अतीत
आज 26 दिसम्बर 2012 आ गया
दिन महीने साल गुजरते जा रहे , वक्त का पता ही नहीं चलता भले ही जिन्दगी का प्रवाह धीमी गति से चला आ रहा हो किन्तु मानस पटल में अंकित 10 नवंबर 1994 दीपावली के 8 दिन बाद की घटना भुलाये नहीं भूलती -हम लोग गाँव से दूर कानपूर शहर में रह रहे थे मेरे माता -पिता जी गाँव में सुकून की जिन्दगी जी रहे थे ,कि गाँव में डकैती पड़ गई और उन दोनों के साथ-साथ सब कुछ ख़त्म हो गया ,अचानक वह मनहूस घड़ी जो किसी चील की तरह वहां आई और अपने पंजे गड़ाकर चली गई। हरदिन सूरज निकलता और शाम को आँखों के आगे अपनी रंगोलियाँ बिखेरता और फिर अंधकार भरकरसुला देता,घटनाओं को विस्मृत कर देने(यानि सो जाना ) का अचूक उपाए ही जीना सिखाता है । और सहन करने की शक्ति देता है ।इसी के साथ नव बरस का स्वागत करें .
अपर्णा ...............
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