भगीरथ कोयली का पति कुछ दिन रहता और उसकी कमाई का बचा हुआ पैसा लेकर चला जाता उससे वो गांव के खर्चे में काम चलाता बीड़ी पीने के अलावा और कोई ऐब नहीं था । इस तरह इनकी दो लड़किया मंजू संजू थी मंजू 14 साल की और संजू 10 साल की थी मंजू का रंग भी स्याह काला था जबकि संजू थोड़ी ठीक थी , मंजू कमसिन और युवा दिखने लगी थी उसके पीछे लड़के मंडराने लगे थे मंजू चंचल भी थी और किसी लड़के से नैन मट्टका करने लगी थी फिर क्या एक दिन वही हुआ जिसका डर था कोयली को ! मंजू भाग गई थी कहाँ गई किसके साथ गई कुछ नहीं पता कोयली परेशान सी रहती लेकिन क्या करती बस अम्मा से बतिया कर शांत हो जाती धीरे-धीरे समय बीतता गया मंजू का कुछ पता नहीं चला अब संजू भी जब समझने लगी थी उसको हम लोगों के पास ज्यादा अच्छा लगता था एक तरह से हम छः बहनों में वो भी पलने लगी . उसमें समझदारी ज्यादा आ गई थी . हम सबकी संगत का असर संजू में दिखने लगा था पूजा पाठ की करने लगी थी घर में भागवत होती तो बड़ी तन्मयता से सुनती थी फिर उसकी छोटी छोटी कथा- कहानियाँ को अम्मा को सुनाती इस माहौल मे रहते धीरे धीरे वह 18 साल की हो गई धीरे से कोयली उसको गांव ले गई और उसका विवाह कर दिया अब वह ससुराल चली नई किन्तु हम सबकी वो बहुत याद करती ऐसा कोयली बताती थी । समय बीतता गया उसके भी 5 बच्चे हो गये सबसे बड़ी लड़की 15 साल की हो गयी तो वह चूल्हा चौका संभालने लगी और लड़के पिता का हाथ बटाने लगे तब वह वापस कानपुर हमलाँगा के पास ही आगई छोटे २ बच्चो को साथ ले आई थी कोयली भी अब अस्वस्थ रहने लागी थी तो वह उसका भी सहारा बन गई और हम लोगों के साथ भी वह रहने लगी कोयली का काम अब उसने पकड़लिया था उससे उसकी आमदनी भी अच्छी हो जाती और कोठरी में मां के साथ अपने बच्चों को लेकर मजे से वह रहती कभी फसल कटने का काम हो या शादियां करनी होतो वह गांव जाती और यहाँ से खूब सामान ले जाती सभी को यही चाहिये था । तो अब यह कोयली वाली कहानी दोहराने जैसा था फर्क बस इतना था कि हम सब की शादी हो गई अपने अपने घर चले गये तो वह अम्मा के साथ किस्सागोई करती कोयली शिथिल हो गई थी ऐसे ही एक दिन वह चिरनिद्रा में सो गई भगीरथ पहले ही मर चुका था गांव में हम लोग तो कोयली के मरने पर घर पर नहीं परदेश में थे लेकिन बाबूजी ने उसका पूरा क्रिया कर्म विधि विधान से करवाया और संजू को ता उम्र रहने को शरण दी । आज 60 वरष की हो गई नाती पोते वाली है लेकिन रहती हमारे जन्मस्थान वाले घर जवाहर नगर कानपुर में ही है आज अम्मा भी नहीं बाबूजी भी नहीं हम सब बहने भी अपने अपने ससुराल में ,बडी दीदी भी कोरोना में नहीं रही और छोटी नौकरी कर रही देहरादून में !
और मेरा मायका संभाल रक्खा है संजू ने हम पांचों बहनों में कोई भी घर जाते हैं तो संजू पूरा स्वागत अच्छे से करती है। साफ सफाई हो जाती चाय भी मिल जाती तो ये सब अम्मा बाबूजी का सभी पर लुटाया गया स्नेह का फल ही है। और संजू के रहते घर आवाद है। आज शोशल मीडियाके रहते कहीं भी ऐसा प्रेम देखनेको नहीं मिलता . अर्पणा पाण्डेय ९४५५२२५३२५
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