अति सर्वत्र वर्जयेत -
आज दामिनी का अंत हो गया ,
हर नारी के जीवन का अंत हुआ है,
उस परिवार का तो संगीत ही मौन हो गया,
दु:ख है ,की आज हम अकेले ,नि:सहाय से हो गए है।
हर स्त्री के मन में खौफ सा बैठ गया है।
क्यों आज हम इतने -
हिंसक ,ईर्सालु ,दुखी,कातर और छमाहीन हुए जा रहे हैं,
स्वार्थ - कर्कशताओ की आहों - कराहों के बीच रक्त-रंजित हो रहें है,
उठो-जागो
समय सर्वनाश की चेतावनी दे रहा है।
और हम इन्द्रियों के वशीभूत हुए अपाहिज की भूमिका निभा रहे है।
बहुत हो गया -
अब वर्तमान के बुझे दीपक की लौ जलाना ही होगा ।
मस्तिष्क के असीम क्षितिज को साफ करना ही होगा।
अति .....सर्वत्र वर्जयेत
आज दामिनी का अंत हो गया ,
हर नारी के जीवन का अंत हुआ है,
उस परिवार का तो संगीत ही मौन हो गया,
दु:ख है ,की आज हम अकेले ,नि:सहाय से हो गए है।
हर स्त्री के मन में खौफ सा बैठ गया है।
क्यों आज हम इतने -
हिंसक ,ईर्सालु ,दुखी,कातर और छमाहीन हुए जा रहे हैं,
स्वार्थ - कर्कशताओ की आहों - कराहों के बीच रक्त-रंजित हो रहें है,
उठो-जागो
समय सर्वनाश की चेतावनी दे रहा है।
और हम इन्द्रियों के वशीभूत हुए अपाहिज की भूमिका निभा रहे है।
बहुत हो गया -
अब वर्तमान के बुझे दीपक की लौ जलाना ही होगा ।
मस्तिष्क के असीम क्षितिज को साफ करना ही होगा।
अति .....सर्वत्र वर्जयेत
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