किसी को 2 , 3 फुट चौड़ी पट्टी पर चलने को कहा जाये और उसके दोनों तरफ गड्डा हों तो उस पर चलना असम्भव होगा ,यही बात इंसानी रिश्तों पर भी लागू होती है , ये छोटे - छोटे नाजुक संबंध हमें सुरक्षा का वह कवच देते हैं . जिसके हटते ही एकाकीपन का अंधेरा हमें दबोच लेता है।
शरत चन्द्र ने अपने उप न्यास देवदास के अंत मैं लिखा हैं कि देवदास का मरना उतना दुःखद नहीं था जितना कि यह कि मरते समय अपने किसी प्रिय जनों की आँखों में वह एक बूंद भी न देख सका । देवदास की त्रासदी उसका प्रेम में विफल हो जाना ही नहीं बल्कि उसकी त्रासदी है सबसे कट जाना।
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