Monday, 7 December 2020

 


जीवन का रहस्य

-- घटना  उस समय की है जब मानव का जन्म नहीं हुआ था,विधाता जब सूनी
पृथ्वी को देखता तो उसे कुछ न कुछ कमी नजर आती और वह उस कमी को पूरी करने
के लिए रात दिन सोच में पड़ा रहता ,आखिर विधाता ने चन्द्रमा की
मुस्कान,गुलाब की सुगंध,अमृत की मिठास ,जल की शीतलता ,अग्नि की तपिश और
पृथ्वी की कठोरता से मिटटी का एक पुतला बनाकर उसमे प्राण फूँक दिए |
मिटटी के पुतले में प्राण का संचार होते ही सब जगह चहचहाट और रौनक हो गई
और घरौंदे महकने लगे देवदूतों ने विधाता की इस  अदभुत रचना को देखा तो
आस्चर्य चकित रह गये | और विधाता से बोले यह क्या है ? तो विधाता बोले यह
जीवन की सर्वश्रेस्ठ कृति मानव है,अब इसी से जीवन चलेगा और वक्त आगे
बढ़ेगा | तभी एक देवदूत बोला क्षमा करें प्रभु यह बात मेरी समझ से परे  है
कि आपने इतनी मेहनत से एक मिटटी को आकर दे दिया और उसमे प्राण फूंक दिए
मिटटी तो तुच्छ से तुच्छ है ,जड़ से भी जड़ है ,उसकी जगह आप सोने या चांदी
के  आकार में यह सब करते तो ज्यादा अच्छा रहता | देवदूत की बात पर विधाता
मुस्कराये और बोले "यही तो जीवन का रहस्य है "| मिटटी के शरीर में मैंने
सारा सुख-सौंदर्य ,सारा वैभव उड़ेल दिया है ,जड़ में आनंद का चैतन्य फूंक
दिया है,इसका जैसे चाहे उपयोग करो ,जो मानव मिटटी के इस शरीर को महत्व
देगा वः मिटटी की जड़ता को भोगेगा जो इससे ऊपर उठेगा उसे आनंद ही आनंद
मिलेगा | लेकिन ये सब मिटटी के घरौंदें की तरह क्षड़िक हैं | इसलिये जीवन
का प्रत्येक छड़ मूल्य वान  है तुम मिटटी के अवगुणो को देखते हो उसके
गुणों को नहीं ,मिटटी में ही अंकुर फूटते हैं और मेहनत  से फसल लहलहाती
है | सोने और चांदी  में कभी अंकुर नहीं फूट सकते, इसलिए मैंने मिटटी के
शरीर को कर्मक्षेत्र बनाया है |


अर्पणा पाण्डेय
१३१० बसंत विहार कानपुर
२०८०२१
9455225325

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