Wednesday, 9 April 2025

भागवत कथा 5 धुंधली व dhundhkari का अन्त और संसार श्रृष्टि

 इस तरह आत्मदेव के जाने के बाद धुंध कारी ने अपनी माँ को बहुत सताया वह भी मर गयी, ऐसे में गोकर्ण भी वहाँ से चले गये. अब यह वेश्याओं के साथ रहने लगा और चोरी करने लगा उन वेश्याओं ने परेशान हो कर एक दिन उसे मार डाला, तो वह प्रेत योनि में पहुंच कर भटकता रहा व्याकुल होकर जंगलों में घूमता रहता, तब उसने गोकर्ण से अपनी मुक्ति मांगी तब गोकर्ण ने गायत्री देवी का जाप किया और सूर्यदेव का आव्हान किया तब सूर्यदेव ने भागवत सप्ताह करने को कहा और विधि बताई कि सात गांठ का एक बांस लगाव और उसमें धुंध कारी का आव्हान किया जाय फिर एक दिन में एक गांठ तोड़ी जाए इस तरह 7 गांठ टूट जाने पर उसे मुक्ति मिल जाएगी, गोकर्ण ने ऐसा ही किया इस तरह धुंध कारी मुक्त हो गया l 

सृष्टि की रचना ब्रम्हा जी ने की, पालन-पोषण विष्णु जी ने किया संहारक शिव जी हुये, ब्रम्हा जी के क्रोध से रुद्र का जन्म हुआ तब शिव जी ने पूछा कि मेरा क्या काम तो ब्रम्हा जी ने कहा कि तुम रोते हुए पैदा हुए हो इसलिए तुम रुद्र हो और काम दिया कि तुम सृष्टि की रचना करो तब शिव जी ने तमाम जीव जन्तु पैदा कर दिया वे अजर अमर हो गए तब विष्णु जी ने उन्हें रोका और कहा कि आप सृष्टि ना करें आप तपस्या करें तब शिव जी कैलाश पर्वत पर तपस्या करने चले गए l 

ब्रम्हा के आधे रूप से शतरूपा और आधे से मनु से सृष्टि शुरू हुई 

Thursday, 3 April 2025

मधुबनी पेज 3

 प्राचीन लोक चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों के निर्माण की प्रक्रिया दिलचस्प होती थी l जैसे नारंगी रंग हर सिंगार के फूलों से बनाया जाता था l हर सिंगार के फूलों को पानी में उबाल कर उसमें गोंद मिला कर छान लिया जाता है, लाल रंग चुकंदर को सूखाकर,उबालकर कूट कर उसमें गोंद मिलाकर तैयार किया जाता है l पीला रंग कटहल के गूदे को उबाल कर बनाया जाता है l हल्दी में गोंद मिलाकर भी तैयार किया जाता है आजकल कपडों में करने वाले पेंट बाजार में आने लगे हैं इस नवीनता से कपडों का सौंदर्य बड़ा है वो कितने भी बार धोए जाए उनका रंग नहीं उतरता प्रेस करने के बाद वे ज्यों के त्यों नजर आते हैं यही कारण है कि आजकल भी यह लोक कला काफी लोकप्रिय हो रही है l 

Tuesday, 1 April 2025

मधुबनी पेज 2

 ये कलाकृतियां अक्सर घर की दीवारों पर तीन जगह बनाई जाती है..पूजाघर, कोहबर घर और बाहर बरामदे में. कोहबर का मतलब होता है..लोक चित्र कला से सजा ऐसा कमरा, जिसमें शादी के बाद दूल्हे और दुल्हन को सबसे पहले दिखाया जाता है और पूजा कराने के बाद कुछ खेल कराये जाते हैं l इनकी दीवारों पर बने चित्रों का विषय पौराणिक या लोककथाओं से लिया जाता है दीवारों पर बनाने के लिये इसमें गेरू का प्रयोग किया जाता है पीला रंग हल्दी से बना लेते हैं क्योंकि लाल और पीले रंग पारम्परिक रूप से पवित्र माने जाते हैं. कोहबर घर में देवी. देवताओं के चित्रों के साथ कभी-कभी दूल्हे. दुल्हन के चित्र भी बना  दी जाती है l

सूर्य.चंद्रमा बांस के पेड़ ,कमल के फूल, तोता, कछुआ मछली, स्वास्तिक, और ओम के चित्र भी पवित्रता की निशानी माने जाते हैं l भारतीय संस्कृति के अनुसार बांस का पेड़ पुरुष का, कमल का फूल स्त्री का प्रतीक माना जाता है, तोता प्रेम का, कछुआ प्रेमियों के मिलन का तथा मछली को उर्वरता का प्रतीक माना जाता है 

इस कला में विशेष योगदान के लिए मधुबनी के सित वार  पुर गाँव की श्रीमती जगदम्बा देवी को सन 1970 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया, तब इस कला को काफी सम्मान मिला तथा चर्चा में आई l आज महिलाओं का दृष्टिकोण बदला है उन्होंने दीवारों के अतिरिक्त अपनी पोशाकों में भी काम किया है पक्के रंगों से बनाकर बाजारों में खूब धाक जमाई है और विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ी है, धनाढ्य वर्ग में लोग इसे बहुत पसंद कर रहे हैं सिल्क की साड़ी में इसकी चमक और बढ़ी है अभी हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्री रेखा गुप्ता जी मधुबनी शैली में बनी साड़ी पहने काफी चर्चा में रहीं l मूलतः बिहार निवासी दिल्ली के फैशन डिजाइनर मनीष रंजन नें भी इस शैली का प्रयोग अपने बनाये कपडों में बखूबी किया 

प्राचीन लोक चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों के निर्माण की प्रक्रिया दिलचस्प होती थी