Friday 28 December 2012

 अति सर्वत्र वर्जयेत -

आज दामिनी का अंत  हो गया  ,
हर नारी के जीवन का अंत हुआ है,
उस परिवार का तो संगीत ही मौन हो गया,

दु:ख है ,की आज हम अकेले ,नि:सहाय से हो गए है।
हर स्त्री के मन में खौफ सा बैठ  गया है।

क्यों आज हम इतने -
हिंसक ,ईर्सालु ,दुखी,कातर और छमाहीन हुए जा रहे हैं,
स्वार्थ - कर्कशताओ की आहों - कराहों के बीच रक्त-रंजित हो रहें है,

उठो-जागो

समय सर्वनाश की चेतावनी दे रहा है।
 और हम इन्द्रियों के वशीभूत हुए अपाहिज की भूमिका निभा रहे है।
 बहुत हो गया -

अब वर्तमान के बुझे दीपक की लौ जलाना  ही होगा  ।
मस्तिष्क के असीम क्षितिज को साफ करना ही होगा।
अति .....सर्वत्र वर्जयेत

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