Thursday, 10 April 2014



 अब हो रहा सवेरा ------------
 जगने  लगी है जनता ,अब हो रहा सवेरा
जिसमे पड़े -पड़े हम,सुख -स्वप्न देखते थे.
वह मोह रात  बीती अब हो रहा सवेरा।
भागा है मुँह छिपाकर ,दासत्व का अँधेरा
धरती पर लाली छाई ,अब हो गया सवेरा।

झूठी चमक दिखाकर जुगनू ने नाम पाया
अब दीखता न वह भी ,अब हो गया सवेरा।
तारे जो दूर से ही रहते वे थे चमकते
वे भी लगे खिसकने अब हो गया सवेरा।

ये कर्म क्षेत्र तुमको हंस-हंस बुला रहा है
करना न अब किनारा ,अब हो गया सवेरा ॥

   अर्पणा पाण्डेय।



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