Tuesday, 22 April 2014

bhashavad


                                           समीक्षा
भाषावाद : एक निर्रथक अवधारणा

भाषावाद न तो कोई एक सम्पूर्ण विचार है ,और ना ही कोई स्वस्थ सामाजिक अवधारणा ,चूँकि वादो का नजदीकी रिश्ता विवादों से भी मन जाता है। अतः दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं की भाषावाद की वकालत करने वाले व्यक्तियों या समूहों की रूचि एक निरर्थक विवाद करने में ज्यादा दिखाई देती है ना की भाषा के प्रचार-प्रसार में ,महाराष्ट्र -कर्णाटक का सीमा विवाद अभी भी सुलझ नहीं पाया है इसके पीछे मुख्य कारन भाषा संबन्धी विवाद ही है। महाराष्ट्र के साथ-साथ देश के कई अन्य भागों में भी अक्सर भाषाई विवाद अपना सिर उठाने लगता है ।
भाषा के ऊपर ऐसे ही विवादों की चर्चा करने के लिए फरवरी, 2011 महाराष्ट्र के सीमांत नगर उदगीर के शिवाजी महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नै दिल्ली के सहयोग से एक संगोष्टी का आयोजन किया गया था। इस संगोष्टी में महाराष्ट्र ,कर्णाटक और मध्यप्रदेश के सीमा वर्ती क्षेत्रों के विभिन्न विश्व विद्यालयों से जुड़े हिंदी प्रध्यापकों और शोधार्थियों के साथ-साथ कुछ हिंदी लें ख्कों को भी भाषावाद के विभिन्न पक्षों पर अपने प्रपत्र पढ़ने और चर्चा करने हेतु आमंत्रित किया गया था।
संगोष्ठी के तीन वर्ष वाद इसके संयोजन डाक्टर विश्वनाथ किसन भालेराव के संपादन में उक्त अवसर पर पढ़े गए चुनिंदा आलेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक में कुल 43 आलेख हैं। विशेष बात ये है की दो-तीन आलेखों को छोड़कर सभी गैर हिंदी भाषी लेखकों द्वारा लिखे गए है जो की उनके भाषा एवं भाषा विवाद सम्बन्धी निजी अनुभवों पर आधारित हैं।
पुस्तक का पहला आलेख "भाषावाद और हिंदी " शीर्षक से श्री कौशल पाण्डेय जी का है ,जिन्हे हिंदी भाषी और मराठी भाषी दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से कार्य करने का अनुभव रहा है। इस आलेख द्वारा हिंदी को एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में व्याख्यापित किये जाने का प्रयास किया गया है। यह आलेख संगोष्ठी में दिए गए बीज भाषा का संक्षिप्त एवं सम्पादित रूप है। संपादक डाक्टर विश्वनाथ भालेराव ने अपनी भूमिका में भाषा विवाद की मूल अव् धारणा की तलाश कवि धूमिल की इन काव्य पंक्तियों में की है।
                       चंद -चालक लोगो ने ,
                      जिनकी नरभक्षी जीभ ने
                      पसीने का स्वाद चख लिया है
                      बहस के लिए भूख की जगह
                       भाषा को रख दिया है।
                       उन्हें मालूम है कि भूख  से भागा हुआ
                       आदमी भाषा की ओर जायेगा  ।

इस पुस्तक के सभी आलेख भाषावाद का खण्डन करते हुए इस बात को रेखांकित करते है कि हिन्दी के माध्यम से ही देश की अखंडता और एकता को बनाये रखा जा सकता है।  अधिकांश आलेखों की भाषा पर मराठी का स्थानीय भाषाई प्रभाव साफ-साफ देखा जा सकता है ,जिसे दिखना भी चाहिए ,क्योकि भाषा को अगर स्थानीय दबाबों और प्रभावों से अगर मुक्त कर दिया तो वह क्रतिम भाषा लगने लगती है। शुद्ध और परिष्कृत हिंदी की अपेक्षा रखने वाले हिंदी पाठको को हो सकता है यह पुस्तक आकर्षित न करे पर भाषा को बहता नीर मानने  वाले तथा भाषा वाद की क्रतिम समस्याओं से असहमत और उससे निजात चाहने  वाले हिंदी प्रेमियों और शोधार्थियों को यह पुस्तक अवश्य रचकर लगेगी।

० पुस्तक --भाषावाद  (आलेख )
० सम्पादन --डा ० विस्वनाथ किसान भालेराव
० प्रकाशक --शैलजा प्रकाशन , कानपुर
० मूल्य -----375 रुपये।

