Sunday, 4 May 2025

ब्रम्हा का जन्म ( 6)

 विष्णु की नाभि के कमल पुष्प से ब्रम्हा जी का जन्म हुआ इसलिए वे स्वयंbhu कहलाये वे कमल नाल में बैठे बैठे ही तप करने लगे और तप करते हुए नीचे पहुँचने लगे उन्हें कहीं भी ठहराव नहीं मिला तब भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे ... अच्युतm केशवm नाम naraynm, कृष्ण damodarm वासुदेवm हरे, 

श्री धरम madhvam गोपिका vllbham 

जानकी naykm रामचंद्र भजे 

विष्णु जी  पीताम्बर वस्त्र धारण कर ब्रम्हा जी को दर्शनं दिए, और विष्णु जी ने उन्हें सृष्टि करने के लिए कहा, तब ब्रम्हा जी ने snkadikon से सृष्टि करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया l

विष्णु के 3 रूप हुये. 

सत्य गुण....विष्णु 

रजोगुण....ब्रम्हा 

तमो गुण....महेश रुद्र रूप 

सबसे पहले अविद्या का जन्म हुआ फिर अस्मिता का अहंकार का राग द्वेष का जन्म हुआ. 

ब्रम्हा के क्रोध बढ़ने से रुद्र का जन्म हुआ रुद्र यानि शिव इनसे भी सृष्टि रचने को कहा तो शिव जी ने अजर अमर भूत पिशाच, साँप बिच्छु अनेक जीव जन्तु की सृष्टि कर डाली तब ब्रम्हा जी ने उन्हें रोका और कहा कि आप तपस्या करो तब शिव जी कैलाश पर्वत पर तपस्या करने चले गये l

अब ब्रम्हा के आधे शरीर से शतरूपा और आधे से मनु ,इनसे सृष्टि की रचना हुई 



Wednesday, 9 April 2025

भागवत कथा 5 धुंधली व dhundhkari का अन्त और संसार श्रृष्टि

 इस तरह आत्मदेव के जाने के बाद धुंध कारी ने अपनी माँ को बहुत सताया वह भी मर गयी, ऐसे में गोकर्ण भी वहाँ से चले गये. अब यह वेश्याओं के साथ रहने लगा और चोरी करने लगा उन वेश्याओं ने परेशान हो कर एक दिन उसे मार डाला, तो वह प्रेत योनि में पहुंच कर भटकता रहा व्याकुल होकर जंगलों में घूमता रहता, तब उसने गोकर्ण से अपनी मुक्ति मांगी तब गोकर्ण ने गायत्री देवी का जाप किया और सूर्यदेव का आव्हान किया तब सूर्यदेव ने भागवत सप्ताह करने को कहा और विधि बताई कि सात गांठ का एक बांस लगाव और उसमें धुंध कारी का आव्हान किया जाय फिर एक दिन में एक गांठ तोड़ी जाए इस तरह 7 गांठ टूट जाने पर उसे मुक्ति मिल जाएगी, गोकर्ण ने ऐसा ही किया इस तरह धुंध कारी मुक्त हो गया l 

सृष्टि की रचना ब्रम्हा जी ने की, पालन-पोषण विष्णु जी ने किया संहारक शिव जी हुये, ब्रम्हा जी के क्रोध से रुद्र का जन्म हुआ तब शिव जी ने पूछा कि मेरा क्या काम तो ब्रम्हा जी ने कहा कि तुम रोते हुए पैदा हुए हो इसलिए तुम रुद्र हो और काम दिया कि तुम सृष्टि की रचना करो तब शिव जी ने तमाम जीव जन्तु पैदा कर दिया वे अजर अमर हो गए तब विष्णु जी ने उन्हें रोका और कहा कि आप सृष्टि ना करें आप तपस्या करें तब शिव जी कैलाश पर्वत पर तपस्या करने चले गए l 

ब्रम्हा के आधे रूप से शतरूपा और आधे से मनु से सृष्टि शुरू हुई 

Thursday, 3 April 2025

मधुबनी पेज 3

 प्राचीन लोक चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों के निर्माण की प्रक्रिया दिलचस्प होती थी l जैसे नारंगी रंग हर सिंगार के फूलों से बनाया जाता था l हर सिंगार के फूलों को पानी में उबाल कर उसमें गोंद मिला कर छान लिया जाता है, लाल रंग चुकंदर को सूखाकर,उबालकर कूट कर उसमें गोंद मिलाकर तैयार किया जाता है l पीला रंग कटहल के गूदे को उबाल कर बनाया जाता है l हल्दी में गोंद मिलाकर भी तैयार किया जाता है आजकल कपडों में करने वाले पेंट बाजार में आने लगे हैं इस नवीनता से कपडों का सौंदर्य बड़ा है वो कितने भी बार धोए जाए उनका रंग नहीं उतरता प्रेस करने के बाद वे ज्यों के त्यों नजर आते हैं यही कारण है कि आजकल भी यह लोक कला काफी लोकप्रिय हो रही है l 

