Tuesday, 27 September 2022

सोहर, जच्चा - बच्चा

 हर्षित होवें ललनवा 

पलनवा मैं लाल झूले झुलना

झुलनवा में लाल झूले झुलना

ज़ननी झुलावें झुलनका ।।

संग सरकी सब हिलमिल गावें 

लाल खिलावें और लोरियां  सुनावें 

हर्षित होवे ललनवा, पलनवा में लाल झूले .. .


संग सरवी सब दूध पिलावें 

संग सखी सब हिलमिल नाचें

ललन खिलावें और नैन मटकावें, 

तिरछी करें नजरिया। 

 पलनवा में लाल झूलें झुलना

शब्द               अर्थ

ललनवा           बच्चा

पलनवा          झूला

झुलावें              धक्का देना

नैन मटकावें        आंखे घुमाना

लोरियां             कविता


0 अर्पणा पाण्डेय

Tuesday, 20 September 2022

सोहर,जच्चा - बच्चा गीत I .


 साहूकारों के लल्ला हुआ,हुआ मन रजना

ननद - भभज दोनों बैठी,और कर रही दिल की बात

हुआ मन रजना  ।

ननद _   भाभी जो  त्यारे होहिये हुरेलवा, हम लियें गले का हार - और गल तिलरी 

भाभी _   ननद जो मेरे हुहियें हुरेलवा, हम दीहें गले का हार और गलतिलरी 

             भोर भयो,पीरी फाटी । लाल ने लिये अवतार ,हुआ मन रजना

             रोये सुनाये हुआ मन रजना ।

भाभी -    सखी धीरे बजाओं बधाईयाँ, ननदी सुन न ले ।

              हुआ मन रजना। 

            सुनते कहते ही आये गह ननदी,

            भाभी बदन बदी सो देओ, हुआ मन रजना

            भाभी सुनते ही करवट ले गई, हम से करो ना बकवास 

            हुआ मन रजना।

न नदी - गोदी हुरेलवा लै लियो, और गई ससुरे की गैल,

           हुआ मन रजना। 

भाभी ÷ अटरिया चढ. गई और संइया से लगी बतलान,

            ननद हुरेलवा ले गई हुआ मन रजना। 

            हलकी गढ़ायो लायो तिलरी। 

            और हल्का गले का हार, 

            हुआ मन रजना।

            लौटो लौटो ननद मेरी लौटो

            लौटो लौटो बहन मेरी लौटो, 

            जो बदन बदी सो लेओ,हुआ मन रजना। 


शब्द -                    अर्थ

हुरेलवा -               बच्चा

गल तिलरी -           गले का गहना

पीरी फाटी -           दर्द उठना

मन रजना -            खुश होना


0अर्पणा पाण्डे

Monday, 19 September 2022

सरिया, सोहर

 जेठानी आई s s दिन- चार, 

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।

सास को भेजो नउआ ,

ननद को बरिया ।

जेठानी को तुम लेन जाओ ,

जेठानी मेरी गोतिनिया। 


सास को भेजो,इक्का

ननद को बग्धी, 

जेठानी को रथ  ढरकाओ

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।


सास को उतारो  अंगनवा,

ननद को उतारो वरोठवा,

जेठानी को अपने कमरा ।

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।


सास ने खर्चों रुपय्या, 

ननद ने अठन्नी ।

जेठानी ने खर्ची छ्दाम  ,

हमारो मन फट गयो रे ।

सास को भेजो संजा, 

ननद को सवेरे  ।

जेठानी को भेज देओ दोपहरिया

जेठानी के पैर जल जाये,

जेठानी मेरी गोतिनिया  ।।

शब्द     _ अर्थ

गीतिनिया - अपने गोत्र की

नहुआ     -  नाऊ

बरिया     -  पत्तल उठाने वाला

ढर काओ  - धक्का देना या हांकना 

बरोठवा    - बरामदा ,कमरे के बाहर का हिस्सा

छदाम      - सबसे छोटा सिक्का

_ _ _ 

0 अर्पणा पाण्डे

Friday, 16 September 2022

छटी पसनी में गाय़े जाने वाले गीत ( सोहर )

 सोंठ के लडुआ चरपरे हैं

बहुत सो इनमें घी परों है। 

सासू आवे चरूआ,चढ़ावे ं,

वेऊ मांगें लडुआ . . .

सोंठ के लडुआ़ चर परें हैं।

आधो फोड़ कलाई मेरी दुःख़े, 

सजों दियो नहीं जाये। 

गरी के गोला नौ पड़े हैं

बहुत सो इनमें घी पड़ो है।

सोंठ के लडुआ़ चरपरे हैं।

शब्द  _            अर्थ

सोंठ_              सूखी अदरख

चरुआ -            रीति - रिवाज 

सजो_               पूरा

चरपरेे  _            तीखे,चटपटे


0 अर्पणा पाण्डेय

बच्चे के जन्म के समय गाया जाने वाला गीत

 कहो घना ,गोविंद के भये लाल.

