Sunday, 24 November 2013


 स्मृति।
मेरी स्मृति में बाबूजी का वो चेहरा
कभी-कभी हवा के साथ आता है
और हो जाता है प्रतिस्ठित
ख्यालों में डूबता और उदय होता
 बाबूजी का चेहरा
 बस चेहरा ही नजर आता है
 भीगी पलकों में यादों का
 जैसे जल चमकता है
और उसी जल ने ठहर कर
भूली बिसरी यादों कि तरह 
 घर  बना लिया है।।

 अर्पणा पाण्डेय

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