Tuesday, 1 April 2025

मधुबनी पेज 2

 ये कलाकृतियां अक्सर घर की दीवारों पर तीन जगह बनाई जाती है..पूजाघर, कोहबर घर और बाहर बरामदे में. कोहबर का मतलब होता है..लोक चित्र कला से सजा ऐसा कमरा, जिसमें शादी के बाद दूल्हे और दुल्हन को सबसे पहले दिखाया जाता है और पूजा कराने के बाद कुछ खेल कराये जाते हैं l इनकी दीवारों पर बने चित्रों का विषय पौराणिक या लोककथाओं से लिया जाता है दीवारों पर बनाने के लिये इसमें गेरू का प्रयोग किया जाता है पीला रंग हल्दी से बना लेते हैं क्योंकि लाल और पीले रंग पारम्परिक रूप से पवित्र माने जाते हैं. कोहबर घर में देवी. देवताओं के चित्रों के साथ कभी-कभी दूल्हे. दुल्हन के चित्र भी बना  दी जाती है l

सूर्य.चंद्रमा बांस के पेड़ ,कमल के फूल, तोता, कछुआ मछली, स्वास्तिक, और ओम के चित्र भी पवित्रता की निशानी माने जाते हैं l भारतीय संस्कृति के अनुसार बांस का पेड़ पुरुष का, कमल का फूल स्त्री का प्रतीक माना जाता है, तोता प्रेम का, कछुआ प्रेमियों के मिलन का तथा मछली को उर्वरता का प्रतीक माना जाता है 

इस कला में विशेष योगदान के लिए मधुबनी के सित वार  पुर गाँव की श्रीमती जगदम्बा देवी को सन 1970 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया, तब इस कला को काफी सम्मान मिला तथा चर्चा में आई l आज महिलाओं का दृष्टिकोण बदला है उन्होंने दीवारों के अतिरिक्त अपनी पोशाकों में भी काम किया है पक्के रंगों से बनाकर बाजारों में खूब धाक जमाई है और विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ी है, धनाढ्य वर्ग में लोग इसे बहुत पसंद कर रहे हैं सिल्क की साड़ी में इसकी चमक और बढ़ी है अभी हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्री रेखा गुप्ता जी मधुबनी शैली में बनी साड़ी पहने काफी चर्चा में रहीं l मूलतः बिहार निवासी दिल्ली के फैशन डिजाइनर मनीष रंजन नें भी इस शैली का प्रयोग अपने बनाये कपडों में बखूबी किया 

प्राचीन लोक चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों के निर्माण की प्रक्रिया दिलचस्प होती थी 

Sunday, 30 March 2025

मधुबनी.. एक अनूठी चित्र शैली

 मधुबनी शैली की चित्रकला दुनियां में अपने तरह की एक ऐसी अनोखी चित्रकला है जिसे सिर्फ एक अंचल विशेष की महिलाएं ही परम्परागत तरीके से बनाती है ,आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े विहार के इस अंचल की महिलाओं ने रंगों और आकृतियों के सहारे मानव जीवन में जिस आवेग का संचार किया, उसने न केवल इनका जीवन सरस और रंगीन बनाया, बल्कि दुनिया के नक्शे में इसकी पहचान भी बनायी l

आम तथा केले के हरे भरे पेड़ों और पानी से भरे पोखरे से घिरे अपने मिट्टी के घरों में गोबर से लिपी जमीन पर पालथी मार कर  बैठी ये महिलाएं पिछले तीन हजार बर्षों से हिन्दू देवी देवताओं के भक्ति परk चित्र बनाती आ रही हैं इन चित्रों के विषय धार्मिक ग्रंथों और पुराणों से लिए जाते हैं ,काली माँ तथा आठ भुजाओं वालीं पारम्परिक भेष. भूषण में दुर्गा जी के चित्र किसी भी कला प्रेमी के लिये आकर्षण का विषय हो सकते हैं l

इन चित्रों की प्राचीनता और उत्पत्ति के बारे मे अभी तक कोई निष्कर्ष निकाला नहीं जा सका है, पर इनका आकार प्रकार hadhppa से प्राप्त तथा पंचमार्क के सिक्कों पर बने चित्रों से मिलता जुलता है, मिथिला के कुछ प्राचीन ग्रंथों में मिले इस चित्र कला के वर्णन से निष्कर्ष पर तो पहुंचा ही जा सकता है. कि वह लोक कलाओं की एक अत्यन्त प्राचीन शैली है l मिथिला की यह एक विशेषता रही है कि इसने देश की हिन्दू संस्कृति की विशुध्दता और गरिमा को पूरी तरह से सुरक्षित रक्खा है l यह चित्रकला अपनी मौलिकता एवं पहचान को बनाये रखने में पूरी तरह से सफल रही है l मुगल कांगड़ा राजस्थानी आदि चित्रकला शैलियों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा l