हंसतें खेलत घर आये ,काहे घना अनमनी?मेरे लाल

लाज संकुचि की हैं बात, मर्द आगे का कहें मेरे लाल। 

गोविंद _ हम तुम अन्तर नाहीं हम तुम अंतर एक 

कपट जिया नाहीं,कहो दिल खोल के मेरे लाल।

बहू _ बाँहों कूल्हों मेरो कसके,  करियाहयाँ मेरे सालें 

उठी है पंजरवा की पीर,सुबर दाई चाहिये मेरे लाल।

गोविंद _ दाई को नाम ना जाने ,गांव ना जाने ,कहाँ दाई रहे बसें मेरे लाल ।

बहू _ पूछ ले ओ माई बहनिया ,सगी पितरानिया, शहर के लोग,कुआँ पनिहारिनिया मेरे लाल

दाई _ को मेरो टाटा खोलो ,कुकुर मेरो भूके,पहरूआ मेरे जाग उठे मेरे लाल

गोविंद _ माई की,पीर ना जानी,बहन परदेश ,हम घर अलख बहुरिया,रुदन भले भये मेरे लाल। 

दाई_ माह पूस के हैं जाडे, दाई ने चले मेरे लाल।

गोविन्द _ हम तुम्हें शाला दें हैं, दुशाला देंहें,रथ ढरकहिये ,चलो उ लावनी।

जब दाई बाद में आई शगुन भले भये,जब दाई द्वारे पे आई शगुन भये। सखियन घर भरों मेरे लाल जब दाई अंगना में आई बोली,लाओ न् बेला भर तेल मलो तेरो पेट पिढ़री सुतत आई पीर ,सो लालन उर धरे मेरे लाल। वहू ÷ जब दाई घर से निकरी दाई को नाद सो हैं पेट,लाला लैके सोये रही मेरे लाल।मेरो सिर दुःखत् है मेरे लाल। 

गोविन्द _ द्वारे से आये गोविन्द लला दाई से कौन लडे. मेरे लाल। शाल उढाये ,दुशाला उ ढाये, रथ ढ्ररकाये मेरे लाल।

कहो घना गोविन्द के भये लाल, हंसतै खेलत घर आये मेरे लाल। 

शब्द _    अर्थ                    शब्द _    अर्थ 

घना _      पत्नी                  उलायती _ जल्दी

अनमनी  _    वे मन से         पिढ़री _     बच्चा

करियाहयाँ  _  कमर            सुतत_       खिसकना

सालें   _        दर्द                उर _         धरती

पंजरवा  _      पंजों का दर्द     नाद _      मोटा

पितरनियां  _  जेठानी             दुशाला _   कंबल

पहरूआ   _      पहरेदार

ढ़रकहिये   _     धक्का देना

० अर्पणा पाण्डेय

Saturday, 3 September 2022

उत्तर भारत के लोकगीत और लोक कथाएं

 लोकगीत एवं लोक कथाएं हमारी संस्कृति  को परिलक्षित करती हैं लोकगीत और लोककथा को संरक्षित रखना एक दुष्कर कार्य होता जा रहा है । लोग ग्रामीण अंचलों से शहरी अंचलों में आकर इतने मग्न हो रहे हैं कि कहीं ना कहीं वे लोकगीत एवं लोककथा को कहने सुनने में शर्म और संकोच महसूस करते हुए नजर आते हैं  कहीं उन्हें हम कम पढ़ा लिखा मान लेते हैं और वह हीन भावना के शिकार होने लगते हैं जबकि सत्य है की असली भारतीय संस्कृति गांव में ही बसती है यह संस्कृति क्रमशः निरंतर एक से दूसरे को युगों युगों से आदान प्रदान की जाती रही है आज बच्चों के जन्मदिन पर जच्चा बच्चा गीत, सोहर ,सरिया लुप्त होते दिख रहे हैं l शहरी निवासी होते ही लोग केक काटने का चलन चलाने में गर्व महसूस कर रहे हैं हमारे यहां जैसे जन्मदिन पर दीपक को प्रज्वलित किया जाता है वही आज  केक काटते समय दीपक को बुझाया जाता है। मुंडन ,छठी ,अन्नप्राशन  ,विवाह जैसे कार्यों में बिना गाए कोई कार्य नहीं किया जाता था l आज उसकी जगह  माइक और सीडी मैं ने ले ली है। इसी प्रकार लोक कथाएं भी लुप्त होती जा रहे हैं हर  त्यौहार पर पहले घर की बुजुर्ग महिला उस त्योहार से संबंधित कथा सुनाती थी और सभी लोग उसको ध्यान से सुनते थे फिर कहते थे भगवान जैसा उसके साथ हुआ वैसा ही मेरे साथ भी हो मैं आपकी पूजा विधिवत करूंगी मुझे उस का योगफल दीजिए मैंने भी अपनी मां कुसुम चतुर्वेदी से हर पावन पर्व पर कथा सुनी और हर शुभ अवसर पर  उनके गाए हुए गीतों को गुनगुनाती  आई ,मैं उनके सुनाए हुए गीतों को और उनकी सुनाए हुई कहानियों को इस किताब रूप में संपन्न कर रही हूं आप सभी लोग इसे पढ़ें और गुनगुनाए परिवार के साथ बैठकर इन कथाओं का आनंद लें इसी आशा के साथ मैं इस पुस्तक को आप सभी तक पहुंचाना  चाहती हूं l हमारी धरोहर संरक्षित रहे उसका प्रचार प्रसार हो यही मेरी कामना है इस कंप्यूटर युग में आज भी पुस्तकों में लिखी कहानियां बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती रहती हैं ।