सबसे बड़ा धर्म.......
पौराणिक कथा है -सत्यव्रत राजा अपने विचारों और आचरण में आदर्श माने जाते थे एक दिन उन्होंने ब्रह्म मुहूर्त में सिंह द्वार की ओर से एक अत्यंत सुंदर स्त्री को बाहर जाते देखा बड़े आदर से उन्होंने पूछा की मां आप कौन हो यहां राजभवन से क्यों जा रही हो महाराज मैं धनलक्ष्मी हूं यहां बहुत समय से रह रही हूं . अब जाना चाहती हूं .सत्यव्रत ने कहा जैसी आपकी मर्जी थोड़ी देर बाद उन्होंने एक सुंदर पुरुष को भी बाहर जाते हुए देखा तो उससे भी पूछा तुम कौन हो ? महाराज मै दान हूं .धनलक्ष्मी चली गई उसके बिना मैं यहां क्या कर सकता हूं कुछ समय बाद एक और सुंदर पुरुष राजभवन से जाता दिखाई दिया. सत्यव्रत ने उससे भी पूछा कौन हो तुम ?और क्यों जा रहे हो ?महाराज मेरा नाम सदाचार है धन और दान के बिना सदाचार क्या कर सकता है इसलिए मुझे भी जाने दीजिए. वह भी चला गया इतने में महाराज ने एक और दिव्य पुरुष को जाते हुए देखा उन्होंने उससे भी प्रश्न किया तुम कौन हो? और क्यों जा रहे हो ?महाराज मेरा नाम यश है जहां धन दान सदाचार नहीं रहते वहां मैं भी नहीं रहता महाराज ने उसे भी अनुमति दे दी थोड़ी ही देर बाद एक गंभीर पुरुष भी जाते हुए दिखाई दिया महाराज ने उससे पूछा कौन है आप और कहां जा रहे हैं? महाराज धन दान सदाचार और यश चले गए मेरा नाम सत्य है मैं इनके बिना अकेला नहीं रह सकता अब मुझे भी जाने की आज्ञा दीजिए राजा ने उस दिव्य पुरुष के पैर पकड़ लिए और कहा !आप मुझे छोड़कर नहीं जाएं मुझे धन दान सदाचार और यश की कोई परवाह नहीं है लेकिन आपके बिना मैं नहीं रह सकता आप ही जीवन के धर्म है इस पर दिव्य पुरुष सत्य राज भवन में वापस चला गया सत्य के राजभवन में वापस आते हैं कुछ ही क्षणों में धनलक्ष्मी दान सदाचार और यश यह कहते हुए वापस आ गए कि सत्य के बिना हमारा कोई प्रयोजन नहीं है इसलिए हम सब भी वापस आ गए...
(सुनी -सुनाई कथा )
अर्पणा पांडे 9 4 55 225 325
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