Tuesday, 1 April 2025

मधुबनी पेज 2

 ये कलाकृतियां अक्सर घर की दीवारों पर तीन जगह बनाई जाती है..पूजाघर, कोहबर घर और बाहर बरामदे में. कोहबर का मतलब होता है..लोक चित्र कला से सजा ऐसा कमरा, जिसमें शादी के बाद दूल्हे और दुल्हन को सबसे पहले दिखाया जाता है और पूजा कराने के बाद कुछ खेल कराये जाते हैं l इनकी दीवारों पर बने चित्रों का विषय पौराणिक या लोककथाओं से लिया जाता है दीवारों पर बनाने के लिये इसमें गेरू का प्रयोग किया जाता है पीला रंग हल्दी से बना लेते हैं क्योंकि लाल और पीले रंग पारम्परिक रूप से पवित्र माने जाते हैं. कोहबर घर में देवी. देवताओं के चित्रों के साथ कभी-कभी दूल्हे. दुल्हन के चित्र भी बना  दी जाती है l

सूर्य.चंद्रमा बांस के पेड़ ,कमल के फूल, तोता, कछुआ मछली, स्वास्तिक, और ओम के चित्र भी पवित्रता की निशानी माने जाते हैं l भारतीय संस्कृति के अनुसार बांस का पेड़ पुरुष का, कमल का फूल स्त्री का प्रतीक माना जाता है, तोता प्रेम का, कछुआ प्रेमियों के मिलन का तथा मछली को उर्वरता का प्रतीक माना जाता है 

इस कला में विशेष योगदान के लिए मधुबनी के सित वार  पुर गाँव की श्रीमती जगदम्बा देवी को सन 1970 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया, तब इस कला को काफी सम्मान मिला तथा चर्चा में आई l आज महिलाओं का दृष्टिकोण बदला है उन्होंने दीवारों के अतिरिक्त अपनी पोशाकों में भी काम किया है पक्के रंगों से बनाकर बाजारों में खूब धाक जमाई है और विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ी है, धनाढ्य वर्ग में लोग इसे बहुत पसंद कर रहे हैं सिल्क की साड़ी में इसकी चमक और बढ़ी है अभी हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्री रेखा गुप्ता जी मधुबनी शैली में बनी साड़ी पहने काफी चर्चा में रहीं l मूलतः बिहार निवासी दिल्ली के फैशन डिजाइनर मनीष रंजन नें भी इस शैली का प्रयोग अपने बनाये कपडों में बखूबी किया 

प्राचीन लोक चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों के निर्माण की प्रक्रिया दिलचस्प होती थी 

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