Sunday, 30 March 2025

मधुबनी.. एक अनूठी चित्र शैली

 मधुबनी शैली की चित्रकला दुनियां में अपने तरह की एक ऐसी अनोखी चित्रकला है जिसे सिर्फ एक अंचल विशेष की महिलाएं ही परम्परागत तरीके से बनाती है ,आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े विहार के इस अंचल की महिलाओं ने रंगों और आकृतियों के सहारे मानव जीवन में जिस आवेग का संचार किया, उसने न केवल इनका जीवन सरस और रंगीन बनाया, बल्कि दुनिया के नक्शे में इसकी पहचान भी बनायी l

आम तथा केले के हरे भरे पेड़ों और पानी से भरे पोखरे से घिरे अपने मिट्टी के घरों में गोबर से लिपी जमीन पर पालथी मार कर  बैठी ये महिलाएं पिछले तीन हजार बर्षों से हिन्दू देवी देवताओं के भक्ति परk चित्र बनाती आ रही हैं इन चित्रों के विषय धार्मिक ग्रंथों और पुराणों से लिए जाते हैं ,काली माँ तथा आठ भुजाओं वालीं पारम्परिक भेष. भूषण में दुर्गा जी के चित्र किसी भी कला प्रेमी के लिये आकर्षण का विषय हो सकते हैं l

इन चित्रों की प्राचीनता और उत्पत्ति के बारे मे अभी तक कोई निष्कर्ष निकाला नहीं जा सका है, पर इनका आकार प्रकार hadhppa से प्राप्त तथा पंचमार्क के सिक्कों पर बने चित्रों से मिलता जुलता है, मिथिला के कुछ प्राचीन ग्रंथों में मिले इस चित्र कला के वर्णन से निष्कर्ष पर तो पहुंचा ही जा सकता है. कि वह लोक कलाओं की एक अत्यन्त प्राचीन शैली है l मिथिला की यह एक विशेषता रही है कि इसने देश की हिन्दू संस्कृति की विशुध्दता और गरिमा को पूरी तरह से सुरक्षित रक्खा है l यह चित्रकला अपनी मौलिकता एवं पहचान को बनाये रखने में पूरी तरह से सफल रही है l मुगल कांगड़ा राजस्थानी आदि चित्रकला शैलियों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा l

केवल महिलाओं द्वारा बनाये जाने वाले यह चित्र किन्हीं खास उत्सवों एवं आयोजनों के अवसर पर ही बनाये जाते हैं, इन चित्रों के लिए कोई माडल नहीं होता है ये पूरी तरह से मौलिक होते हैं इनकी तुलना कुछ मायनों में उत्तर प्रदेश के करवाचौथ एवं हरछठ पर दीवारों पर बनाये जाने वाले रेखा चित्रों से की जा सकती है l मधुबनी की कला परम्परागत रूप से माँ बेटी के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है प्रारम्भ में बेटी माँ के साथ बनवाने में मदद करती है, फिर धीरे धीरे उसका स्वरूप उसके दिमाग में अपने आप बन जाता है l विवाह के उपरान्त पति के घर जाने पर वह खूब मन लगाकर उसका अभ्यास करती है और पारंगत हो जाने पर ये कला वह अपनी बेटी को सौंप देती है यह सिलसिला जाने कब से चला आ रहा है l 

Tuesday, 25 March 2025

हरिद्वार ke आनन्द वन्य में पहली कथा (4)

 ज्ञान भक्ति और वैराग्य के मिल जाने से शांति हुई और कथा की शुरुआत. 

एक आत्मदेव नाम का व्यक्ति था बहुत ही सरल सुशील वहीँ उसकी पत्नी धुंधली कर्कश और बहुत बोलने वाली घर के काम को न करने वालीं इसलिए आत्मदेव चिंतित रहते और सोचते कि एक पुत्र ही योग्य होता तो जिन्दगी सफल हो जाता यह सोचकर घर से बाहर जंगल में निकल गया वहीँ सन्यासी रूप मैं भगवान आ गए, आत्मदेव उनके सामने रोने लगा और अपनी आत्म कथा सुनाई, तो ब्राम्हण ने कहा कि तुम्हारे सात जन्मों तक कोई संतान नहीं है अतः ये विचार त्याग कर ईश्वर के चरणों में अपना मन लगा दो, लेकिन आत्मदेव ने संतान ही मांगी, तब भगवान ने उसे एक फल दिया और कहा कि यह फल अपनी पत्नी को खिला दे और बहुत संयम से रहे. आत्मदेव बहुत खुश हुए और घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई और वही फल खाने को दिया धुंधली ने पति से हाँ कह कर सोचने लगी कि कौन 9 महीने कष्ट सहे और वह फल गाय को खिला दिया और 9 माह तक बहन के घर चली गई और उसके पुत्र को लेकर आ गई और बोल दिया कि मेरे पुत्र हुआ है और उसका नाम धुंधकारी रखा, उधर गाय को भी पुत्र हुआ उसके कान गाय की तरह थे शरीर देव की तरह तो उसका नाम गोकर्ण पड़ा l गोकर्ण सुरू से ही भक्ति में में लीन रहते और जंगल में तपस्या करने लगे इधर धुंधुकारी बड़ा ही आतताई पिता को मारता पीटता इससे परेशान हो कर आत्मदेव गोकर्ण के पास गए तब गोकर्ण ने पिता को बहुत समझाया कि आप आए भी अकेले थे जाना भी अकेले तो आप क्यों माया मोह में पड़े हैं इससे निकल कर भगवान की शरण में जाइए वहीँ कल्याण होगा, तब आत्मदेव को ज्ञान मिला और वे सब कुछ छोड़कर भागवत शरण में चले गये l


नैमिषारण्य (3 सरा पेज)

 नैमिषारण्य में सूद जी कथा सुना रहे हैं जिसमें 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ सनक सनन्दन सहित चारों सnkadik कुमार भी हैं, यहाँ ग्यानी चिंतन करते हैं, कर्मयोगी कर्म करते हैं. भूमंडल के जिस स्थान पर भगवान ने चक्र फेंका और उसका तीर जहां पहुँचा, वही नैमिषारण्य तीर्थ है इस तपोभूमि में स्वयंbhu मनु ने एक पैर पर खड़े होकर (ओम नमो bhgvte वासुदेव) इस द्वादश अक्षर का जाप किया तब भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन दिया l 

तब सभी भक्तों ने गान किया..गोविंद हरे गोपाल हरे जय जय प्रभु दीन दयाल हरे 

तब मनु ने भगवान से कथा सुनाने के लिए कहा तब भगवान ने सभी 18 पुराणों मे भागवत पुराण को ही सबसे अच्छा बताया. 

उधर ग्यान और बैराग के जाग जाने से भक्ति भी प्रसन्न हो गई अब यज्ञ आदि कर्मों में रुचि रखने लगे. इस तरह ज्ञानयोग से दीनहीन व्यक्ति भी कल्याणमय हो जाता है. 

भाग 3


Wednesday, 19 March 2025

होली 2025

 इस बार की होली में हम सभी लोग दिल्ली चले गए, रेवा के न आने से हम सभी ने प्रोग्राम बना कर रेवा को सरप्राइज दिया 9 घन्टे का सफ़र कर जब हम लोग पहुंचे तो वह खुशी देखते ही बनती थी 2 दिन होली में सबने खूब इंजॉय किया सबसे ज्यादा रेवा और रावी ने खूब आनन्द किया बड़े भी खुश हुये, 2 दिन रहकर वापस आ गए l