आशा और निराशा....... एक दूधवाले ने दो मेंढक पाल रखे थे दोनों में बड़ी मित्रता थी परंतु दोनों विपरीत स्वभाव के थे एक आशावादी था तो दूसरा निराशावादी था आशावादी मेंढक अपने मित्र को जीवन में आशा का महत्व समझाता परंतु उसका मित्र उसकी बात को हंसकर टाल देता उसका मानना था कि जो होना है वह होकर रहेगा इसलिए अपनी ओर से किसी तरह का कोई प्रयत्न अनुचित है एक रात दोनों खेल रहे थे वह खूब उछल कूद मचा रहे थे इसी क्रम में वे अचानक छाछ के बर्तन में गिर गए रात होने के कारण किसी की भी नजर उन पर नहीं पड़ी बाहर निकलने के लिए वे जितना हाथ पैर मार रहे थे उतना ही गाड़ी गाड़ी छाछ में फंसते जा रहे थे निराशावादी मेंढक बोला हम कितना भी प्रयत्न कर लें परंतु इसमें से बाहर नहीं निकल पाएंगे इसलिए शरीर को ढीला छोड़ देते हैं और बच्चों को शांति से गले लगा लेते हैं . इस पर आशावादी मेंढक बोला हमें आखरी सांस तक प्रयत्न करना चाहिए शायद सचमुच बाहर निकलने में हम कामयाब हो जाएं इतना कहकर वह लगातार हाथ पैर मा रता रहा इस दौरान वह थक कर बेहोश हो गया उसके होश में आने पर सवेरा हो चुका था उसने अपने आप को मक्खन की सतह पर पाया उस मेंढक के लगातार हाथ पैर मारने से छाछ में मक्खन बन गया था उसी से मेंढक की जान बच गई उसने हर तरफ गौर से देखा कि उसका मित्र कहां है परंतु उसका मित्र तो छाछ में नीचे मरा पड़ा था . आशावादी को अपने मित्र की मृत्यु पर काफी दुख हुआ अब उसके जीवन में आशावादी दृष्टि का महत्व और भी बढ़ गया.
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