बहुत कुछ लिख लिखकर मिटाया है मैंने
ठीक न होने पर भी अपना हाल ठीक बताया है मैंने
बात बात पर अपने दिल को बहलाया है मैंने
अपनी सोच में ही खोकर न जाने कितनी रातो को जाग जागकर बिताया है मैने ।
कोई समझेगा नहीं ये हाल मेरा बस इसी फिक्र में सबसे सब छुपाया है मैने ।
मन बहुत सोचता है कि उदास न रहूँ ।
शहर के दूर के तनाव को तो सह भी लें पर ये अपने ही रचे एकांत के दवाव को कैसे सहा जाये ।
यदि कुछ कहूँ भी कुछ तो सुननेको कोई पास न हो इसी पर जब जी मे उठे उसे कहा कैसे जाये .
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