस काम आता है ? इस प्रकार सही जानकारी देकर आप उनका ज्ञानेन्द्रिय विकास सहजता से कर सकते हैं। अब बच्चों से गतिमय कार्य कराएं जैसे कोई कविता सुना कर हाथों और भावों से गति करेंएवं बच्चों को आपस में हाथ पकड़कर घूमने को कहें,शब्दों के हिसाब से वे एक्शन करें,खेल को मनोरंजक बनाने के लिए कोई ब्ब्जाने वाली चीज लेकर गाने व कविता  के साथ बजाकर उन्हें खिलाये। इसी प्रकार नाटक या अभिनय द्वारा ,बच्चो को रेलगाड़ी के आकर बनवाकर छुक -छुक की आवाज निकालकर घुमायें. इस तरह उनमे स्वयं ही अनुभव ,कल्पना और अभ्व्यक्ति का सामंजस्य स्थापित होगा। ताल,गति और ध्वनि के माध्यम से नृत्य,गीत और नाट्य तीनो कलाओं का ज्ञान होगा नाटकीय खेलो में छोटे बच्चों को गुड़िया गुड्डे की शादी ,घर बनाना ,डाक्टर-मरीज का खेल ,कुर्सी दौड ,इन  खेलों से बच्चो का मनोरंजन भी होगा। और साथ ही शारीरिक विकास के साथ ज्ञानेन्द्रिय विकास मजबूत होगा।   (अर्पणा पाण्डेय )                          

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