ज्ञान भक्ति और वैराग्य के मिल जाने से शांति हुई और कथा की शुरुआत.
एक आत्मदेव नाम का व्यक्ति था बहुत ही सरल सुशील वहीँ उसकी पत्नी धुंधली कर्कश और बहुत बोलने वाली घर के काम को न करने वालीं इसलिए आत्मदेव चिंतित रहते और सोचते कि एक पुत्र ही योग्य होता तो जिन्दगी सफल हो जाता यह सोचकर घर से बाहर जंगल में निकल गया वहीँ सन्यासी रूप मैं भगवान आ गए, आत्मदेव उनके सामने रोने लगा और अपनी आत्म कथा सुनाई, तो ब्राम्हण ने कहा कि तुम्हारे सात जन्मों तक कोई संतान नहीं है अतः ये विचार त्याग कर ईश्वर के चरणों में अपना मन लगा दो, लेकिन आत्मदेव ने संतान ही मांगी, तब भगवान ने उसे एक फल दिया और कहा कि यह फल अपनी पत्नी को खिला दे और बहुत संयम से रहे. आत्मदेव बहुत खुश हुए और घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई और वही फल खाने को दिया धुंधली ने पति से हाँ कह कर सोचने लगी कि कौन 9 महीने कष्ट सहे और वह फल गाय को खिला दिया और 9 माह तक बहन के घर चली गई और उसके पुत्र को लेकर आ गई और बोल दिया कि मेरे पुत्र हुआ है और उसका नाम धुंधकारी रखा, उधर गाय को भी पुत्र हुआ उसके कान गाय की तरह थे शरीर देव की तरह तो उसका नाम गोकर्ण पड़ा l गोकर्ण सुरू से ही भक्ति में में लीन रहते और जंगल में तपस्या करने लगे इधर धुंधुकारी बड़ा ही आतताई पिता को मारता पीटता इससे परेशान हो कर आत्मदेव गोकर्ण के पास गए तब गोकर्ण ने पिता को बहुत समझाया कि आप आए भी अकेले थे जाना भी अकेले तो आप क्यों माया मोह में पड़े हैं इससे निकल कर भगवान की शरण में जाइए वहीँ कल्याण होगा, तब आत्मदेव को ज्ञान मिला और वे सब कुछ छोड़कर भागवत शरण में चले गये l
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