माया का प्रबल दल --
मोह न अंध कीन्ह कहु केही ।
को जग काम नचाव न जेही । ।
तृष्ना केही न कीन्ह बौराहा ।
केहि के ह्रदय क्रोध नहि दाहा । ।
ज्ञानी, तापस, सुर - कवि , कोविद, गु न आगार ।
केहि के लोभ बिडंबना , कीन्ह न यहि संसार । ।
श्री - मद वक्र न कीन्ह केहि ,प्रभुता बधिर ना काहि ।
मृग- लोचनि के नयन - सर, को अस लाग न जाहि । ।
गुन - कृत-सन्निपात नहि केही ।
को न मान - मद भयहु निमेहि । ।
जौवन -ज्वर केही नहीं बल कावा ।
ममता केहि कर जस न नसावा । ।
मत्सर काहि कलंक न लावा ।
काहि न सोक -समीर डुलावा । ।
चिंता- साँपिनि काहि न खाया ।
को जग जाहि न व्यापी माया । ।
कीट-मनोरथ , दारु सरीरा ।
जेहि न लागि घुन को अस बीरा । ।
यह सब माया कर परिवारा ।
प्रबल अमित को बरनै पारा । ।
मोह न अंध कीन्ह कहु केही ।
को जग काम नचाव न जेही । ।
तृष्ना केही न कीन्ह बौराहा ।
केहि के ह्रदय क्रोध नहि दाहा । ।
ज्ञानी, तापस, सुर - कवि , कोविद, गु न आगार ।
केहि के लोभ बिडंबना , कीन्ह न यहि संसार । ।
श्री - मद वक्र न कीन्ह केहि ,प्रभुता बधिर ना काहि ।
मृग- लोचनि के नयन - सर, को अस लाग न जाहि । ।
गुन - कृत-सन्निपात नहि केही ।
को न मान - मद भयहु निमेहि । ।
जौवन -ज्वर केही नहीं बल कावा ।
ममता केहि कर जस न नसावा । ।
मत्सर काहि कलंक न लावा ।
काहि न सोक -समीर डुलावा । ।
चिंता- साँपिनि काहि न खाया ।
को जग जाहि न व्यापी माया । ।
कीट-मनोरथ , दारु सरीरा ।
जेहि न लागि घुन को अस बीरा । ।
यह सब माया कर परिवारा ।
प्रबल अमित को बरनै पारा । ।
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