Wednesday, 1 July 2015

इंसान
नजरों से देख प्यारे क्या रूप है तुम्हारा
अपने को  भूल तन में बाहर फिरे  गंवारा \
जैसे ---
मृग नाभि में सुगन्धि ,सूंघे वो घास गन्दी
दुनिया सभी है अंधी समझे नहीं इशारा \

जब दूध के मथन से मिलता है घी जतन  से ,
 तब आप भी  तो कर लो भगवन्भजन् जतन से।

अर्पणा। .


रे मन ,
 
लाख करोड़ी  माया जोड़ी
समय बितत है जाइ। .
ऊँचे-ऊँचे महल बनाये
सुन्दर सेज बिछाई ,
और सुन्दर से कपड़े पहने ,
अपनी देह सजाई ,
नए-नए नित भोजन खाए
षट रस  जीभ चखाए ,
बालपनो और यौवन बीतो
अब बृद्ध अवस्था आई
 ----अर्पणा

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