Thursday, 17 April 2014

कहावत 

आसमान 
एक थाल मोतियों से भरा ,सबके ऊपर ओंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे ,मोती उससे एक न गिरे।।
                                      (अमीर खुसरो ) 
भौं
श्याम बहन की है एक नारी
माथे  ऊपर लागे प्यारी,
जो मानुष इस अर्थ को खोले ,
कुत्ते की वह बोली बोले


Thursday, 10 April 2014



 अब हो रहा सवेरा ------------
 जगने  लगी है जनता ,अब हो रहा सवेरा
जिसमे पड़े -पड़े हम,सुख -स्वप्न देखते थे.
वह मोह रात  बीती अब हो रहा सवेरा।
भागा है मुँह छिपाकर ,दासत्व का अँधेरा
धरती पर लाली छाई ,अब हो गया सवेरा।

झूठी चमक दिखाकर जुगनू ने नाम पाया
अब दीखता न वह भी ,अब हो गया सवेरा।
तारे जो दूर से ही रहते वे थे चमकते
वे भी लगे खिसकने अब हो गया सवेरा।

ये कर्म क्षेत्र तुमको हंस-हंस बुला रहा है
करना न अब किनारा ,अब हो गया सवेरा ॥

   अर्पणा पाण्डेय।



दोस्ती करें तो ऐसी -

पानी- पय- वत गर प्यार प्रीत कि रीति सीख ले आप सभी
तो इस भारत भूमि जननी के ,निश्चय दुःख दूर हो जाएँ सभी ॥
जब दीन- हीन पानी बेचारा शरण दूध कि आता है
नहीं दूध करे दूर-दूर  छि -छि निज अंग समझ अपनाता है ॥
 सफेद रंग पानी को प्रदान कर अपने संग   मिलाता है
जिस भाव वो बिकता है उस भाव ही उसे बिकाता  है॥ 
गुण ग्रहण दूध का करते ही पानी पय- वत बन जाता है
नीचों को ऊँच बनाने का क्या बढ़िया सबक सिखाता है ॥

एक हलवाई के हाथों जब भट्टी पर चढ़ जाता है
उस वक्त मुसीबत में दोनों क्या मित्र भाव दरसाते हैं ॥
जब आग धधकने लगी खूब और जलने की  नौबत आ गई
हिम्मत कर बात दूध  से पानी ने तब फरमाई॥
मै हूँ मौजूद कढ़ाई में तब तक कुछ  मत परवाह करो
हे दुग्ध देव! बैठे तुम सानंद रहो  ,मत मुह से कुछ  आह करो ॥

दूध मित्र को रखा सुरक्षित और  खुद को जल ने जला दिया
प्रेम  सहित अपनाने का यह बदला कैसा भला किया॥
पृथकत्व सहन कैसे करता पय -पानी प्राण पियारे  का
जब बिछुड़ गया एक मित्र कु-समय में आज बिचारे का ॥
बस चला उबल होकर बिकल  मै भी  जलकर मर जाउंगा
चल बसा मित्र ,अब मई जिन्दा रहकर क्या मुह दिखलाऊंगा ॥

जब  देखा  हलवाई ने  --दूध ने हो बेचैन उबाल लिया
 झट समझ गया दिल की  हालत एक चुल्लू पानी डाल  दिया॥
थोडा सा पानी पड़ते ही बस दूध शांत हो जाता है
बिछुड़ा भाई मिल गया प्रेम से रो-रो कर गले लगाता  है॥ 

जब इस प्रकार से लोग  सभी आपस में प्रेम -प्रीत दिखलायेंगे
गरीब ,अछूत बच्चों को निज अंग   समझ अपनाएंगे॥
वह ऊँचा है यह नीचा है जब ये विचार मिट जायेंगे
निश्चय समझो इस भारत के फिर से दिन फ़िर जायेंगे ॥

                    अर्पणा पाण्डेय। …


Sunday, 6 April 2014


 समय ----
 काफी  समय  बादलों  की तरह  हमारी  जिन्दगी के  पीछे उड़कर चले गये हैं
 रोज कि तरह आज फिर सवेरा हो गया
,बादलों में हलकी नीलिमा के साथ लाल किरणो ने खेलना शुरू कर दिया है
 धीमी -धीमी बयार ने फुनगियों को धक्के मारना  भी शुरू कर दिया है.