आज 10 जनवरी हो गई है नए साल में 9 दिन निकल गए कुछ किस्सेकुछ दर्दकुछ नयालिखने का मन हो रहा है । रावी और ईषा पटना सेआ गए हैं ।मेरे साथ खेल रहे हैं लिखने नहीं दे रही है । शनिवार कोपटना की ट्रेनरात 2:30 बजे आई । और शाम को रेवा व सपना और दोषी की ट्रेन दिल्ली के लिए रवाना एक हफ्ते ये लोग सर्दी की छुट्टी मना कर गए।बैठे-बैठेसोच रही थीकीकिसी की बातयाद आने लगेकि पहले घरछोटे होते थेएक कमरे में मां अपने बच्चों के साथ गुजार देती थी बच्चा बड़ा हुआ तो बहुत खुश हुआ खूब कमाया और बड़ा सा घर बनवाया उसमें मां के लिए एक अलग से कमरा बनवाया बहुत खुश हुआ । लेकिन उनके मन की तकलीफ को वह ना समझ पाया अम्मा खांसती तो उसे पता भी नहीं चलता वह अपने में सोच रहा था ।कि मैंने अम्मा को बड़ा घर देके उनको खुश कर दिया है लेकिन यह बात बाद में समझ आई जब वह रात में मां की आवाज को सुन ना सका और मां चल बसी । एक दीवार का फासला अलविदा कह गया इन सब बातों को सुनकर पढ़कर यही समझ आता है कि अपनी मां बाप को अपने पन का अहसास कराते रहें ताकि वे आप से अपने मन का कह सकें ।
अर्पणा पाण्डेय
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