केवल महिलाओं द्वारा बनाये जाने वाले यह चित्र किन्हीं खास उत्सवों एवं आयोजनों के अवसर पर ही बनाये जाते हैं, इन चित्रों के लिए कोई माडल नहीं होता है ये पूरी तरह से मौलिक होते हैं इनकी तुलना कुछ मायनों में उत्तर प्रदेश के करवाचौथ एवं हरछठ पर दीवारों पर बनाये जाने वाले रेखा चित्रों से की जा सकती है l मधुबनी की कला परम्परागत रूप से माँ बेटी के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है प्रारम्भ में बेटी माँ के साथ बनवाने में मदद करती है, फिर धीरे धीरे उसका स्वरूप उसके दिमाग में अपने आप बन जाता है l विवाह के उपरान्त पति के घर जाने पर वह खूब मन लगाकर उसका अभ्यास करती है और पारंगत हो जाने पर ये कला वह अपनी बेटी को सौंप देती है यह सिलसिला जाने कब से चला आ रहा है l 

Tuesday, 25 March 2025

हरिद्वार ke आनन्द वन्य में पहली कथा (4)

 ज्ञान भक्ति और वैराग्य के मिल जाने से शांति हुई और कथा की शुरुआत. 

एक आत्मदेव नाम का व्यक्ति था बहुत ही सरल सुशील वहीँ उसकी पत्नी धुंधली कर्कश और बहुत बोलने वाली घर के काम को न करने वालीं इसलिए आत्मदेव चिंतित रहते और सोचते कि एक पुत्र ही योग्य होता तो जिन्दगी सफल हो जाता यह सोचकर घर से बाहर जंगल में निकल गया वहीँ सन्यासी रूप मैं भगवान आ गए, आत्मदेव उनके सामने रोने लगा और अपनी आत्म कथा सुनाई, तो ब्राम्हण ने कहा कि तुम्हारे सात जन्मों तक कोई संतान नहीं है अतः ये विचार त्याग कर ईश्वर के चरणों में अपना मन लगा दो, लेकिन आत्मदेव ने संतान ही मांगी, तब भगवान ने उसे एक फल दिया और कहा कि यह फल अपनी पत्नी को खिला दे और बहुत संयम से रहे. आत्मदेव बहुत खुश हुए और घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई और वही फल खाने को दिया धुंधली ने पति से हाँ कह कर सोचने लगी कि कौन 9 महीने कष्ट सहे और वह फल गाय को खिला दिया और 9 माह तक बहन के घर चली गई और उसके पुत्र को लेकर आ गई और बोल दिया कि मेरे पुत्र हुआ है और उसका नाम धुंधकारी रखा, उधर गाय को भी पुत्र हुआ उसके कान गाय की तरह थे शरीर देव की तरह तो उसका नाम गोकर्ण पड़ा l गोकर्ण सुरू से ही भक्ति में में लीन रहते और जंगल में तपस्या करने लगे इधर धुंधुकारी बड़ा ही आतताई पिता को मारता पीटता इससे परेशान हो कर आत्मदेव गोकर्ण के पास गए तब गोकर्ण ने पिता को बहुत समझाया कि आप आए भी अकेले थे जाना भी अकेले तो आप क्यों माया मोह में पड़े हैं इससे निकल कर भगवान की शरण में जाइए वहीँ कल्याण होगा, तब आत्मदेव को ज्ञान मिला और वे सब कुछ छोड़कर भागवत शरण में चले गये l


नैमिषारण्य (3 सरा पेज)

 नैमिषारण्य में सूद जी कथा सुना रहे हैं जिसमें 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ सनक सनन्दन सहित चारों सnkadik कुमार भी हैं, यहाँ ग्यानी चिंतन करते हैं, कर्मयोगी कर्म करते हैं. भूमंडल के जिस स्थान पर भगवान ने चक्र फेंका और उसका तीर जहां पहुँचा, वही नैमिषारण्य तीर्थ है इस तपोभूमि में स्वयंbhu मनु ने एक पैर पर खड़े होकर (ओम नमो bhgvte वासुदेव) इस द्वादश अक्षर का जाप किया तब भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन दिया l 

तब सभी भक्तों ने गान किया..गोविंद हरे गोपाल हरे जय जय प्रभु दीन दयाल हरे 

तब मनु ने भगवान से कथा सुनाने के लिए कहा तब भगवान ने सभी 18 पुराणों मे भागवत पुराण को ही सबसे अच्छा बताया. 

उधर ग्यान और बैराग के जाग जाने से भक्ति भी प्रसन्न हो गई अब यज्ञ आदि कर्मों में रुचि रखने लगे. इस तरह ज्ञानयोग से दीनहीन व्यक्ति भी कल्याणमय हो जाता है. 

भाग 3