Sunday 9 December 2012

 माँ   से    अंतिम  मिलन .

 जेठ की  दोपहरी ,
 सूरज  अपनी
 जवानी  पर   इतरा रहा  था  
 और   अम्मा   उम्र के अंतिम पड़ाव में 
 अपनों के   बीच होते हुए  भी  असहाए सा 
 महसूस    कर  रही थी .

 कूलर की   शीतलता भी  तन को  आराम नहीं   दे रही थी 
 सहज  ही वे,
 भाव -  भक्ति को    भूल
 शूल को  झेल रही थी .
 पीड़ा  व्यक्त ना हो   जाये
 इस भय से ,
 मुख पर  फीका  हास लिए
 वह मुझसे बोली -
 बेटा
 खाना खा लो
 दोनों ने साथ में खाना खाया,  फिर आराम किया.
 वह भी  सोई, मै भी सोई 

 लेकिन वह सोई !
 चिर  निद्रा में


No comments:

Post a Comment