पुणे प्रवास के समय हमारे घर में कमल बाई काम करती थी शाम को वह थक हार कर जब घर जाती तो उसका पति शराब पीकर बहुत लडता था और इस से ₹10 मांग कर पाउच मंगाता था बहुत थक जाती थी और हम से आकर सुबह रो-रो कर बताती और कहती कि इतनी गुस्सा आती है की लगता है मर जाए दो 4 घंटे का रोना ही तो होगा फिर थोड़ी ही देर में सोचती और कहत अरे भाई क्या बताऊं गुस्से में कहतो देती हूं लेकिन समाज में यह भी लगता है की बिंदी टिकुली और साड़ी तो पहन लेती हूं और सज धज कर निकल तो सकती हूं। करवा चौथ तो मनाती हूं। यही सब सोचकर और बता कर मन को संतोष कर खुश हो लेती और मैं मन ही मन मुस्कुराती और सोचती यह कैसा पति प्रेम?
अर्पणा पांडे
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