मई जून की भयंकर गर्मी सभी के लिये असहनीय है किन्तु अम्मा के लिये कुछ ज्यादा ही क्योंकि उन्हे सांस की तकलीफ है फिर भी चेहरे पर मुस्कराहट उम्र 85 वर्ष अपना हर कार्य अपनी ड्यूटी की तरह निभाना जैसे प्रातः 5 बजे उठना भगवानका कमरा साफ करना भगवान के वर्तन साफ करना जल भर कर रखना बाबूजीको व मेरे अन मैरेण चाचा को चाय देना । ततपश्चात प्रातःकालीन स्नानध्यान कर एक घंटे पूजास्थल पर बैठ ध्यान में रहना व रामायण का पाठ उसके बाद 1 घंटे आराम से किचन में बैठकर चाय नाश्ता कराना और स्वंय करना फिर 9 से 11 बजे तक विश्राम अपने खटोले पर बरामदे में । रामायण तो उन्हे याद हो गई थी बस रामायण की चौपाई का पहला शब्द देखती और बोलती चली जाती चश्मा भी बस पढ़ते समय ही लगता तो प्रातः काल की ऐसी ही दिनचर्या इधर उधर के कार्य से यदि अवरोध होता तो वे कहती मेरा मन बाद में नहीं लगता है।सुबह की पूजा खासकर !
स्मृतियों के इस भंवर में घूमते रहे तो शब्द भी कम पड़ जायेंगे कुछ अनुभवों और घटनाओं को ही विस्तार दे रही हूँ । हम छः बहनों में पांचवे नंवर की हूँ पूना में रहती हूँ (2010) की बात है । कानपुर अम्मा ने एक बार फिर भागवत कथा सुनने का मन बनाया 6 ,7 बार भागवत हो चुकी किन्तु हमारे घर में छः बेटियाँ के विवाह के बाद भागवत एक उत्सव की तरह ही मनाई जाती सब रिस्तेदार पड़ोसी एक हफ्ते खूब ध्यान सुनने आते और आखिरी दिन भंडारा होता सबको खिला कर अम्मा का मन बहुत खुश रहता और यही अकी उर्जा का स्त्रोत लगता ' हमको भी बार सुनने का मौका मिला और पूरी भागवत को डायरी में नोट करती जाती इस तरह २ डायरियाँ भागवत की है जिन्हे मैं अम्मा के कहने पर उनके खाली बैठने पर सुनाती इस तरह मुझे भी काफी याद हो गई , कोई दिखावा नहीं कोई शोर शराबा नहीं तन मन धन से सेवा और हर आगन्तुक को सामान आदर स्नेहपूर्वक खाना-पीना कराना बाबूजी भी परिक्षित बनकर सुनते दिखावे की पूजा पाठ उन्होंने कभी नहीं की लेकिन निस्वार्थ प्रेम बहुत किया घर में हमेशा रौनक रहती थी औरहम सब बहनों के आने पर बहुत खुश रहते बोलते में पर्कि में सुनता रहता हूँ जिनके बेटे बहू हैं ।
अम्मा की कॉपी आज मै करती हूँ । इस तरह बाबू जी के आफिस जाने के बाद चौका समेट ना व घरके हम बहनों से जुडे काम जैस कपड़े धोना घर व्यवस्थित करना कुछ सिलाई बुनाई करना ऐसा करते 3 बज जाता तब वे बरामदे में खटोला बिछाती और आराम करती वो भी ने प्राकृतिक हवा में खिड़की दरवाजे खुले रहते पहले विस्तर भी शामको ही बिछाये जाते थे और सुबह समेट कर बक्से में रख दिये जाते दिन में खटिया चटाई या डायरेक्ट जमीन पर ही लोटते . उसी समय हमारी कामवाली बाई जिसको मैने जबसे होश सभाला देखा हमारे घर में ही एक छोटा कमरा बना था जिसको भंडरिया कहते थे उसमें वो रहती थी नाम था कोयली उसका आदमी गांव में खेती वाड़ी देखता था भगीरथ उस सब भग्गी के नाम से बुलाते वह कभी कभी आता लेकिन जब वह आता तो बर्तन वही मांजने आता और इतने साफ मांजता कि पीतल के वर्तन सोने जैसे चमकते और उस समय वर्तन राख से मांजे जाते थे आज तो बच्च्चों के बच्चेजानते भी नहीं होंगे कि राख क्या होती है । हाँ तो कोयली जब तीसरे मंजिल तक आती तो हॉफ जाती क्योंकि हम सब तीसरी मंजिल पर ही रहते थे बीच में भी कमरे थे ' लेकिन चौका ऊपर ही था सो बह अम्मा के पास ही जमीन पर थोड़ी देर लेट जाती कुछ देर हवा खाकर आराम करती फिर धीरे से कान में खुर्सी बीड़ी निकालती सुलगाती और सुडकती यह सब हम भी देखते थे लेकिन सब सामान्य सा लगता था वह लम्बा कश खींचती और अम्मा से बात करने शुरू हो जाती अरे बबुआइन आज फलाने चौका में हमारी झक झांय हो गई । काम बढ़त जात है और हमका पैसा बढाये के खातिर चुप हुयी जात हैं पहले कहिन थी कि बड़का के बेटा हुइयै तो बढा देवे नहीं बढ़ाई मिठाई कटोरा भर के दिये रही हम कुछ नाही कहिन अब मुंड न पसनी सब हुयी गये तबहु चुप्पी लगाये रही आज हम से न रहा गवा हम कहि दीन तो बस झुरझुरी लग गई ' या फिर शुक्लाइन की विटेवा ऊ पड़ोस के वर्मा के विटेवा के साथे भाग गई किन्त ऐसी बाते बह अम्मा के पास जाकर फुसफुसा कर कहती ताकि हम लोग आसपास है तो सुन न ले . ये शायद अम्मा की हिदायत ही होगी हमलोग उन समय स्कूल से आकर आराम करते थे को कमरा वगल में ही था ये सब वाक्या उस समय लाइव टीवी के जैसे था सास बहू के किस्से भी शामिल होते । इस तरह दोनो का आराम और बिना कहीं जाये अम्मा का मनोरंजन या मोहल्ले की जानकारी कोयली से मिलती रहती जैसा नाम कोयली था वैसी ही रंग की काली भी थी . आज भी उसकी लड़की जो की 6० साल की है उसी घर में अकेले रहती है गाँव में परिवार के पास कभी-कभी चली जाती लेकिन मन उसका भी यहीं कानपुर हमारे घर मे ही लगता आज अममा बाबूजी कोई नहीं बहने भी अपने अपने घर में लेकिन संजू (कोयली की बेटी ) के रहते हम सब बहने मायके में घूम आते अपनी पुरानी यादों के साथ ।
शेष अगले अंक में
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