विनम्र स्वभाव........
भीष्म पितामह सरसैया पर लेटे थे कौरव और पांडव उन्हें घेरकर खड़े थे भीष्म पितामह सभी की ओर देखते हुए बोले अब आप सब से विदा लेने का समय आ गया है मेरे पास कुछ ही समय शेष हैl यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर उनके चरणों में बैठते हुए बोले पितामह आपसे निवेदन है कि आप हमें कुछ ऐसी उपयोगी शिक्षा दें जो हमारे जीवन के लिए लाभदायक हो भीष्म पितामह बोले.. मैं तुम्हें एक नदी की कहानी सुनाता हूं जिसमें जीवन का सार छुपा है एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्न किया? तुम बड़े बड़े पेड़ों को अपने प्रवाह मैं ले आती हो लेकिन छोटी सी घास कोमल बेलो और नरम पौधों को अपने साथ बहाकर नहीं ला पाती l समुद्र की बात सुनकर नदी मुस्कुराती हुई बोली जब जब मेरे पानी का बहाव आता है तब बेले घास के तिनके ,नरम पौधे झुक जाते हैं और मुझे रास्ता दे देते हैं लेकिन वृक्ष अपने कठोरता के कारण झुकने को तैयार नहीं होते वह सीधे खड़े रहते हैं ऐसे में मेरा तेज बहाव उन्हें तोड़कर अपने साथ बहा लाता हैlबड़े पेड़ों का अहंकार मुझे पसंद नहीं इसलिए मैं उन्हें दंडित करती हूं नदी के जवाब से समुद्र संतुष्ट हो गया और शायद आप सब भी इस कहानी में छुपे हुए जीवन के सार को समझ गए होंगे व्यक्ति को हमेशा विनम्र रहना चाहिए .यही सफलता का मूल मंत्र है यह कहकर भीष्म पितामह ने सदा के लिए आंखें बंद कर ली l
(सुनी सुनाई कथा )
अर्पणा पांडे 94 55 225 325
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