Sunday, 4 October 2015

शहर की जिंदगी भी कैसी हुई जा रही है। क़ि हमे अपने बगल में रहने वाले की भी जानकारी नहीं,या कहें की जान लेने की फुर्सत ही नहीं, न जाने कूँ समय इतना महंगा हुई गया है या कहें की हमारा अहंकार इतना बढ़ गया है की हम मिलते नहीं। अब बिना काम के आदमी से आदमी का मिलना अशिष्टता के अंतर्गत गिना जाने लगा है. बात सही है या नहीं आप बताएं। .....

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